Mikhail Gorbachev Death: आधुनिक रूस के मसीहा या सोवियत संघ टूटने के लिए जिम्मेदार, क्यों विवादों में रहा गोर्बाचेव का शासनकाल
Mikhail Gorbachev Death: मिखाइल गोर्बाचेव ने अपनी राजनीति को सोवियत संघ के संस्थापक व्लादिमीर लेनिन के सिद्धांतों की वापसी और अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण के मानवीयकरण के तौर पर देखा है। साल 1985 में गोर्बाचेव सोवियत संघ के नेता बने थे। उन्होंने सबसे पहले 1986 में पेरेस्त्रोइका शब्द को गढ़ा।
Highlights
- रूस के पूर्व राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव का निधन
- रूस के एक गांव में पैदा हुए थे गोर्बाचेव
- 1985 में सोवियत संघ के नेता बने थे
Mikhail Gorbachev Death: सोवियत संघ के पूर्व राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव का निधन हो गया। वह 91 वर्ष के थे। रूसी समाचार एजेंसी ‘तास’, ‘आरआईए नोवोस्ती’ और ‘इंटरफेक्स’ ने ‘सेंट्रल क्लीनिकल हॉस्पिटल’ के हवाले से गोर्बाचेव के निधन की जानकारी दी है। गोर्बाचेव के कार्यालय ने पहले बताया था कि अस्पताल में उनका इलाज किया जा रहा है। उनका कार्यकाल काफी ज्यादा सुर्खियों में रहा था। इस दौरान सोवियत संघ का विघटन हो गया था और वो 15 देशों में विभाजित हुआ था। जोसेफ स्टालिन की नीतियों से अलग हटकर उन्होंने शीत युद्ध को खत्म करने का काम किया था। उन्होंने ग्लासनोस्ट (खुलेपन) और पेरेस्त्रोइका (परिवर्तन) की अवधारणाओं को पेश किया था। इसलिए उन्हें पश्चिम में काफी पसंद किया जाता है।
गोर्बाचेव ने अपनी राजनीति को सोवियत संघ के संस्थापक व्लादिमीर लेनिन के सिद्धांतों की वापसी और अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण के मानवीयकरण के तौर पर देखा है। साल 1985 में गोर्बाचेव सोवियत संघ के नेता बने थे। उन्होंने सबसे पहले 1986 में पेरेस्त्रोइका शब्द को गढ़ा। रूस के भीतर सुधार करने के लिए अभियान चलाने हेतु इस शब्द पर जोर दिया गया। इसका लक्ष्य कई मंत्रालयों से दूर जाना और बाजार सुधार शुरू करना था। हालांकि यह भी माना जाता है कि इसी वजह से सोवियत संघ पतन की कगार पर पहुंच गया था।
कैसा रहा गोर्बाचेव का जीवन?
मिखाइल गोर्बाचेव का जन्म 2 मार्च, 1931 में रूस के एक गांव में हुआ था। ग्रेट पर्ज के दौरान उनके दादा और नाना को जेल में डाल दिया गया था। यह सोवियत तानाशाह जोसेफ स्टालिन द्वारा आयोजित किया गया राजनीतिक हत्याओं और दमन का दौर था। ग्रेट पर्ज के दौरान स्टालिन खुद सत्ता में आने के लिए क्रूरता पर उतर आए थे और कई लोगों को जेल में डाल दिया था। स्टालिन 15 साल की उम्र में कंबाइन मशीन से फसल की कटाई करते थे। इसके बाद उन्हें मॉस्को स्टेट यूनिवर्सिटी में वकालत की पढ़ाई करने का मौका मिला। इसके साथ ही उन्हें कम्युनिस्ट पार्टी का लाल कार्ड मिला। 1960 के बाद गोर्बाचेव पार्टी में एक शक्तिशाली नेता बन गए। 1971 में वह पार्टी की केंद्रीय समिति के सबसे युवा नेता बने। 1978 में वह अपनी बेटी और पत्नी रायसा के साथ मॉस्को चले गए।
सोवियत संघ में एक वक्त ऐसा भी था, जब सबकुछ सरकार ही नियंत्रित करती थी। उदाहरण के तौर पर अगर आप चिप्स लेना चाहते हैं, तो वह सरकारी नियंत्रण के अंतर्गत होनी चाहिए। सरकार ही ये फैसला करेगी कि आलू कहां से लेने हैं, इन्हें कैसे बनाना है और कैसे बेचना है। कुल मिलाकर लोगों के पास ज्यादा विकल्प नहीं थे। इसी स्थिति के कारण गोर्बाचेव को कई देशों का दौरा करने का अवसर मिला, जहां वे खुली अर्थव्यवस्था को देखकर हैरान रह गए। वहां लोगों के पास कई विकल्प थे। जिसे सोवियत प्रचार सड़ती पूंजीवादी व्यवस्था बताता था।
कैसा हुआ करता था सोवियत संघ?
मार्च 1985 में गोर्बाचेव सोवियत संघ के नेता बने। सोवियत संघ उस समय दुनिया का तीसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश था और उसकी कुल सैन्य क्षमता 50 लाख थी। लेकिन उसकी अर्थव्यवस्था और कृषि की स्थिति मजबूत नहीं थी। टॉयलेट पेपर से लेकर महिलाओं के जूते और पर्स तक जैसी बुनियादी चीजों की कमी थी। एक समय की बात है, जिस देश में खाद्यान्न की कमी नहीं थी, उसे गेहूं का निर्यात करना पड़ता था। गोर्बाचोव ने सुधारों को समझा। लेकिन उन्होंने जो पहला फैसला लिया वह था, शराब के दाम बढ़ाना। यह एक ऐसा फैसला था, जिसने उनकी लोकप्रियता को कम कर दिया। हालांकि, चमत्कारिक रूप से शराब विरोधी अभियान ने जन्म दर में वृद्धि भी की।
साल 1986 में मिखाइल गोर्बाचेव ने पेरेस्त्रोइका शब्द के साथ सोवियत अर्थव्यवस्था में सुधार की घोषणा की थी। इसके जरिए उन्होंने छोटे व्यवसायों को अनुमति दी और मीडिया पर सेंसरशिप को कम कर दिया। इससे टेलीविजन शो और पश्चिमी देशों की समृद्धि पर चौंकाने वाली खोजी रिपोर्ट्स आईं। जिन चीजों तक लोगों की पहुंच नहीं थी, उन्हें टीवी के जरिए उनके बारे में बताया जा रहा था। हालांकि, उनकी आर्थिक नीतियां उतनी अच्छी साबित नहीं हुईं, जितनी उम्मीद की जा रही थी। सरकारी दुकानें बंद रहीं और खुले बाजार में चीजें महंगी हो गईं। तेल की कीमतों में गिरावट ने अर्थव्यवस्था पर भी असर डाला, जिससे देश के विभिन्न हिस्सों में तनाव पैदा हो गया।
शीत युद्ध का अंत?
बेशक ऐसा माना जाता है कि मिखाइल गोर्बाचेव सोवियत संघ के लिए सही नहीं थे लेकिन उन्होंने दुनिया को परमाणु युद्ध से बचाने के लिए फैसले लिए थे। उन्होंने और अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने परमाणु हथियारों और मिसाइलों की संख्या कम करने से संबंधित कई महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे। साल 1988 में रोनाल्ड रीगन ने रेड स्क्वायर में एक भाषण के दौरान यहां तक कहा कि वह सोवियत संघ को एक दुष्ट साम्राज्य के रूप में नहीं देखते हैं। 1990 में, मिखाइल को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। पुरस्कार देने वाली समिति ने कहा कि उनके शासनकाल के दौरान पूर्व और पश्चिम के बीच संबंध नाटकीय रूप से बदल गए थे।
सोवियत इतिहास में जब पहली बार लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव हुए, तो वह गैर-कम्युनिस्ट प्रतिनिधि चुने गए थे। सभी अपने-अपने राज्यों को अलग करने की मांग कर रहे थे। मीडिया से सेंसरशिप कम हो गई थी, जिसके चलते उनके भाषण को पूरे देश ने देखा। सबसे पहले स्वतंत्रता की घोषणा बाल्टिक देशों ने की थी। 1990 में गोर्बाचेव को सोवियत संघ का अंतिम नेता चुना गया। घरेलू राजनीति में उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी बोरिस येल्तसिन थे, जो बाद में रूस के पहले राष्ट्रपति बने। 1990 में जब गोर्बाचेव सोवियत संघ में सत्ता में आए, तो बोरिस के नेतृत्व में रूस ने एक अलग देश की घोषणा की। 12 दिसंबर 1991 को रूस एक अलग देश बन गया। बोरिस के शासन के तहत, सोवियत संघ 15 देशों में टूट गया, जिनमें आर्मेनिया, अजरबैजान, बेलारूस, एस्टोनिया, जॉर्जिया, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, लातविया, लिथुआनिया, मोल्दोवा, रूस, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, यूक्रेन और उज्बेकिस्तान शामिल थे। सोवियत संघ का टूटना गोर्बाचेव से राजनीतिक का छूटना था।
कई बडे़ बदलाव शुरू किए थे
गोर्बाचेव सात साल से कम समय तक सत्ता में रहे, लेकिन उन्होंने कई बड़े बदलाव शुरू किए। इन बदलावों ने जल्द ही उन्हें पीछे छोड़ दिया, जिसके कारण अधिनायकवादी सोवियत संघ विघटित हो गया, पूर्वी यूरोपीय राष्ट्र रूसी प्रभुत्व से मुक्त हुए और दशकों से जारी पूर्व-पश्चिम परमाणु टकराव का अंत हुआ। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने गोर्बाचेव को ‘उल्लेखनीय दृष्टिकोण वाला व्यक्ति’ और एक ‘दुर्लभ नेता’ करार दिया, जिनके पास ‘यह देखने की कल्पनाशक्ति थी कि एक अलग भविष्य संभव है और जिनके पास उसे हासिल करने के लिए अपना पूरा करियर दांव पर लगा देने का साहस था।’ बाइडेन ने एक बयान में कहा, ‘इसके परिणामस्वरूप दुनिया पहले से अधिक सुरक्षित हुई और लाखों लोगों को और स्वतंत्रता मिली है।’
एक राजनीतिक विश्लेषक और मॉस्को में अमेरिका के पूर्व राजदूत माइकल मैक्फॉल ने ट्वीट किया कि गोर्बाचेव ने इतिहास को जिस तरह से एक सकारात्मक दिशा दी है, वैसा करने वाला कोई अन्य व्यक्ति बमुश्किल ही नजर आता है। गोर्बाचेव के वर्चस्व का पतन अपमानजनक था। उनके खिलाफ अगस्त 1991 में तख्तापलट के प्रयास से उनकी शक्ति निराशाजनक रूप से समाप्त हो गई। उनके कार्यकाल के आखिरी दिनों में एक के बाद एक गणतंत्रों ने स्वयं को स्वतंत्र घोषित किया। उन्होंने 25 दिसंबर, 1991 में इस्तीफा दे दिया था। इसके एक दिन बाद सोवियत संघ का विघटन हो गया। इसके करीब 25 साल बाद गोर्बाचेव ने ‘एसोसिएटेड प्रेस’ (एपी) से कहा था कि उन्होंने सोवियत संघ को एक साथ रखने की कोशिश के लिए व्यापक स्तर पर बल प्रयोग करने का विचार इसलिए नहीं किया, क्योंकि उन्हें परमाणु सम्पन्न देश में अराजकता फैसले की आशंका थी।
सर्वाधिक प्रभावशाली राजनीतिक हस्ती बने गोर्बाचेव
उनके शासन के अंत में उनके पास इतनी शक्ति नहीं थी कि वे उस बवंडर को रोक पाएं, जिसकी शुरुआत उन्होंने की थी। इसके बावजूद गोर्बाचेव 20वीं सदी के उत्तरार्ध में सर्वाधिक प्रभावशाली राजनीतिक हस्ती थे। गोर्बाचेव ने कार्यालय छोड़ने के कुछ समय बाद 1992 में ‘एपी’ से कहा था, ‘मैं खुद को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखता हूं जिसने देश, यूरोप और दुनिया के लिए आवश्यक सुधार शुरू किए।’ गोर्बाचेव को शीत युद्ध समाप्त करने में उनकी भूमिका के लिए 1990 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें दुनिया के सभी हिस्सों से प्रशंसा और पुरस्कार मिले, लेकिन उनके देश में उन्हें व्यापक स्तर पर निंदा झेलनी पड़ी। रूसियों ने 1991 में सोवियत संघ के विघटन के लिए उन्हें दोषी ठहराया। एक समय महाशक्ति रहा सोवियत संघ 15 अलग-अलग देशों में विभाजित हो गया। गोर्बाचेव के सहयोगियों ने उन्हें छोड़ दिया और देश के संकटों के लिए उन्हें बलि का बकरा बना दिया।
उन्होंने 1996 में राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा और उन्हें मजाक का पात्र बनना पड़ा। उन्हें मात्र एक प्रतिशत मत मिले। उन्होंने 1997 में अपने परमार्थ संगठन के लिए पैसे कमाने की खातिर पिज़्ज़ा हट के लिए एक टीवी विज्ञापन बनाया । गोर्बाचेव सोवियत प्रणाली को कभी खत्म नहीं करना चाहते थे, बल्कि वह इसमें सुधार करना चाहते थे। मिखाइल सर्गेयेविच गोर्बाचेव का जन्म दो मार्च, 1931 को दक्षिणी रूस के प्रिवोलनोये गांव में हुआ था। उन्होंने देश के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय ‘मॉस्को स्टेट’ से पढ़ाई की, जहां उनकी राइसा मैक्सीमोवना तितोरेंको से मुलाकात हुई, जिनसे उन्होंने बाद में विवाह किया। इसी दौरान वह कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हुए।