Britain kingdom: महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के निधन की दुखद खबर महाराज चार्ल्स तृतीय के शासनकाल की शुरुआत का प्रतीक है। परिवर्तनकाल में पहले इस बारे में सवाल उठ चुके हैं कि क्या हम नये राजा से हस्तक्षेपकर्ता होने की उम्मीद कर सकते हैं। ये चिंताएं गत वर्षों में कई घटनाओं पर आधारित हैं। प्रिंस ऑफ वेल्स के रूप में चार्ल्स राजनीतिक मुद्दों पर मुखर थे और उन्हें अपने निजी हितों के मुद्दों पर मंत्रियों से पैरवी करते पाया गया था। हाल ही में राजकुमार के धर्मार्थ कार्य के लिए कतर के पूर्व प्रधानमंत्री द्वारा किए गए नकद दान के बारे में भी चिंता व्यक्त की गई थी।
अब हो गई है एक प्रथा
नये महाराज के शासनकाल की वास्तविकता बहुत अलग और बहुत कम विवादास्पद रहने वाली है। इसका कारण इस तरह है, एक संवैधानिक राजतंत्र की भूमिका
महाराज चार्ल्स अब राष्ट्र प्रमुख हैं जबकि देश एक संवैधानिक राजतंत्र है। इसका मतलब है कि कानून बनाने और पारित करने की क्षमता केवल निर्वाचित संसद के पास है। महाराज जॉन के शासनकाल और 1215 में मैग्ना कार्टा पर हस्ताक्षर के बाद से ब्रिटेन में राजतंत्र की व्यवस्था कानून द्वारा सीमित कर दी गयी। राजा को कानून बनने से पहले किसी विधेयक पर शाही सहमति देनी पड़ती है लेकिन इन दिनों इसे औपचारिकता और एक रस्मी प्रथा माना जाता है।
एक क्रांति ने ब्रिटेन को बना दिया गणतंत्र
व्यवस्था बनाये रखने के लिए राजा को एक गैर-विवादास्पद व्यक्ति होना चाहिए और राजनीतिक रूप से तटस्थ रहना चाहिए। इतिहास से पता चलता है कि तब क्या होता है जब एक राजा बहुत अधिक मनमानी करने की कोशिश करता है। उदाहरण के लिए उस वक्त राजा और उसकी प्रजा के बीच तनाव देखा गया था, जब 1642 में राजा चार्ल्स प्रथम ने राजद्रोह के आरोप में सांसदों को गिरफ्तार करने के लिए संसद में प्रवेश किया था। इसके बाद क्रांति हुई और थोड़े समय के लिए ब्रिटेन एक गणतंत्र बन गया।
संसद की सहमति के बिना नहीं बन सकता है कानून
वर्ष 1660 में राजा चार्ल्स द्वितीय के साथ राजशाही बहाल की गई थी। हालांकि 1689 में अधिकारों को लेकर पारित विधेयक, 1611 की उद्घोषणा के मामले के साथ युग्मित है जिसमें कहा गया है कि एक राजा संसद की सहमति के बिना कानून नहीं बना सकता है और यह राजा को लोकतांत्रिक रूप से चुनी संसद की इच्छा को स्वीकार करने के लिए मजबूर करता है। व्यावहारिक रूप से नये महाराज उस परिवर्तन से भली-भांति परिचित हैं जो उन्हें अब करना चाहिए। संवैधानिक परंपराएं जो राजकुमार के रूप में उन पर लागू नहीं होती थीं, वह अब राजा के रूप में उनके हर कार्य का मार्गदर्शन करेंगी। जब राजनीतिक हस्तक्षेप की बात आती है तो राजा ने स्पष्ट कर दिया है कि वह जानते हैं कि उनका दृष्टिकोण अब अलग होना चाहिए।
अपने जन्मदिन पर क्या कहा था?
वर्ष 2018 में अपने 70वें जन्मदिन के साक्षात्कार के दौरान उन्होंने कहा था कि मुझे एहसास है कि संप्रभु होने के नाते यह एक अलग कवायद है। निश्चित रूप से मैं पूरी तरह से समझता हूं कि इसे कैसे संचालित करना चाहिए। राजशाही के बने रहने के लिए, उन्हें संवैधानिक नियमों का सम्मान करना जारी रखना चाहिए। यह एक नये युग की शुरुआत है लेकिन वह काफी हद तक महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के शासन को नियंत्रित करने वाले नियमों का पालन करेंगे।
क्या बदल सकता है?
राष्ट्रमंडल क्षेत्रों के संबंध में, हम उम्मीद कर सकते हैं कि चार्ल्स सामाजिक परिवर्तनों के प्रति अधिक जागरूक होंगे। प्रिंस ऑफ वेल्स के रूप में उन्होंने कागाली में राष्ट्रमंडल के शासनाध्यक्षों की बैठक में टिप्पणी की थी कि कैसे गुलामी की विरासत का सामना करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा था कि मैं इतने सारे लोगों की पीड़ा पर अपने व्यक्तिगत दुख का वर्णन नहीं कर सकता, मैं गुलामी के स्थायी प्रभाव के बारे में अपनी समझ को गहरा करना जारी रखता हूं। इसी तरह, प्रिंस विलियम ने जमैका की यात्रा पर स्वीकार किया था कि गुलामी का भयावह अत्याचार हमारे इतिहास पर दाग है।
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