Italy Elections: इटली में वोटिंग आज, धुर-दक्षिणपंथी पार्टी का बोल बाला, लेफ्ट पड़ा कमजोर, इस बीच EU को सता रहा किसका डर?
Italy Elections: ओपिनियन पोल में भी ये बात सच साबित होती दिखी। हर चार में से एक नागरिक ने मेलोनी को ही वोट देने की योजना बनाई है। ये जानकारी चुनाव पूर्व प्रतिबंध से पहले 10 सितंबर को प्रकाशित पहले सर्वे में सामने आई थी।
Highlights
- इटली में रविवार को होगा मतदान
- धुर-दक्षिणपंथी पार्टी की हो सकती है जीत
- यूरोपीय संघ की एकता को बढ़ा खतरा
Italy Elections: इटली में रविवार को मतदान होने जा रहा है, जिसे लेकर न केवल इस देश में बल्कि पूरे यूरोप में चर्चा तेज हो गई है। इससे यूरोपियन यूनियन (यूएन) का भविष्य दांव पर लगा है। ये चुनाव यूरोप की एकता का फैसला भी करेंगे। इटली में धुर-दक्षिणपंथी नेता जॉर्जिया मेलोनी ने इटली की राजधानी रोम में अपना आखिरी चुनावी भाषण दे दिया है। जिसका आयोजन रोम के प्रतिष्ठित स्क्वायर में से एक Piazza del Popolo में हुआ। उन्होंने नारे लगाती हुई भीड़ से कहा, 'देश में वास्तविक तौर पर बहुमत में हम ही हैं।' ओपिनियन पोल में भी ये बात सच साबित होती दिखी। हर चार में से एक नागरिक ने मेलोनी को वोट देने की योजना बनाई है। ये जानकारी चुनाव पूर्व प्रतिबंध से पहले 10 सितंबर को प्रकाशित पहले सर्वे में सामने आई थी।
अगर सर्वे में सामने आया आंकड़ा सच होता है तो मेलोनी इटली की पहली महिला प्रधानमंत्री बन सकती हैं। वह एक दक्षिणपंथी गठबंधन की प्रमुख हैं, जिसमें आव्रजन का विरोध करने वाले और लोगों के पसंदीदा नेता माटेओ साल्विनी और ऑक्टोजेरियन मीडिया टाइकून सिल्वियो बर्लुस्कोनी शामिल हैं। चुनाव इसलिए हो रहे हैं क्योंकि जुलाई में प्रधानमंत्री मारियो द्रागी की नेशनल यूनिटी गवर्मेंट का पतन हुआ थी। वह एक अनिर्वाचित टेक्नोक्रेट और पूर्व में यूरोप के सबसे बड़े सेंट्रल बैंकर रहे हैं। उन्हें इटली की तूफान भरी राजनीति में एक शांत नेता के तौर पर जाना जाता है।
इटली में आखिरी बार चुनाव पांच साल पहले हुए थे, तभी से यहां तीन अलग-अलग सरकारें बन चुकी हैं। इस साल लोग बैलेट के जरिए वोट देने वाले हैं। चुनावी मुद्दों में ऊर्जा संकट, राजनेताओं के दृष्टिकोण को लेकर व्यापक मोहभंग और यूरोपीय संघ के प्रति देश के भविष्य का रुख शामिल हैं।
ऊर्जा संकट
यूक्रेन युद्ध के चलते रूस ने गैस आपूर्ति कम कर दी है, जिससे यूरोप में न केवल गैस की कमी हो गई है बल्कि आने वाली सर्दियों में गैस के बिल आसमान छू सकते हैं। रूस और यूक्रेन के बीच बीते 7 महीने से जारी युद्ध की वजह से दुनियाभर की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है। कुछ यही हाल इटली का भी है। यहां महंगाई आसमान छू रही है। अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि अगर हालात ऐसे ही रहते हैं तो 12 मिलियन लोग गरीबी रेखा से नीचे जा सकते हैं। हालांकि चुनाव अभियान के केंद्र में ऊर्चा संकट ही रहा है। धुर-दक्षिणपंथी गठबंधन ने चुनावी अभियान में गैर कानूनी आव्रजन और गे-अधिकार से जुड़ी लॉबी जैसे मुद्दों को भी शामिल किया है।
मेलोनी भी द्रागी को ही फॉलो कर रही हैं। उन्होंने गैस की कीमत को सीमित करने और इसे ऊर्जा लागत से अलग करने पर जोर देते हुए इटली के रिकॉर्ड उच्च ऋण को बढ़ाने से इनकार कर दिया है। जबकि साल्विनी ने 30 बिलियन यूरो से अधिक ऋण की बात की है, ताकि आर्थिक संकट से जूझ रहे बिजनेस और परिवारों को राहत दी जा सके। विशेषज्ञों का कहना है कि सामाजिक असामनता को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है, जो कोरोना वायरस महामारी के कारण पहले से ही बढ़ गई है। आने वाली सरकार को सबसे कमजोर लोगों के लिए रणनीति अपनानी होगी नहीं तो स्थिति और खराब हो जाएगी।
वामपंथी पार्टी की क्या हालत है?
ब्रदर्स ऑफ इटली पार्टी के अलावा चुनावी मैदान में डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडी) है। जिसका नेतृत्व एनरिको लेट्टा कर रहे हैं। ये सेंट्रल लेफ्ट पार्टी इटली के युवाओं को अपनी सरकार बनने के बाद आर्थिक अवसर उपलब्ध कराने, अक्षय ऊर्जा, नागरिक स्वतंत्रता और सामाजिक नीतियों पर ध्यान देने की बात कर रही है। एक तरह से देखा जाए, तो मेलोनी और लेट्टा एक दूसरे के बिलकुल विपरीत हैं। हालांकि ये पार्टी किसी के साथ गठबंधन के लिए सहमति नहीं बना सकी है। लेट्टा पर ये भी आरोप लग रहे हैं कि उन्होंने चुनावी अभियान में अपनी पार्टी की वास्तविक नीतियों का प्रचार करने के बजाय पूरा ध्यान मेलोनी पर हमलावर होने में दिया है।
मेलोनी के अलावा चुनावी अभियान की लाइमलाइट में नेता ग्यूसेप कोंटे भी बने रहे। जहां लेट्टा की पार्टी को 22 फीसदी वोट मिलने का अनुमान है, तो वहीं कोंटे की मोरीबंड पार्टी को 13 फीसदी। हालांकि रविवार को मतदान होने के बाद आधिकारिक परिणाम सोमवार तक ही आ सकते हैं। और सरकार बनने में कुछ हफ्तों का समय लग सकता है। मध्य अक्टूबर तक दोनों चैंबर अपने नए अध्यक्षों का चुनाव करेंगे। इसके बाद राष्ट्रपति सर्जियो मटेरेला दो प्रतिनिधियों और पार्टी नेताओं के साथ विचार-विमर्श शुरू करेंगे ताकि यह तय किया जा सके कि प्रधानमंत्री के रूप में किसे नियुक्त किया जाए। नियुक्त प्रधानमंत्री उन मंत्रियों की एक सूची पेश करेंगे, जिन्हें राष्ट्रपति और फिर संसद द्वारा विश्वास मत का सामना करना होगा।
ईयू के लिए कैसे हो सकता है खतरा?
सर्वे में सामने आया है कि बड़े स्तर पर लोग मतदान से किनारा करेंगे। क्योंकि वो मेलोनी और लेट्टा दोनों के आने से ही खुश नहीं है। मेलोनी 2012 में बनी ब्रदर्स ऑफ इटली पार्टी की सह-संस्थापक हैं। ये पार्टी एक दक्षिणपंथी पार्टी से ही निकली है। जिसने वर्षों तक ईयू और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजार के खिलाफ बयानबाजी की है। इन्हें इस पार्टी ने इटली के राष्ट्रीय हित के लिए अपना दुश्मन बनाया है। लेकिन मेलोनी अब ऐसे वक्त में देश की प्रधानमंत्री बन सकती हैं, जब इटली को ईयू की मदद की सबसे ज्यादा जरूरत है। यही वजह है कि 45 साल की मेलोनी की टोन में बदलाव आया है। वह लगातार ईयू के प्रति अपनी प्रतिबद्धताएं और यूक्रेन के प्रति समर्थन को दोहरा रही हैं। इसके साथ ही वह रूस पर प्रतिबंधों का भी समर्थन कर रही हैं।
हालांकि उन्होंने चुनावी अभियान में कहा था कि ईयू के लिए 'पार्टी खत्म हो चुकी है।' उन्होंने बीते हफ्ते एक रैली में कहा था कि वह इटली के हितों को प्राथमिकता देंगी। उन्होंने यूरोपीय संसद की एक रिपोर्ट को वापस लेने से इनकार करने के बाद भी चिंता जताई, जिसमें कानून के उल्लंघन पर यूरोसेप्टिक हंगरी सरकार की निंदा की गई थी।
गठबंधन में रूस समर्थित लोग
बेशक मेलोनी कितना भी बोल लें, कि वह यूक्रेन का समर्थन करती हैं, लेकिन उन्हीं की पार्टी में ऐसे लोग भी हैं, जो रूस समर्थित हैं। साल्विनी लंबे समय से रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के प्रशंसक हैं। वह लगातार बोलते आए हैं कि मॉस्को के खिलाफ लगाए जा रहे प्रतिबंध कारगर नहीं होंगे और इनपर दोबारा विचार किया जाना चाहिए। इसके अलावा गठबंधन के एक अन्य सहयोगी सिल्वियो बर्लुस्कोनी की तो पुतिन के साथ निजी तौर पर दोस्ती है। दोनों साथ में छुट्टियां मनाते हैं। 85 साल के बर्लुस्कोनी ने गुरुवार को पुतिन का बचाव करते हुए कहा कि वह केवल यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदिमीर जेलेंस्की को बदलना चाहते हैं, और इसके स्थान पर सभ्य लोगों की सरकार लाना चाहते हैं, लेकिन उन्हें जमीनी स्तर पर अप्रत्याशित प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है।