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दुनिया के सबसे बड़े सौर विमान ने स्पेन से मिस्र की उड़ान भरी

दुनिया के सबसे बड़े सौर ऊर्जा से संचालित विमान सोलर इम्पल्स 2 ने सोमवार को स्पेन के सेविले से मिस्र के लिए उड़ान भरी।

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मैड्रिड: दुनिया के सबसे बड़े सौर ऊर्जा से संचालित विमान सोलर इम्पल्स 2 ने सोमवार को स्पेन के सेविले से मिस्र के लिए उड़ान भरी। समाचार एजेंसी एफे के अनुसार, बहुत अधिक तैयारी के बाद पायलट एंड्रे बोस्रचबर्ग ने सुबह छह बजे के तुरंत बाद नियंत्रण टॉवर से बात की और वहां से पुष्टि की गई कि वह विमान उड़ा सकते हैं और विमान को लेकर पूरी दुनिया का चक्कर लगाना जारी रख सकते हैं। यह विमान 23 जून को सेविले पहुंचा था। ट्यूनीशिया, अल्जीरिया, माल्टा, इटली और यूनान के हवाई क्षेत्र से होते हुए यह 48 से 72 घंटे में मिस्र पहुंचेगा।

उड़ान भरने के पहले बोस्र्चबर्ग विमान के पास मीडिया से मुखातिब हुए और उन्होंने उम्मीद जताई कि वह दुनिया को निराश किए बगैर अपना अभियान जारी रखेंगे। उन्होंने कहा, "चूंकि जो हम देख रहे हैं और फॉलो कर रहे हैं, उन सबको निराश नहीं कर सकते।" उनका यह वक्तव्य अंतर्राष्ट्रीय प्रेस और सोशल नेटवर्क पर इस अभियान पर नजर रख रहे हजारों लोगों के संदर्भ में था।

एक हजार से अधिक लोग इस अभियान पर नजर रखने के लिए पेरिस्कोप एप से जुड़े हैं, जो विमान की स्थिति को बताता रहता है। इनमें से अधिकांश उड़ान के दौरान यात्रा के विभिन्न चरणों में पायलट से बात कर सकते हैं। विमान के कॉकपिट और पंखों में लगे कैमरों की वजह से हर दिन हजारों लोग विमान की यात्रा पर नजर रख सकते हैं। मोनाको स्थित इस अभियान के नियंत्रण केंद्र से इंजीनियरों की एक टीम इस पर लगातार नजर रख रही है। कार्बन फाइबर से बना एक सीट वाला यह विमान प्रति घंटे 45 से 55 मील की रफ्तार से उड़ान भर सकता है और अधिकतम 8500 मीटर ऊंचाई तक जा सकता है।

यह यात्रा वर्ष 2015 के मार्च में शुरू हुई थी। सौर इम्पल्स धरती के इर्द-गिर्द तेजी से प्रवाहित होने लगे, जिसकी वजह से 21 अप्रैल को हवाई में इसकी चुनौती और बढ़ गई। वर्ष 2015 में इस विमान ने अपनी उड़ान के आठ चरण पूरे किए। इनमें आबूधाबी से कालाएलो तक की उड़ान भरी थी। इसमें चार दिन 21 घंटे का पश्चिमी प्रशांत महासागर के ऊपर से भरी गई उड़ान शामिल है। यह किसी भी पायलट की पहली एकल उड़ान के इतिहास का सबसे अधिक समय है। लेकिन इसके बाद उसकी बैटरियां क्षतिग्रस्त हो गईं, जिससे मरम्मत एवं उत्तरी गोलार्ध में अधिकतम दिन की रोशनी मिलने के इंतजार में 10 माह तक उड़ान बंद रही।

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