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ब्रिटेन चुनाव में क्यों झूठे साबित हुए सर्वेक्षण'

लंदन: ब्रिटेन में सात मई को हुए चुनाव को लेकर सर्वेक्षणों व अखबारों के सारे दावे धरे के धरे रह गए। कंजरवेटिव और लेबर पार्टी के बीच कड़ी टक्कर का दावा करने वाले सभी राजनीतिक

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लंदन: ब्रिटेन में सात मई को हुए चुनाव को लेकर सर्वेक्षणों व अखबारों के सारे दावे धरे के धरे रह गए। कंजरवेटिव और लेबर पार्टी के बीच कड़ी टक्कर का दावा करने वाले सभी राजनीतिक पंडित परिणाम देखकर सन्न रह गए हैं। चुनाव परिणामों ने एक बार डेविड कैमरन को प्रधानमंत्री पद की कुर्सी सौंप दी है।

वैज्ञानिक पत्रिका 'नेचर' ने लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स में राजनीति विज्ञानी माइकल ब्रूटर के हवाले से कहा, "चुनाव परिणाम के बारे में जो भविष्यवाणी की गई थी और जो परिणाम आए हैं, उसमें निश्चित तौर पर बड़ा अंतर है, लेकिन मैं आश्चर्यचकित नहीं हूं।"

ब्रूटर ने कहा, "चुनाव दर चुनाव अपने शोध में हमने पाया है कि 30 फीसदी लोग चुनाव के एक सप्ताह पहले तय करते हैं कि वोट किसे देना है, जबकि 15 फीसदी लोग चुनाव के दिन। कुछ लोगों को पहले तो पता नहीं होता है कि वोट किसे देना है और वह मतदान केंद्र में किसी को वोट देने का मन बनाते हैं।"

उन्होंने कहा, "कल (शुक्रवार) जो भी हुआ, उससे यह स्पष्ट होता है कि अधिकांश लोगों ने एक दिशा में अपने मन बदले।"

एक अन्य महत्वपूर्ण कारक है। "हमने यह पाया है कि जब लोगों से पूछा गया कि वे किसे वोट देने जा रहे हैं, तो प्राय: उनका जवाब था कि जो उनके लिए बेहतरीन होगा।"

उन्होंने कहा, "लेकिन जब आप उसी व्यक्ति से बाद में पूछें कि उन्होंने वोट किसे दिया, तो उनका यही जवाब मिलेगा कि जो देश के लिए सबसे अच्छा था।"

दूसरे शब्दों में, लोग भले ही बीते पांच सालों के दौरान गठबंधन की नीतियों से सहमत नहीं थे, लेकिन शायद फिर भी उन्होंने कंजरवेटिव पार्टी को वोट दिया, क्योंकि उन्हें लगा कि यह देश के लिए बेहतर विकल्प होगा।

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