नई दिल्ली: पाकिस्तान जहां कई दिनों से कई अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर जम्मू एवं कश्मीर के मसले को उठा रहा है, यह जानना उचित है कि दोहरे चरित्र वाले देश को उन देशों के साथ सच्चाई और तथ्यों के भार को साझा करना पड़ेगा जिसकी वह मौजूदा समय में लॉबिंग कर रहा है।
मार्च 2017 में, एक आश्चर्यजनक उलटफेर में, ब्रिटिश संसद ने गिलगित-बलटिस्तान को भारत के जम्मू एवं कश्मीर का अभिन्न अंग बताते हुए एक प्रस्ताव पारित किया और पाकिस्तान की इसे एक प्रांत बनाने और क्षेत्र की जनसांख्यिकी को बदलने के लिए निंदा की।
ब्रिटिश सांसदों द्वारा पास किए गए प्रस्ताव में गिलगित-बालटिस्तान को जम्मू एवं कश्मीर का वैध व संवैधानिक भाग बताया गया जिसे 1947 में पाकिस्तान ने अवैध रूप से हड़प लिया था।
इस प्रस्ताव को कंजर्वेटिव पार्टी के बॉब ब्लैकमेन ने 23 मार्च 2017 को ब्रिटिश संसद में रखा था। इसमें कहा गया था कि पाकिस्तान एक ऐसे क्षेत्र को लेने की कोशिश कर रहा है जो उसका नहीं है।
ब्रिटिश संसद के प्रस्ताव के अनुसार, "गिलगित-बालटिस्तान भारत के जम्मू एवं कश्मीर का वैध व संवैधानिक भाग है, जिसे पाकिस्तान ने 1947 में अवैध रूप से हथिया लिया था और जहां लोगों के मूलभूत अधिकारों का हनन किया जा रहा है जिसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार शामिल है।"
ब्रिटिश सांसदों ने पाकिस्तान पर राज्य विशेष अध्यादेश का उल्लंघन कर गिलगित-बालटिस्तान क्षेत्र की जनसांख्यिकी को बदलने वाली नीति को अपनाने का आरोप लगाया। उन्होंने इसके साथ ही चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के निर्माण को अवैध बताया।
प्रस्ताव के अनुसार, "सीपीईसी का अवैध और जबरन निर्माण विवादित क्षेत्र में हस्तक्षेप की कोशिश है।"
गिलगित-बालटिस्तान का क्षेत्र भारत के विभाजन के बाद पाकिस्तान द्वारा जम्मू एवं कश्मीर पर हमला करने के बाद से इसके कब्जे में है। पाकिस्तान के नियंत्रण में इसे कश्मीर क्षेत्र के परे उत्तरी प्रशासनिक क्षेत्र बनाया गया जोकि अवैध रूप से इस्लामाबाद के कब्जे में है।
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