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नायपॉल, अरुंधति को पीछे छोड़ ओंदात्जे के ‘द इंग्लिश पेशेंट’ ने जीता गोल्डन मैन बुकर प्राइज

74 वर्षीय माइकल ओंदात्जे ने भारतीय मूल के लेखक वीएस नायपॉल, अरुंधति रॉय, किरण देसाई और अरविंद अडिगा समेत पिछले 51 विजेताओं को इस दौड़ में पीछे छोड़ दिया...

'The English Patient' by Michael Ondaatje voted best Man Booker Prize novel | facebook- India TV Hindi 'The English Patient' by Michael Ondaatje voted best Man Booker Prize novel | facebook.com/MichaelOndaatje

लंदन: श्रीलंका में जन्मे कनाडाई लेखक माइकल ओंदात्जे के उपन्यास ‘द इंग्लिश पेशेंट’ ने गोल्डन मैन बुकर प्राइज जीता है। ओंदात्जे के इस उपन्यास को इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के 50 साल पूरे होने पर इस सम्मान से नवाजा गया। ‘द इंग्लिश पेशेंट’ द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान प्रेम और संघर्ष की कहानी है। 74 वर्षीय माइकल ओंदात्जे ने भारतीय मूल के लेखक वीएस नायपॉल, अरुंधति रॉय, किरण देसाई और अरविंद अडिगा समेत पिछले 51 विजेताओं को इस दौड़ में पीछे छोड़ दिया। आपको बता दें कि ओंदात्जे के इस उपन्यास पर इसी नाम से फिल्म भी बन चुकी है जिसने कई ऑस्कर अवॉर्ड्स जीते थे।

इस दौड़ में नायपॉल की पुस्तक ‘इन ए फ्री स्टेट’ (1971), सलमान रश्दी की पुस्तक ‘मिडनाइट्स चिल्ड्रन’ (1981), अरुंधति रॉय की पुस्तक ‘द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स’ (1997), किरण देसाई की पुस्तक ‘द इनहेरिटेंस ऑफ लॉस’ (2006) और अरविंद अडिगा की पुस्तक ‘द व्हाइट टाइगर’ (2008) भी थी। लंदन के साउथ बैंक में रविवार को पुरस्कार समारोह में ओंदात्जे ने कहा, ‘एक सेकंड के लिये भी मुझे विश्वास नहीं होता है कि यह सूची में या बुकर उपन्यासों की डाले जाने वाली किसी अन्य सूची में सर्वश्रेष्ठ पुस्तक है।’

उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात पर संदेह है कि इस उपन्यास पर बनी 1996 की ऑस्कर विजेता फिल्म का जनता के वोट के नतीजे पर कोई असर है। उस फिल्म में राल्फ फिन्स, जूलियट बिनोचे और क्रिस्टन स्कॉट थॉमस ने मुख्य भूमिका निभाई थी। पहले ‘द इंग्लिश पेशेंट’ ने 1992 का बुकर पुरस्कार बैरी अन्सवर्थ की पुस्तक ‘सैक्रेड हंगर’ के साथ साझा की थी। निर्णायक मंडल ने सभी 51 पूर्व बुकर विजेताओं के नाम पर विचार किया। उन्होंने उसमें से हर दशक से एक पुस्तक को चुना। जनता ने उसके बाद अपनी अंतिम पसंद पर मतदान किया और ओंदात्जे की पुस्तक को चुना।

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