लंदन: विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ऐसी प्रतिभा थे जिन्होंने ब्रह्मांड के राज का पता लगाने में अपना जीवन समर्पित कर दिया। 76 साल की उम्र में हॉकिंग का आज निधन हो गया। आधुनिक विज्ञान के जनक गैलीलियो गैलिली के निधन के करीब 300 साल बाद आठ जनवरी 1942 को जन्मे हॉकिंग का मानना था कि विज्ञान ही उनकी नियति है लेकिन किस्मत ने भी उनके साथ कू्र खेल खेला। मोटर न्यूरॉन (एम्योट्रोपिक लेटरल सिलेरोसिस) की चपेट में आने के कारण हॉकिंग की जिंदगी का ज्यादातर वक्त व्हील चेयर पर गुजरा। इस बीमारी की वजह से उनका शरीर लकवे की चपेट में आ गया था। (बांग्लादेश ने विमान दुर्घटना में मारे गए लोगों के लिए घोषित किया एक दिवसीय शोक )
अपने जीवट से हॉकिंग ने इस भविष्यवाणी को झूठा बताया कि बीमारी की चपेट में आने के बाद वह कुछ ही वर्षों तक जीवित रहेंगे। उन्होंने अपनी गतिविधियों और बोलने की क्षमता को कमजोर करने वाले प्रभावों से पार पाने के लिए कंप्यूटर स्पीच सिंथेसाइजर का सहारा लिया। इससे वे संवाद करने में कामयाब रहे।
हॉकिंग ने एक बार लिखा था, ‘‘मुझसे अक्सर पूछा जाता है: एएलएस को लेकर मैं कैसा महसूस करता हूं। जवाब है, ज्यादा नहीं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘जहां तक संभव होता है मैं सामान्य जिंदगी बिताने की कोशिश करता हूं और अपनी स्थिति के बारे में नहीं सोचता और उन चीजों पर अफसोस नहीं जताता।’’ हॉकिंग ने कहा था, ‘‘मेरा लक्ष्य साधारण सा है। यह ब्रह्मांड को पूरी तरह समझना है कि यह ऐसा क्यों है और इसका वजूद क्यों है।’’
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