ग्लासगो (स्कॉटलैंड): प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्कॉटलैंड के शहर ग्लासगो में जलवायु शिखर सम्मेलन से इतर 'एक्सलरेटिंग क्लीन टेक्नोलॉजी इनोवेशन एंड डेवलपमेंट' पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित किया। कार्यक्रम में बोलते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने मंच से दुनिया को 'वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड' का मंत्र दिया और क्लीन टेक्नोलॉजी के लिए राह दिखाई। पीएम मोदी ने कहा कि 'सूर्य से हमें मिलने वाली ऊर्जा पूरी तरह से स्वच्छ और स्थायी है लेकिन चुनौती है कि यह ऊर्जा सिर्फ दिन के समय ही उपलब्ध होती है और मौसम पर निर्भर होती है। इस समस्या का समाधान 'वन सन, वन वर्ल्ड एंड वन ग्रिड' है। विश्वव्यापी ग्रिड के माध्यम से, स्वच्छ ऊर्जा को कहीं भी और कभी भी प्रेषित किया जा सकता है।'
पीएम मोदी ने कहा कि जीवाश्म ईंधन का उपयोग कर कई देश औद्योगिक क्रांति के दौरान अमीर हो गये, लेकिन इसने पृथ्वी और पर्यावरण को बदहाल कर दिया। उन्होंने कहा, ‘‘औद्योगिक क्रांति जीवाश्म ईंधन का उपयोग कर हुई। कई देश जीवाश्म ईंधन का उपयोग कर संपन्न हो गये, लेकिन इसने पृथ्वी और पर्यावरण को बदहाल कर दिया। जीवाश्म ईंधन के लिए होड़ ने भू-राजनीतिक तनाव भी पैदा किया। हालांकि, आज प्रौद्योगिकी ने हमें एक बेहतर विकल्प दिया है।’’
अपने संबोधन के दौरान मोदी ने सूर्योपनिषद का उल्लेख करते हुए कहा कि हर चीज सूर्य से उत्पन्न हुई है। उन्होंने कहा कि सूर्य ऊर्जा का एकमात्र स्रोत है और सौर ऊर्जा हर किसी का भरण-पोषण कर सकती है। उन्होंने कहा, ‘‘जब से धरती पर जीवन है, सभी जीवों का जीवन चक्र, प्रतिदिन की दिनचर्या सूर्योदय और सूर्यास्त से जुड़ा हुआ है।’’ पीएम मोदी ने कहा कि जब तक प्रकृति के साथ इस संबंध को कायम रखा जाएगा, धरती सुरक्षित और स्वस्थ रहेगी।
उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, आधुनिक युग में और आगे निकलने की होड़ में मानव ने प्रकृति के साथ संतुलन को बाधित किया है और पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाया है। यदि हम प्रकृति के साथ जीवन के संतुलन को बहाल करना चाहते हैं तो जीवन का पथ सिर्फ हमारा सूर्य रोशन करेगा। मानव के भविष्य की सुरक्षा के लिए हमें सूर्य के साथ चलना होगा।’’ ‘एक सूर्य, एक विश्व, एक ग्रिड’ (वन वर्ल्ड, वन सन, वन ग्रिड) का आह्वान करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि यह सिर्फ दिन में उपलब्ध सौर ऊर्जा की चुनौती से निपटने का समाधान है।
उन्होंने कहा, ‘‘विश्वव्यापी ग्रिड हमें हर जगह हर समय स्वच्छ ऊर्जा मुहैया कराएगा। यह विद्युत के भंडारण की जरूरत को कम करेगा और सौर परियोजनाओं की व्यवहार्यता को बढ़ाएगा। यह न सिर्फ कार्बन फुटप्रिंट को व ऊर्जा पर आने वाली लागत को घटाएगा बल्कि विभिन्न क्षेत्रों एवं विभिन्न देशेां के बीच सहयोग के नये आयाम भी खोलेगा।’’
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