विकसित देश वित्तीय मदद बढ़ाएं: भारत
भारत ने कहा कि ग्लोबल वॉर्मिंग को पूर्व औद्योगिक काल से 1.5 डिग्री सेल्सियस के बीच सीमित करने के लक्ष्य के लिए जरूरी होगा कि विकसित देश अपने उत्सर्जनों में भारी कमी करें और विकासशील देशों को दी जाने वाली आर्थिक मदद को बढ़ाएं।
पेरिस: भारत ने कहा कि ग्लोबल वॉर्मिंग को पूर्व औद्योगिक काल से 1.5 डिग्री सेल्सियस के बीच सीमित करने के लक्ष्य के लिए जरूरी होगा कि विकसित देश अपने उत्सर्जनों में भारी कमी करें और विकासशील देशों को दी जाने वाली आर्थिक मदद को बढ़ाएं। पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा, दीर्घकालिक तापमान लक्ष्य की दिशा में हम जलवायु से जुड़ी उच्चतर महत्वाकांक्षा से जुड़ी मांगों के प्रति बेहद संवेदनशील हैं। मैं 1.5 डिग्री के जिक्र की मांग को पूरी तरह समझता हूं क्योंकि भारत में हमारे पास भी 1300 से ज्यादा द्वीप हैं।
जावड़ेकर ने बातचीत के एक सत्र में कहा, हालांकि, 1.5 डिग्री के लक्ष्य के लिए विकसित देशों को अपने उत्सर्जनों में भारी कटौती करनी होगी और विकासशील देशों को दी जाने वाली आर्थिक मदद बढ़ानी होगी। ऐसा हो नहीं रहा है। ग्लोबल वॉर्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित कर देने का जिक्र समझौते के मसौदे में किया गया है, जिसे कल जारी किया गया था। भारत समेत बेसिक देशों ने इस मांग को रेखांकित करने के लिए अपने विकल्प खुले रखे हैं । इन देशों ने कहा था कि वे जल्द ही एक निष्कर्ष तक पहुंचने की उम्मीद के साथ इस मुद्दे पर चर्चा कर रहे हैं।
ब्राजील की पर्यावरण मंत्री इजाबेला टीक्सीरिया ने कहा, बीजिंग बैठक के बाद हमारे संयुक्त बयान में हमने वैश्विक तापमान में औसत वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस से कम रखने के महत्व पर जोर दिया। लेकिन हम इस बात को रेखांकित करना चाहेंगे कि हम :1.5 डिग्री के लक्ष्य: से जुड़ी चिंताओं के बारे में सचेत हैं। बेसिक देशों के साझा संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा, यह चिंता का विषय है और हम इस पर चर्चा कर रहे हैं। यह ब्राजील और बेसिक देशों के लिए भी चिंता का विषय है। मैं स्पष्ट तौर पर कह सकती हूं कि सम्मेलन के दौरान हम इस पर एक साझा रूख लेकर आएंगे। हम इस समझौते के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। हम उम्मीद करते हैं कि इस पर एक सहमति बनेगी।
वर्ष 2009 में देशों में इस बात पर सहमति बनी थी कि इस शताब्दी के अंत तक वैश्विक तापमान को पूर्व औद्योगिक काल के तापमान से दो डिग्री सेल्सियस से ज्यादा नहीं बढ़ने दिया जाना चाहिए। छोटे द्वीपीय देशों, बेहद कम विकसित देशों और कमजोर देशों की ओर से इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस करने की मांग लगातार उठती रहीं। इस मांग को बीते समय में ज्यादा महत्व नहीं मिला लेकिन पेरिस में स्थिति बदली और यह मांग यहां बढ़ गई है। हालांकि भारत ने यह स्पष्ट किया है कि वह वैश्विक तापमान के लक्ष्य को कम करने की मांगों के प्रति बैर नहीं रखता।
भारत के विशेषग्यों ने आज कहा कि विश्व को कार्बन क्षेत्र के न्यायसंगत आवंटन पर और विकसित देशों से विकासशील देशों को मिलने वाली आर्थिक एवं तकनीकी मदद में भारी वृद्धि करने पर सहमत होना चाहिए ताकि यह लक्ष्य हासिल किया जा सके। उन्होंने कहा कि विकसित देशों को अपने प्रयासों में पर्याप्त वृद्धि करनी होगी और अगले पांच-दस साल में शून्य उत्सर्जन तक पहुंचना होगा। यदि वे ऐसा करने में विफल रहते हैं तो 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य खोखला रह जाएगा, जिसका कोई असल महत्व होगा ही नहीं।