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जलवायु परिवर्तन की भेंट चढ़ जाएंगे ये पेय और आहार

जलवायु परिवर्तन से सिर्फ मौसम को ही नुकसान हो रहा हो ऐसा नहीं है। पर्यावरण भी इसकी ज़द में है। पर्यावरण में हो रहे बदलाव के कारण हम कई खाने पीने की चीज़ें भी खोते

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जलवायु परिवर्तन से सिर्फ मौसम को ही नुकसान हो रहा हो ऐसा नहीं है। पर्यावरण भी इसकी ज़द में है। पर्यावरण में हो रहे बदलाव के कारण हम कई खाने पीने की चीज़ें भी खोते जा रहे हैं।

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1- मक्का

पानी की कमी और बढ़ते तापमान का असर मक्के की खेती पर दिकने लगा है। खेती में कमी आ रही है। इससे भी बुरी बात यह है कि तापमान में ज़रा भी वृद्धि से मक्के का उत्पादन प्रभावित होता है। यदि तापमान इसी तरह बढ़ता रहा तो इससे मक्के का उत्पाद कम होगा। नतीजन मांस इत्यादि की कीमत में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हो सकती है। मक्के की कमी न सिर्फ खाने में दिखेगी बल्कि बाज़ार को भी बुरी तरह प्रभावित करेगी। ये भी हो सकता है कि हम एक दिन मक्के का स्वाद ही भूल जाएं।

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2- मूंगफली

मूंगफली के उत्पादन में कमी आ रही है जिससे इनकी कीमत में उछाल आ सकता है। दरअसल मूंगफली की खेती में सही अनुपात में बरसात और सूरज की रोशनी की ज़रुरत होती है। लेकिन बदलते तापमान की वजह से ये संभव नहीं हो पा रहा और नतीजनत मूंगफली के पैदावर, खपत से ज्यादा है जो इसकी कीमत को बढ़ाने के लिए काफी है।

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3- मैपल सिरप

नमीयुक्त ठंड और सूखी गर्मी के चलते शुगर मैपल पर भारी असर पड़ रहा है। तापमान में हुए बढ़ोत्तरी के चलते मैपल या चिनार के पेड़ प्राकृतिक प्रक्रिया को सही ढंग से अंजाम नहीं दे पाते। परिणामस्वरूप उनका उत्पादन कम होने लगता है। विशेषज्ञों की मानें तो तापमान मौजूदा समय अनुकूल बदलता रहा तो मैपल का बाज़ार पेनसिलवेनिया जैसे क्षेत्रों से खिसक सकता है।

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4-चाकलेट

इंटरनेटशनल सेंटर फार ट्रापिकल एग्रीकल्चर के 2011 में किये गए शोध से यह बात सामने आयी थी कि अगले कुछ दशकों में कोको बीन्स के उत्पादन में भारी गिरावट आ सकती है। नतीजतन बाज़ार में चाकलेट दिखनी कम हो सकती हैं। असल में चाकलेट कोको बीन्स से ही बनते हैं। यदि जलवायु परिवर्तन के चलते कोको बीन्स का उत्पादन में कमी आयी तो निश्चित रूप से चाकलेट का टेस्ट हमारे लिए सपना ही रह जाएगा।

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5-सीफूड

जलवायु में हो रहे परिवर्तन का असर समुद्रों के बढ़ते स्तर में भी देखा जा सकता है। दरअसल जलवायु परिवर्तन के चलते समुद्र में कार्बडाइआक्साइड की मात्रा बढ़ रही है। नतीजनत समुद्र तेज़ाबी होता जा रहा है। यह न सिर्फ इन्सानों के लिए ख़तरे की बात है बल्कि समुद्र में रह रहे तमाम जीव के लिए भी जानलेवा है। समुद्र में रह रहे जीव मसलन आयस्टर आदि कम पैदा होंगे जिससे समुद्री दुनिया प्रभावित होगी। इसके अलावा एक अध्ययन यह भी ख़ुलासा करता है कि समुद्री जीव समुद्र में बढ़ते एसिड के मुताबिक खुद को एड्जेस्ट नहीं कर पाएंगे। नतीजनत समुद्री जीवों में भारी कम आ सकती है। मतलब साफ है कि आने वाले कुछ दशकों में ही हम सीफूड से वंचित हो सकते हैं।

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