लंदन: 'द लैन्सेट' पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार फाइजर-बायोएनटेक टीका भारत में पाए गए कोरोना वायरस के डेल्टा स्वरूप (बी.1.617.2) के खिलाफ कम एंटीबॉडी पैदा करता है। अध्ययन में यह भी बताया गया है कि वायरस को पहचानने और उसके खिलाफ लड़ने में सक्षम एंटीबॉडी बढ़ती आयु के साथ कमजोर होती चली जाती है और इसका स्तर समय के साथ गिरता चला जाता है।
इसमें कहा गया है कि फाइजर-बायोएनटेक टीके की केवल एक खुराक देने से लोगों में बी.1.617.2 स्वरूप के खिलाफ एंटीबॉडी का स्तर विकसित होने की संभावना इसके पिछले स्वरूप बी.1.1.7 (अल्फा) की तुलना में कम है। ब्रिटेन के फ्रांसिस क्रिक इंस्टीट्यूट के अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किये गए अध्ययन में कहा गया है कि केवल एंटीबॉडी का स्तर ही टीके की प्रभावकारिता की भविष्यवाणी नहीं करता बल्कि संभावित रोगियों पर अध्ययनों की भी जरूरत होती है।
अध्ययन के दौरान कोविड रोधी टीके फाइजर-बायोएनटेक की एक या दोनों खुराकें ले चुके 250 स्वस्थ लोगों के रक्त में, पहली खुराक लेने के तीन महीने बाद तक एंटीबॉडी का विश्लेषण किया गया। अध्ययनकर्ताओं ने सार्स-कोव-2 वायरस के पांच विभिन्न स्वरूपों के कोशिकाओं में जाने से रोकने के लिये एंटीबॉडी की क्षमता का परीक्षण किया।
इस बीच ब्रिटिश दवा नियामक ने देश में 12 से 15 साल के बच्चों के टीकाकरण के लिए फाइजर की कोविड वैक्सीन को मंजूरी प्रदान की है। दवा और स्वास्थ्य सुविधा उत्पाद नियामक एजेंसी (एमएचआरए) ने कहा है कि कम उम्र समूह के लोगों में सुरक्षा और प्रभाव को लेकर ‘‘गहन समीक्षा’’ और इस नतीजे के बाद यह फैसला किया गया कि किसी जोखिम की तुलना में टीके के फायदे ज्यादा हैं।
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