आव्रजन के मुद्दे पर गई बेल्जियम के प्रधानमंत्री की कुर्सी, जनवरी में होंगे चुनाव
बेल्जियम के प्रधानमंत्री चार्ल्स मिशेल को आव्रजन के मुद्दे पर इस्तीफा देना पड़ा है।
ब्रसेल्स: बेल्जियम के प्रधानमंत्री चार्ल्स मिशेल को आव्रजन के मुद्दे पर इस्तीफा देना पड़ा है। आव्रजन पर संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक समझौते का समर्थन करने के बाद गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी ने उनकी सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। इसके बाद से उनकी सरकार पर दवाब बढ़ रहा था। मिशेल ने बेल्जियम के सांसदों से मंगलवार को कहा, ‘मैं अपने इस्तीफे की पेशकश करने का निर्णय ले रहा हूं। अब मैं राजा को सूचित करने जा रहा हूं।’
सांसद मांग कर रहे थे कि मिशेल की सरकार विश्वास मत का सामना करे लेकिन वह अब तक इससे इनकार करते आए थे। मिशेल की गठबंधन सरकार कुल 4 साल तक चली है। इसके साथ ही देश में जनवरी में नए सिरे से चुनाव होने का रास्ता भी साफ हो गया। हालांकि मिशेल की कोशिश थी कि सरकार अगले साल 26 मई तक चल जाए। उन्होंने चेतावनी दी थी कि ऐसा न होने पर देश को दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।
वर्ष 2014 में पद संभालने वाले मिशेल ने संयुक्त राष्ट्र आव्रजन समझौते पर अपने समर्थन के चलते न्यू फ्लेमिश अलायंस (N-VA) का समर्थन खो दिया। मंगलवार को उनका इस्तीफा तब आया जब 2 दिन पहले मध्य ब्रसेल्स में समझौते के विरोध में हुए प्रदर्शन संघर्ष में बदल गए और पुलिस को आंसू गैस के गोले तथा पानी की बौछारें छोड़नी पड़ीं। संसद में चर्चा के दौरान विपक्षी दलों ने उनकी सरकार को मई में होने वाले चुनाव तक बनाए रखने के लिए अपना समर्थन जारी रखने से इनकार कर दिया। इसके बाद मिशेल ने इस्तीफा देने की घोषणा की।
सांसदों द्वारा उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने से पहले मिशेल ने कहा, ‘मैंने इस्तीफा देने का निर्णय किया है और मैं तत्काल राजा से मिलना चाहता हूं।’ राजमहल ने एक बयान में कहा कि राजा फिलिप ने मिशेल का इस्तीफा स्वीकार करने से पहले विचार-विमर्श करने का फैसला किया है। देश के कृषि मंत्री एवं मिशेल की पार्टी मूवमेंट रिफॉर्मेटर के नेता डेनिस डुकार्ने ने देश को संकट में डालने का खतरा उठाने के लिए वामपंथी और ग्रीन पार्टियों की निन्दा की।
आपको बता दें कि संयुक्त राष्ट्र महासभा ने शरणार्थियों पर एक व्यापक वैश्विक कम्पैक्ट सोमवार को स्वीकार किया था। इसका उद्देश्य बड़े शरणार्थी आंदोलनों के प्रबंधन करने के प्रयासों में सुधार लाना है। हालांकि इसमें अमेरिका और हंगरी का समर्थन नहीं मिला है। शरणार्थी समझौता 181 देशों द्वारा अनुमोदित किया गया था। केवल दो देश अमेरिका और हंगरी ने इसका विरोध किया था। तीन अन्य देश डोमिनिकन गणराज्य, एरिट्रिया और लीबिया मतदान से अनुपस्थित रहे थे।