लंदन: वैज्ञानिकों ने डायनासोरों और शुरूआती पक्षियों के पंखों में से 12.5 करोड़ साल पुरानी रुसी (डैंड्रफ) की खोज की है जिससे पता चलता है कि बड़े परभक्षी अपनी केंचुली कैसे उतारते थे। पंखों के जीवाश्म में मिली यह रुसी इंसान की रुसी की तरह ही सख्त कोशिकाओं से बनी है जिन्हें कोर्नियोसाइट्स कहा जाता है। ये कोशिकाएं रुखी होती हैं और उनमें केराटीन प्रोटीन भरा होता है। यह अध्ययन नेचर कम्युनिकेशन में प्रकाशित हुआ है। इसमें कहा गया है कि त्वचा का यह लक्षण मध्य जुरासिक काल के उत्तरार्ध में सामने आया और इसी दौरान त्वचा से जुड़ी कई दूसरी विशेषताएं भी सामने आईं।
ब्रिटेन में ब्रिस्टल विश्वविद्यालय की मारिया मेकनमरा ने बताया कि जीवाश्म की कोशिकाओं में से अहम जानकारियां मिली हैं, जिनमें केराटिन तंतुओं का मिलना भी शामिल है। इसमें अहम बात यह है कि यह जीवाश्म रुसी आज के दौर में मिलने वाले पक्षियों की रूसी से मेल खाती है। यहां तक कि तंतुओं में घुमावदार मोड़ भी साफ नजर आते हैं। उन्होंने कहा कि यह वह दौर था जब पंखों वाले डायनासोर और पक्षियों का तीव्र गति से विकास हुआ। इस बात के सबूत देखना किसी रोमांच से कम नहीं है कि शुरुआती पक्षियों और डायनासोर की त्वचा में पंखों के लिए बहुत तेजी से बदलाव हुए।
यह रुसी इस बात का पहला प्रमाण है कि डायनासोर अपनी केंचुली, शल्क और मृत त्वचा को कैसे उतारते थे। पंखों वाले डायनासौर माइक्रोरैप्टर, बीपियोसॉरस और साइनॉर्निथोसॉरस अपनी केंचुली, शल्क और मृत त्वचा उतारते थे। यह प्रक्रिया शुरूआती पक्षी कन्फ्यूशियसोर्निस की केंचुली उतारने की प्रक्रिया से बहुत मिलती-जुलती थी। इसके विपरीत कई आधुनिक सरीसृपों (रेप्टाइल) में केंचुली एक ही बार में या फिर कई बड़े टुकड़ों में उतारी जाती है। इसके साथ ही इस खोज ने यह भी बताया कि डायनासोर धरती के पहले प्राणी थे जिन्हें डैंड्रफ की समस्या होती थी।
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