South China Sea Controversy:दक्षिण चीन सागर पर चीन क्यों ठोकता है अपना दावा, जानें कितने देशों के साथ है विवाद?
South China Sea Controversy:पूरे दक्षिण चीन सागर पर चीन आखिर क्यों अपना दावा ठोकता रहा है। आखिर चीन ने क्यों इस सागर के कई फ्लैश प्वाइंट पर अपने लड़ाकू जेट, क्रूज मिसाइल और रडार प्रणाली की तैनाती कर चुका है।
Highlights
- फिलीपीं, वियतनाम, जापान, दक्षिण कोरिया और ताइवान के साथ है चीन का मुख्य विवाद
- प्राकृतिक द्वीपों को कृत्रिम रूप देकर चीन कर रहा उस पर अपना दावा
- अमेरिका ने दक्षिण चीन सागर में अपना युद्धपोत उतार कर चीन को दी चुनौती
South China Sea Controversy:पूरे दक्षिण चीन सागर पर चीन आखिर क्यों अपना दावा ठोकता रहा है। आखिर चीन ने क्यों इस सागर के कई फ्लैश प्वाइंट पर अपने लड़ाकू जेट, क्रूज मिसाइल और रडार प्रणाली की तैनाती कर चुका है। अमेरिका और फिलीपींस समेत अन्य देश किस तरह से इस महासागर में अपनी दमदार मौजूदगी से चीन के लिए चुनौती पैदा कर रहे हैं। दक्षिण चीन सागर से भारत का हित किस प्रकार जुड़ा है? दक्षिण चीन सागर पर अपना-अपना दावा ठोंकने वाले अन्य देश कौन से हैं। आइए आज आपको इन समस्त सवालों का जवाब देते हैं।
दक्षिण चीन सागर अप्रयुक्त तेल और प्राकृतिक गैस का विशाल भंडार है। फिशरिंग के लिए भी यह बहुत बड़ा क्षेत्र है। कहा जाता है कि इस क्षेत्र में 190 ट्रिलियन क्यूबिक फिट तक प्राकृतिक गैस का विशाल भंडार मौजूद है। इसके अलावा विभिन्न देशों के लिए सामिरक दृष्टि से भी दक्षिण चीन सागर बहुत अधिक महत्वपूर्ण है। समुद्र के रास्ते व्यापार के लिए भी इसकी महत्ता बेमिसाल है। इसीलिए चीन पूरे दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा करता है। मगर वियतनाम, ब्रुनेई, इंडोनेशिया, फिलीपींस, मलेशिया समेत अमेरिका और भारत चीन के इस दावे को खारिज करते हैं। उत्तर कोरिया, साउथ कोरिया, जापान, चीन, फिलीपींस, ताइवान, वियतनाम ये प्रमुख देश हैं, जिनका वॉटर टेरिटोरियल दक्षिण चीन सागर है।
ये है दक्षिण चीन सागर का प्रमुख विवाद
भारत के सेवानिवृत्त मेजर जनरल एस मेस्टन बताते हैं कि दक्षिण चीन सागर में टेरिटोरियल वॉटर को लेकर प्रमुख विवाद है। इसके अलावा एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन जोन (एडीआइजेड) विवाद का दूसरा प्रमुख कारण है। चीन ने 2013 में इसे अपनी मर्जी से बदल दिया था। यह विवाद का बड़ा कारण बन गया है। इससे जपान, साउथ कोरिया और ताइवान के एक्सक्लूसिव ईकोनॉमिक जोन (ईईजेड) को चीन का एडीआइजेड क्रॉस कर रहा है। यह विवाद का मुख्य कारण है। एडीआइजेड और ईईजेड को लेकर सभी देशों की दिलचस्पी है। इसकी वजह है कि सभी के वहां माइनिंग जोन (अप्रयुक्त तेल और प्राकृतिक गैस समेत अन्य रत्नों का बड़ा भंडार) और फिशरीज के लिए हित हैं । इसलिए ईईजेड पर सब अपना हक जमाना चाहते हैं। साथ ही अपनी समुद्री सीमा की रक्षा भी करना चाहते हैं।
मिलिट्री डॉमिनेंसी को लेकर भी विवाद
मेजर जनरल मेस्टन कहते हैं कि एडीआइजेड और ईईजेड के अलावा मिलिट्री डॉमिनेंसी के लिए भी विभिन्न देशों के बीच दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में विवाद है। क्योंकि सभी देश यहां अपने लिए नेवल पेट्रोलिंग और एयर क्रॉफ्ट पेट्रोलिंग करना चाहते हैं और करते भी हैं। यह विवाद का कारण है। हर देश का एक एडीआइजेड होता है। हर देश का इस क्षेत्र में कोई जहाज आता है, जो निगरानी करता है। दूसरे देशों द्वारा इसे डिटेक्ट किया जाता है। किसी एक देश का युद्धपोत या जंगी जहाज दूसरे देश के के एडीआइजेड में नहीं जा सकता। ऐसा होने पर विवाद शुरू हो जाता है। जैसे अभी हाल में चीन ने ताइवान का एडीआइजेड क्रॉस किया था। इसके बाद अमेरिका का सातवां बेड़ा दक्षिण चीन सागर में पहुंचा तो चीन ने अपने एडीआइडेज में घुसने का आरोप लगाया।
आइलैंड को लेकर विवाद
मेजर जनरल मेस्टन बताते हैं कि दक्षिण चीन सागर में विवाद के एक नहीं कई कारण हैं। इनमें से एक वजह विवादित आइलैंड भी हैं। दक्षिण चीन सागर में कई विवादित आइलैंड हैं, जहां हर कोई अपना हक जमाना चाहता है। यहां जापान का एक नार्थ साखालिन आइलैंड है। द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान, जर्मनी एक थे। जापान चीन में तब काफी अंदर तक आ गया था। इंडिया में भी नागालैंड तक आ गया था। रूस में भी वह कई क्षेत्रों में घुस गया था। इन सबकी मदद अमेरिका और पश्चिम ने की। इसके बाद कई देशों का एक एलायंस बना। इसमें रूस, चीन और अमेरिका सब एक एलायंस में थे। उस वक्त जापान बहुत ताकतवर था। इसलिए अमेरिका ने उस पर न्यूक्लियर अटैक किया। इसके बाद सैन फ्रांसिस्सको ट्रीटी और याल्टा एग्रीमेंट हुआ। इसमें जापान के सामने कई कठिन शर्तें रखीं गईं। फिर जापान इन क्षेत्रों से हट गया। बाद में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद रूस ने इसका फायदा उठाया और जापान के नॉर्थ साखालिन आइलैंड पर कब्जा कर लिया। जो कि जापान का पैसिफिक आइलैंड है। इसलिए जापान की न तो चीन से बनती है न रूस से और न ही उत्तर कोरिया से।
इन आइलैंड को लेकर भी विवाद
- दक्षिण चीन सागर स्थित पार्सल द्वी समूह पर चीन, वियतनाम और ताइवान अपना दावा ठोंकते हैं।
- इसी तरह स्प्रैटली आइलैंड पर चीन, ब्रुनेई, वियतनाम और फिलीपींस दावा करते हैं।
- स्कारबोरो सोल आइलैंड पर फिलीपांस, चीन और ताइवान दावा करते हैं।
- वर्ष 2010 में चीन ने संयुक्त राष्ट्र कानून संधि के तहत दर्शाने के लिए निर्जन छोटे-छोटे आइलैंड को कृत्रिम दिखाने की चालाकी कर रहा है।
- इन आइलैंड के आकार व संरचना को कृत्रिम तरीके से परिवर्तित कर रहा है।
- चीन ने स्प्रैटली और पार्सल में अपनी हवाई पट्टी भी बना दी है।
- चालाक चीन ने मछली पकड़ने वाले बेड़े को अर्धसैनिक के काम में लगा दिया है।
- अमेरिका समेत फिलीपींस, ताइवान, वियतनाम, जापान और भारत इसका विरोध करते हैं।
पैसिफिक आइलैंड वाले देशों में अपना बेस बनाना चाह रहा चीन
मेजर जनरल मेस्टन कहते हैं कि दक्षिण चीन सागर पर अपने दावे के परिप्रेक्ष्य में अपनी पकड़ को मजबूत करने के लिए चीन पैसिफक आइलैंड वाले एक दर्जन से अधिक देशों में अपना बेस बनाना चाह रहा है। मगर इसकी जानकारी होते ही अमेरिका ने इन सभी देशों के प्रधानमंत्रियों को बुलाकर बातचीत की है और चीन को ऐसा करने से अभी दो दिन पहले ही रोक दिया है। भारत भी इस मामले में अमेरिका के साथ है।
फ्लैश प्वाइंट को लेकर विवाद
फ्लैश प्वाइंट भी विवाद की प्रमुख वजह हैं। इनमें से एक मिडिल ईस्ट फ्लैश प्वाइंट और दक्षिण चीन सागर फ्लैश प्वाइंट प्रमुख हैं। वहीं अमेरिका और चीन के बीच ताइवान भी फ्लैश प्वाइंट है। रूस-यूक्रेन युद्ध भी एक फ्लैश प्वाइंट है। इसी तरह इंडिया के नॉदर्न और वेस्टर्न बॉर्डर फ्लैश प्वाइंट हैं, जहां कभी कुछ हो सकता है। इसे दुनिया कैसे डील करेगी, इस पर निर्भर करेगा। क्योंकि यहां तक पहुंचने में भारत को काफी समय लग सकता है। इसलिए यहां कुछ हुआ तो पहले रेस्पांडर अमेरिकी, फिलीपींस, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देश होंगे। इसलिए भारत को इन देशों के साथ अच्छे संबंध रखने होंगे। एक फ्लैश प्वाइंट पर उत्तर कोरिया है, जो पूरी दुनिया को धमकी का संदेश देना चाहता है खासकर अमेरिका, साउथ कोरिया और जापान को कि हमसे पंगा लिया थो हमारे पास खतरनाक मिसाइल हैं और हम हमला कर सकते हैं।
विवाद को खत्म करने के लिए अमेरिका कर रहा प्रयास
चीन की दखलंजादी के चलते अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत विदेशी सेनाएं अपने विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) में खुफिया-एकत्रित गतिविधियों, जैसे टोही उड़ानों का संचालन करने में सक्षम नहीं हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका के अनुसार समुद्र के कानून के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (यूएनसीएलओएस) के तहत दावेदार देशों को समुद्र में ईईजेड के माध्यम से नेविगेशन की स्वतंत्रता होनी चाहिए और सैन्य गतिविधियों के दावेदार दूसरे देशों को इसके लिए सूचित करने की आवश्यकता नहीं है। इधर हाल के वर्षों में उपग्रह इमेजरी ने द्वीपों के आकार को भौतिक रूप से बढ़ाकर या नए द्वीपों का निर्माण करके दक्षिण चीन सागर में भूमि को पुनः प्राप्त करने के लिए चीन के बढ़े हुए प्रयासों को दिखाया है। चीन ने मौजूदा भित्तियों पर रेत जमा करने के अलावा बंदरगाहों, सैन्य प्रतिष्ठानों और हवाई पट्टियों का निर्माण किया है। विशेष रूप से पैरासेल और स्प्रैटली द्वीप समूह में, जहां इसकी क्रमशः सत्ताईस और सात चौकी हैं। चीन ने लड़ाकू जेट, क्रूज मिसाइल और एक रडार प्रणाली तैनात करके वुडी द्वीप का सैन्यीकरण कर दिया है। मगर इस क्षेत्र में अपने राजनीतिक, सुरक्षा और आर्थिक हितों की रक्षा के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका ने दक्षिण पूर्व एशियाई भागीदारों के लिए समर्थन करके चीन के मुखर क्षेत्रीय दावों और भूमि सुधार के प्रयासों को चुनौती दी है। साथ ही विवादित क्षेत्र में चीन की मुखर उपस्थिति के जवाब में, जापान ने अपनी समुद्री सुरक्षा क्षमता में सुधार करने और चीनी आक्रमण को रोकने के लिए फिलीपींस और वियतनाम को सैन्य जहाज और उपकरण बेचे हैं। इससे चीन चिंतित है।
चीन की दखलंदाजी से खतरे में समुद्री सीमा
नेविगेशन की स्वतंत्रता की वकालत करने वाले अमेरिका ने संचार की समुद्री लाइनों को सुरक्षित करने के लिए सभी देशों के लिए बाध्यकारी आचार संहिता और अन्य विश्वास-निर्माण के उपायों पर एक समझौते के लिए समर्थन किया है। क्योंकि दक्षिणी चीन सागर में चीन की दखलंदाजी से समुद्री सीमाओं को खतरा है। इसमें कई समुद्री मार्ग हैं, जो व्यापार और नौसैनिक बलों के लिए आवाजाही की सुविधा प्रदान करते हैं। इसलिए संयुक्त राज्य भी सैन्य वृद्धि को क्षेत्रीय विवाद के परिणामस्वरूप रोकने की भूमिका में है।
चीन, फिलीपींस और वियतनाम के बीच प्रमुख विवाद
मनीला के साथ वाशिंगटन की रक्षा संधि विवादित क्षेत्र में पर्याप्त प्राकृतिक गैस भंडार या मछली पकड़ने के आकर्षक मैदान पर संभावित चीन-फिलीपींस संघर्ष में संयुक्त राज्य अमेरिका को आकर्षित कर सकती है। राजनयिक माध्यमों से विवादों को सुलझाने में चीनी और दक्षिण पूर्व एशियाई नेताओं की विफलता भी समुद्री विवादों को नियंत्रित करने वाले अंतरराष्ट्रीय कानूनों को कमजोर कर सकती है और हथियारों के निर्माण को अस्थिर करने को प्रोत्साहित कर सकती है। हालांकि
चीन, फिलीपींस और वियतनाम के बीच तनाव हाल ही में ठंडा हो गया है। यहां तक कि चीन ने मार्च और अप्रैल 2018 में नौसैनिक युद्धाभ्यास और अभ्यास की एक श्रृंखला आयोजित करके दक्षिण चीन सागर में अपनी सैन्य गतिविधि बढ़ा दी है। इस बीच, चीन सैन्य और औद्योगिक चौकियों का निर्माण जारी रखता है। कृत्रिम द्वीपों पर इसने विवादित जलक्षेत्र में निर्माण किया है। इसे देखते हुए अमेरिका ने भी हाल के वर्षों में इस क्षेत्र में अपनी सैन्य गतिविधि और नौसैनिक उपस्थिति को बढ़ा दिया है, जिसमें जनवरी और मार्च 2018 में नेविगेशन संचालन (एफओएनओपी) की स्वतंत्रता शामिल है। नवंबर 2017 में दक्षिण पूर्व एशिया की अपनी यात्रा के दौरान एक भाषण में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड जे ट्रंप ने इस तरह के अभियानों के महत्व और दक्षिण चीन सागर तक मुक्त और खुली पहुंच सुनिश्चित करने पर जोर दिया था। मई 2017 से, संयुक्त राज्य अमेरिका ने इस क्षेत्र में छह एफएनओपी आयोजित कर चुका है।
चीन और अमेरिका के बीच ठनी
दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती दखलंदाजी को रोकने के लिए अमेरिका हर प्रयास कर रहा है। हाल ही में अमेरिका ने दक्षिण चीन सागर के पार्सल आइलैंड के पास अपना युद्धपोत भेज दिया है, जिस पर चीन अपना दावा और कब्जा लंबे समय से जमाता रहा है। इस पर चीन अमेरिका को चेतावनी दे रहा है और इसे अपने क्षेत्र में अमेरिका की जबरदस्ती बता रहा है। चीन का कहना है कि अमेरिकी युद्धपोत उसकी समुद्री सीमा में बिना अनुमति के आ गया है। इसपर अमेरिका ने चीन को कड़ा जवाब देते कहा कि उसके युद्धपोत की उपस्थिति दक्षिण चीन सागर में अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत है और वह इस क्षेत्र में नौपरिवहन मार्ग की सुरक्षा में मदद कर रहा है। अब अमेरिका का एक युद्धपोत हमेशा दक्षिण चीन सागर में दस्तक दे रहा है।
क्या है दक्षिण चीन सागर
यह दक्षिण-पूर्व एशिया में स्थित पश्चिमी प्रशांत महासागर का हिस्सा है। यह चीन के दक्षिण और पूर्व में व वियतनाम के दक्षिण, फिलीपींस के पश्चिम और बोर्नियो आइलैंड के उत्तर में स्थित है। यह पूर्वी चीन सागर से ताइवान जलसंधि और फिलीपींस सागर से लूजान जलसंधि से जुड़ा है। दक्षिणी चीन महासागर का लिंक हिंद महासागर और प्रशांत महासागर (मलक्का जलडमरूमध्य) होने के कारण यह अत्यधिक सामरिक और रणनीतिक महत्व वाला सागर है। इस महासागर के जरिये अरबों डॉलर का व्यापार विभिन्न देशों के बीच होता है। अमेरिका के अनुसार भारत इस क्षेत्र में कई सौ वर्षों से समुद्री व्यापार विभिन्न देशों के बीच करता रहा है।
भारत का पक्ष
भारत का कहना है कि वह दक्षिण चीन सागर में अपनी उपस्थिति सिर्फ आर्थिक हितों और ऊर्जा सुरक्षा की जरूरतों को लेकर दर्ज कराना चाहता है। वह किसी विवाद के पक्ष में या किसी पर नियंत्रण करने के इरादे से नहीं है। मगर चीन की समुद्री चुनौती को स्वीकार करने के लिए भारत अब हिंद-प्रशांत महासागर में अपना विस्तार कर रहा है। इतना ही नहीं भारत ने हाल ही में वियतनाम में अपने समुद्री मार्ग की सुरक्षा के लिए दक्षिण चीन सागर में नौसेना की तैनाती भी कर दी है। चीन इसका विरोध कर रहा है। इसके अतिरिक्त भारत ने क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया) के तहत एसि इंडो-पैसिफक क्षेत्र का हिस्सा बताया है। चीन इस पहल को नियंत्रण रणनीति के तहत देख रहा है।