बेमौसम ओला-बारिश, मानसून की चाल पहचानने में क्यों नाकामयाब हो रहे हैं वैदर एक्सपर्ट?
जलवायु परिवर्तन का असर दुनिया के हर हिस्से पर देखा जा रहा है। गीले इलाके ज्यादा बारिश से प्रभावित हैें तो सूखे इलाके और सूखते जा रहे हैं। क्यों बदल रही है जलवायु। जानिए इन सवालों के जवाब।
Indian Climate Change: भारत में मौसम लगातार करवट ले रहा है। कभी बारिश, कभी लू तो कभी ओलावृष्टि। पहाड़ों पर अप्रैल और मई में भी बर्फबारी हो रही है। ऐसा क्यों हो रहा है। क्या एक्सपर्ट मानसून की चाल को पहचानने में कहीं गच्चा खा रहे हैं? क्यों बदल रही है जलवायु। जानिए इन सवालों के जवाब। जलवायु को बदलने वाले जीवाश्म ईंधनों को एनर्जी के लिए जलाना और प्रदूषण मानसून को बदल रहा है। खेती पर मानसून का काफी असर पड़ता है। भारत में तो यह कहा भी जाता है कि भारती कृषि मानसून का जुआ है। यानी जिस साल अच्छा मानसून रहता है उस साल किसान धन धान्य से भरपूर हो जाता है। लेकिन ये मौसम इस बार क्यों बदल रहा है।
जलवायु परिवर्तन का असर दुनिया के हर हिस्से पर देखा जा रहा है। गीले इलाके ज्यादा बारिश से प्रभावित हैें तो सूखे इलाके और सूखते जा रहे हैं। यूनाइटेड नेशन की इंटरगवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज यानी आईपीसीसी ने ध्यान दिलाया है कि भले ही क्लाइमेट चेंज के कारण एशिया में बारिश ज्यादा हो सकती है पर कई जगह जलवायु परवर्तन के कारण मानसून की चाल बदल गई है।
क्यों बदल रहा है मानसून अपनी चाल?
मानसून में इस बदलाव को एरोसॉल के बढ़ने से जोड़ा जा रहा है। यह एक केमिकल है जिसके छोटे कण या बूंदें हवा में तैरती रहती हैं। यह इंसानी गतिविधियों के कारण बढ़ता है। फॉसिल्स फ्यूल्स को जलाना, धुआं, प्रदूषण ये सब एरोसॉल को बढ़ाते हैं। भारत लंबे समय से प्रदूषण से जूझ रहा है। इस कारण स्मॉग की चादर फिजा में फैल जाती है।
वैज्ञानिकों के लिए मुश्किल हो रहा मानसून का रहस्य सुलझाना
मानसून का रहस्य सुलझा पाना वैज्ञानिकों के लिए भी मुश्किल हो रहा है। मौसम का पूर्वानुमान बताने वाली एजेंसी 'स्काईमेट' के बारे में जानकारी देने वाली हाल के समय में भारत में मानसून की अवधि छोटी लेकिन तीव्र हो गई है। स्काईमेट के अनुसार मानसून कुछ इलाकों में बाढ़ तो कुछ इलाकों में सूखे की स्थिति पैदा कर रहा है।
4 दिन से एक ही जगह क्यों अटका हुआ है आने वाला मानसून?
इस बार के मानसून को ही लें, तो इस बार 4 दिन तक मानसून अंडमान निकोबार में ही अटका हुआ रहा है। भारत में पश्चिमी हवाओं के कारण गर्मी 'गल' गई है। गर्मी के मौसम में बारिश और आंधी से मध्य और उत्तरी व उत्तरी पश्चिमी भारत के राज्यों का तापमान गिर गया। हीटवेव खत्म हो गई। इन बदली परिस्थितियों के कारण न्यूनदाब नहीं बन पाया। क्योंकि मानसूनी हवाएं अधिक दाब से तेज गर्मी और उमस वाले न्यूनदाब के इलाके की ओर तेज गति से 'मूव' करती है। यही कारण है कि कई वैज्ञानिक गर्मी के मौसम में बारिश को सही नहीं मानते हैं।
पूर्वानुमान गलत निकले, 23 साल में 6 बार बनी सबसे बड़े सूखे की स्थिति
साल 2000 के बाद से अब तक छह बड़े सूखे की स्थिति आ चुकी है, लेकिन पूर्वानुमान लगाने वाले उनके बारे में जानकारी नहीं दे सके। ऐसे में किसान तो रूष्ट हुए ही हैं। एमपी के किसानों ने तो 2020 में यहां तक कह दिया था कि वे गलत पूर्वानुमान के कारण मौसम विभाग पर मुकदमा दायर करेंगे। वैसे मानसून की सही भविष्यवाणी के लिए सरकार ने सेटेलाइट, सुपर कम्प्यूटर और खास तरह के वेदर रडार स्टेशनों का नेटवर्क बनाया है। इन सबके नतीजे में मामूली बेहतरी ही आई है।
जानिए मौसम का सही अनुमान लगाने में क्यों आ रही मुश्किल?
ब्राउन यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन और एरोसॉल का असर भारत में मौसम का सही पूर्वानुमान लगाने में मुश्किल पैदा कर रहा है। उनका रिसर्च मुख्य रूप से एशियाई और भारतीय मानसून पर केंद्रित है। भारत के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के विशेषज्ञ कहत हैं कि हाल के वर्षों में मानसून की बारिश और ज्यादा अनियमित हुई है। उन्होंने कहा, 'बारिश थोड़े दिनों के लिए हो रही है लेकिन जब बारिश होती है तो भारी बारिश होती है।' वैज्ञानिकों के अनुसार मानसून की चाल भी बदली है और बादलों ने अपना रास्ता भी बदल लिया है। यही कारण है कि कई राज्यों में ज्यादा बारिश हो रही है, तो कई जगह सामान्य से भी कम।