अंकारा: तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तयैप एर्दोआन 20 साल पहले एक विनाशकारी भूकंप से पैदा हुए हालात की वजह से ही सत्ता में आए थे। दरअसल, जनता भूकंप से निपटने में तत्कालीन सरकार के तौर-तरीके से बेहद नाराज थी और उसने खुलकर एर्दोआन की पार्टी को अपना समर्थन दिया था। अब जब देश में चुनाव के महज 3 महीने रहे गये हैं, ऐसे में एर्दोआन का राजनीतिक भविष्य अब इस जबरदस्त भूकंप से पैदा हुए हालात से उनकी सरकार के निपटने, और जनता पर इसके असर से तय होने की संभावना है।
20 साल पहले का दौर क्यों आ रहा याद?
एक्सपर्ट्स का मानना है कि एर्दोआन के लिए यह बड़ी चुनौती बनने जा रही है जिन्होंने अपनी निरंकुश लेकिन अपने काम को सही तरीके से करने वाले एक शख्स की साख बना रखी है जो किसी भी काम को अंजाम तक पहुंचा ही देता है। इस बार भूकंप के बाद की स्थिति भी 20 सा पहले हुए चुनावों के जैसी ही है, क्योंकि तब तुर्की वित्तीय संकट में फंसा था जिसकी वजह से उसकी अर्थव्यवस्था चरमरा रही थी, और आज भी उसकी अर्थव्यवस्था पर आसमान छूती महंगाई का साया है।
एर्दोआन के लिए मुसीबत बनेगी महंगाई?
महंगाई भी एर्दोआन के लिए एक बड़ी मुसीबत बन सकती है क्योंकि इस समस्या से निपटने के उनके तौर तरीकों की काफी आलोचना हुई है। महंगाई के कारण लाखों गरीब एवं मध्यमवर्गीय वर्ग लोग अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने की जद्दोजहद कर रहे हैं। तुर्की के भूकंप ने कुछ इलाकों में इन दोनों वर्गों से आने वाले लोगों की मुश्किलों में और इजाफा ही कर दिया है, ऐसे में आने वाला चुनाव एर्दोआन के राजनीतिक भविष्य के लिए बेहद मुश्किल हो सकता है।
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2003 में तुर्की के राष्ट्रपति बने थे एर्दोआन
बता दें कि एर्दोआन मार्च 2003 में तुर्की के प्रधानमंत्री बने थे और अगस्त 2014 तक इस पद पर रहे। इसके बाद अगस्त 2014 में वह देश के राष्ट्रपति बने और धीरे-धीरे एक तानाशाह के रूप में सत्ता पर अपनी पकड़ बेहद मजबूत कर ली। हालांकि पिछले कुछ सालो में उनके खिलाफ एक वर्ग में असंतोष की भी काफी खबरें आई हैं।
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