Subhas Chandra Bose: 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' नारे से हिंदुस्तान के हर नागरिक में देशभक्ति की भावना जगाने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज 77वीं पुण्यतिथि है। बोस भारत के ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे, जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम को देश की सीमाओं से बाहर ले गए थे। ये बात हैरान करने वाली है कि आजादी के 75 साल बाद भी इस महान क्रांतिकारी की अस्थितयां अभी तक भारत नहीं आई हैं। नेताजी की पुण्यतिथि पर उनकी बेटी अनीता बोस प्फॉफ ने भारत सरकार से अपील करते हुए कहा है कि अब वक्त आ गया है, जब उनकी अस्थियों को मातृभूमि में लाया जाए।
इसके साथ ही उन्होंने डीएनए टेस्टिंग की बात भी कही है। अनीता ने कहा कि ये टेस्टिंग नेताजी की रहस्यमयी मौत से जुड़े सभी सवालों के जवाब दे देगी। यहां तक कि आज भी सुभाष चंद्र बोस की अस्थियां जापान के रनकोजी मंदिर में रखी गई हैं।
जापान की जांच रिपोर्ट में क्या पता चला
कई इतिहासकारों का मानना है कि नेताजी की मौत 18 अगस्त, 1945 को ताइवान में प्लेन क्रैश में हुई थी। विमान में बम धमाका हुआ था। नेताजी के निधन के वक्त कई जापानी लोग भी उनके साथ थे। इस मामले में 1956 में जापान में एक विस्तृत रिपोर्ट आई थी। जो 2016 में सार्वजनिक हुई। रिपोर्ट में कहा गया कि नेताजी का अंतिम संस्कार ताइहोकू प्रांत में किया गया है। ये जगह वर्तमान में ताइवान की राजधानी ताइपे में है। उस वक्त उनकी अस्थियां उनके करीबी दोस्त एसए अयैर को सौंपी गई थीं। हालांकि उस वक्त उनका निजी सामान तोक्यो में इंडियन फ्रीडम असोसिएशन के राममूर्ति को दिया गया। फिर इन चीजों को 8 सितंबर, 1945 में तोक्यो में इंपीरियल हेडक्वार्टर को सौंप दिया गया।
रनकोजी मंदिर में रखी हैं अस्थियां
इसके बाद 14 सितंबर, 1945 में नेताजी की अस्थियां तोक्यो के रनकोजी मंदिर में रखी गईं। तभी से अस्थियां यहीं रखी हुई हैं। अस्थियों को मंदिर के पुजारी केयोई मोचिजुकि ने संभालकर रखा हुआ है। वह हैरान हैं कि अब भी इन्हें भारत क्यों नहीं ले जाया जा सका है। हर साल नेताजी की पुण्यतिथि पर मंदिर में प्रार्थना सभा आयोजित की जाती है। इसके प्रमुख मंदिर में इस सभा का आयोजन करते हैं, जिसमें जापान और भारत के कई प्रमुख लोग शामिल होते हैं। इस कार्यक्रम में भारतीय दूतावास के अधिकारी भी नेताजी को श्रद्धांजलि देने पहुंचे। जिस मंदिर में अस्थियां रखी गई हैं, वह एक बौद्ध मंदिर है और यहां निचिरिन बौद्ध धर्म के लोग आते हैं।
भारत ने क्या किया है?
साल 2016 में जब भारत सरकार ने नेताजी से जुड़ी फाइल सार्वजनिक कीं, तो पता चला कि नेताजी की अस्थियों की देखभाल के लिए भारत सरकार ने पैसा दिया है। 1967 से 2005 तक भारत ने मंदिर को 52,66,278 रुपये दिए। ऐसा भी नहीं है कि भारत की तरफ से अस्थियां लाने के लिए कोई कोशिशें नहीं हुईं। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1950 के दशक में इन्हें वापस लाने के लिए कोशिश की थी। लेकिन ऐसा कहा गया कि नेताजी के परिवार ने उनकी मौत की बात मानने से इनकार कर दिया था। ऐसी स्थिति में नेहारू भारत में अस्थियां नहीं ला सके थे। इसके बाद मामले में जापान की सरकार ने कई बार भारत से संपर्क किया लेकिन केंद्र सरकार की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई।
बार-बार किए गए दावे
1979 में जब मोरारजी देसाई देश के प्रधानंमत्री बने थे, तब जापान के सैन्य खुफिया अधिकारी ने उनसे संपर्क किया था। इस अधिकारी के नेताजी की आजाद हिंद फौज (आईएनए) के साथ गहरा रिश्ता था। उन्होंने देसाई से अपील करते हुए नेताजी की अस्थियां वापस ले जाने के लिए कहा था। अधिकारी को यह सुनिश्चित किया गया कि एक या दो साल के भीतर समस्या का समाधान कर दिया जाएगा। लेकिन देसाई ने अपना पद खो दिया था और ऐसे में उनका वादा भी अधूरा रह गया। साल 2000 में आखिरी बार तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने नेताजी की अस्थियों को भारत लाने की इच्छा व्यक्त की थी। लेकिन बहुत कोशिशों के बाद भी नेताजी की अस्थियां आज तक भारत नहीं लाई जा सकी हैं।
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