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यूक्रेन के मैदान में नहीं, लेकिन संयुक्त राष्ट्र के मंच पर हारा रूस; जानें अब क्या करेगें पुतिन

एक वर्ष पहले यूक्रेन पर हमला करने वाला रूस भले ही कीव के मैदान में जेलेंस्की की सेना को नाकों चने चबवा दिया हो, लेकिन वह संयुक्त राष्ट्र के मंच पर करारी शिकस्त खा गया है। इससे रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को करारा झटका भी लगा है।

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन - India TV Hindi Image Source : AP रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन

एक वर्ष पहले यूक्रेन पर हमला करने वाला रूस भले ही कीव के मैदान में जेलेंस्की की सेना को नाकों चने चबवा दिया हो, लेकिन वह संयुक्त राष्ट्र के मंच पर करारी शिकस्त खा गया है। इससे रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को करारा झटका भी लगा है। यूक्रेन के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र में विभिन्न मदों में लाए गए प्रस्ताव पर रूस आखिरकार गच्चा खा गया। इससे यह भी साबित होता है कि पहले जो देश रूस के साथ खड़े थे, अब उनके रुख में भी काफी बदलाव आ चुका है। यानी अब ज्यादातर देश यूक्रेन में चल रहे युद्ध का खात्मा चाहते हैं। इसके लिए व्लादिमीर पुतिन पर यूक्रेन से रूसी सेना की वापसी का दबाव बनाया जाना तय है। मगर सवाल यह है अब तक किसी भी देश के आगे नहीं झुकने वाले पुतिन क्या आगे किसी देश का दबाव स्वीकार करेंगे?

यूक्रेन मुद्दे पर रूस संयुक्त राष्ट्र के तीन निकायों का चुनाव हारा

 

दरअसल रूस इस सप्ताह यूक्रेन मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र के तीन निकायों का चुनाव हार गया। यह एक साल से अधिक समय पहले यूक्रेन पर उसके हमले के खिलाफ कई देशों के कड़े रुख का संकेत है। 54 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (इकोसॉक) में मतदान संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा रूस के खिलाफ 6 गैर-बाध्यकारी प्रस्तावों के अनुमोदन के बाद हुआ है। हाल के प्रस्ताव में रूस से युद्ध खत्म करने तथा अपने सैनिकों को वापस बुलाने का आह्वान किया गया था। इस प्रस्ताव को 7 के मुकाबले 147 मतों से स्वीकृति मिली थी और 32 सदस्य गैर हाजिर रहे थे।

रोमानिया और एस्टोनिया ने रूस को हराया

इकोसॉक में महिलाओं की स्थिति पर आयोग में एक सीट के लिए हुए मतदान में रोमानिया ने रूस को परास्त कर दिया। वहीं, संयुक्त राष्ट्र में बाल एजेंसी यूनिसेफ के कार्यकारी बोर्ड के सदस्य को लेकर हुए मतदान में रूस एस्टोनिया से हार गया। अपराध रोकथाम एवं आपराधिक न्याय पर आयोग की सदस्यता के लिए गुप्त मतदान में आर्मेनिया और चेक गणराज्य से उसे शिकस्त मिली। ऐसे में रूस का हौसला कमजोर जरूर हुआ है। मगर इससे पुतिन पर ज्यादा फर्क पड़ने वाला नहीं है। इसलिए युद्ध के खात्मे का फिलहाल कोई संकेत नहीं दिख रहा।

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