इस्लामाबाद: पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान मुल्क की मौजूदा हुकूमत के लिए लगातार दिक्कतें पैदा कर रहे हैं। पिछले दिनों उन्होंने ‘आजादी मार्च’ का ऐलान कर सरकार को मुश्किल में डाल दिया था, लेकिन उन्होंने बाद में इसे अचानक वापस ले लिया। अब इस पूरे घटनाक्रम से जुड़ी एक बड़ी खबर सामने आई है। पाकिस्तानी मीडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश के एक पूर्व चीफ जस्टिस, एक रिटायर्ड आर्मी जनरल और एक बड़े कारोबारी ने इमरान खान को राजी किया था कि वह अपनी पार्टी के लंबे मार्च के अंत में इस्लामाबाद में धरना का आयोजन नहीं करें।
इमरान ने 25 को शुरू किया था ‘आजादी मार्च’
बता दें कि इमरान ने इस्लामाबाद में धरना देने के ऐलान के साथ देश में नए सिरे से चुनाव के लिए दबाव बनाने की खातिर अपना ‘आजादी मार्च’ 25 मार्च को शुरू किया था। बाद में उन्होंने इसे यह कहते हुए वापस ले लिया कि सरकार खुश होगी अगर वह अपने इस इरादे पर आगे बढ़ेंगे क्योंकि यह पुलिस, सेना और लोगों के बीच टकराव का कारण बन सकता है। इमरान के मार्च के बाद धरना न देने के ऐलान ने उनके समर्थकों के साथ-साथ विरोधियों को भी हैरान कर दिया था।
‘इमरान को मनाना आसान काम नहीं था’
पाकिस्तानी अखबार ‘डॉन’ की एक खबर के मुताबिक, जिस तरह से यह सब कुछ खत्म हुआ, कम से कम एक इशारा तो मिल ही जाता है कि यह किसने करवाया। डान ने एक सूत्र के हवाले से कहा कि जिन लोगों ने बीचबचाव किया उनमें एक पूर्व चीफ जस्टिस, एक रिटायर्ड आर्मी जनरल और एक बड़े कारोबारी शामिल थे। सूत्र ने कहा, ‘इमरान की जिद और इस हकीकत को देखते हुए कि उन्होंने मार्च प्रोटेस्ट के लिए काफी तैयारी की थी, उन्हें मनाना आसान काम नहीं था।’
देर तक चली इमरान को मनाने की कोशिश
सूत्र के मुताबिक, इमरान खान के साथ इस मसले पर लंबी बातचीत हुई जो कि बुधवार देर रात से शुरू होकर गुरुवार तड़के तक जारी रही। इमरान खान आखिरकार इस आश्वासन पर धरना न करने पर सहमत हुए कि जून तक विधानसभाएं भंग हो जाएंगी और आम चुनाव के लिए नई तारीखों की घोषणा की जाएगी। इमरान ने गुरुवार को प्रांतीय विधानसभाओं को भंग करने और आम चुनावों की घोषणा करने के लिए शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली सरकार को 6 दिन की डेडलाइन देते हुए आगाह किया था कि अगर ‘इंपोर्टेड सरकार’ ऐसा करने में नाकाम रही, तो वह ‘पूरे मुल्क’ के साथ राजधानी लौटेंगे।
आर्मी के दखल के बाद माने इमरान?
‘डॉन’ ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि आम धारणा तो यही बन रही है कि चीजों को कंट्रोल से बाहर होने से रोकने के लिए अंत में आर्मी को ही आगे आना पड़ा। कहा जा रहा है कि आर्मी के कहने पर ही इमरान से बातचीत की गई थी। पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल नईम खालिद लोधी ने कहा कि वह भी इससे सहमत हैं। लोधी ने कहा, ‘अराजकता को रोकने और राजनीतिक स्थिरता की तलाश में सेना द्वारा सकारात्मक हस्तक्षेप की प्रबल संभावना है ताकि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की प्रक्रिया शुरू हो सके।’
पाकिस्तान में बढ़ती जा रही है महंगाई
बता दें कि आर्थिक मोर्चे पर पहले ही दिक्कतों का सामना कर रहे पाकिस्तान के लिए इमरान खान ने और मुश्किलें पैदा कर दी थीं। इमरान के जाने के बाद सत्ता पर काबिज हुई शहबाज शरीफ सरकार तमाम मुद्दों पर लड़खड़ाती हुई नजर आ रही है। देश में महंगाई लगातार बढ़ती जा रही है और जरूरी चीजों के दाम जनता की पहुंच से बाहर होते जा रहे हैं। ऐसे में इमरान खान के धरने से स्थितियों का खराब होना तय था, और यही वजह है कि पाकिस्तान की आर्मी को हस्तक्षेप करना पड़ा।
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