भारत से बातचीत के लिए बेताब हुआ पाकिस्तान, जानें इतने वर्षों बाद क्यों पीएम शहबाज शरीफ को आई संबंध सुधारने की याद
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की सरकार का कार्यकाल 12 अगस्त को पूरा हो रहा है। ऐसे वक्त में उन्होंने भारत के साथ बातचीत की इच्छा जाहिर की है। पीएम शहबाज की यह पेशकश अनायास नहीं है, बल्कि वह विभिन्न स्तर पर इसका माइलेज लेना चाहते हैं। मगर भारत क्या उनके अनुरोध को स्वीकारेगा, यह देखने वाली बात होगी।
पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) और बालाकोट में भारत की सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पहली बार पाकिस्तान ने बातचीत की पेशकश की है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने मंगलवार को सभी गंभीर और लंबित मुद्दों के समाधान के लिए भारत के साथ बातचीत करने के लिए तैयार होने की बात कही है। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के लिए ‘‘युद्ध कोई विकल्प नहीं है’’ क्योंकि दोनों देश गरीबी और बेरोजगारी से लड़ रहे हैं। शरीफ ने यहां पाकिस्तान खनिज शिखर सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए यह टिप्पणी की। ‘डस्ट टू डेवलपमेंट’ के नारे के तहत आयोजित इस बैठक का उद्देश्य नकदी संकट से जूझ रहे देश में विदेशी निवेश लाना है। मगर अचानक पीएम शहबाज का भारत के साथ बातचीत की पेशकश करना यूं ही नहीं है, बल्कि इसकी कई वजहें हैं, जिसे हम आपको आगे बताएंगे।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने स्पष्ट तौर पर भारत के संदर्भ में कहा, ‘‘हम हर किसी के साथ बात करने के लिए तैयार हैं, यहां तक कि अपने पड़ोसी के साथ भी बशर्ते कि पड़ोसी गंभीर मुद्दों पर बात करने के लिए गंभीर हो, क्योंकि युद्ध अब कोई विकल्प नहीं है।’’ शरीफ की टिप्पणियां सीमा पार आतंकवाद को इस्लामाबाद के निरंतर समर्थन और कश्मीर सहित कई मुद्दों पर भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों में जारी तनाव के बीच आई है। भारत कहता रहा है कि वह पाकिस्तान के साथ सामान्य पड़ोसी संबंधों की इच्छा रखता है, जबकि इस बात पर भी जोर देता रहा है कि इस तरह के संबंध के लिए आतंक और शत्रुता से मुक्त वातावरण बनाने की जिम्मेदारी पाक की है। भारत ने यह भी कहा है कि जम्मू-कश्मीर हमेशा देश का हिस्सा था, है और रहेगा।
जाने वाली है सरकार तो बातचीत को तैयार
पाक प्रधानमंत्री की यह टिप्पणी ऐसे वक्त आई है जब 12 अगस्त को संसद का पांच साल का कार्यकाल पूरा हो रहा है और उनकी गठबंधन सरकार चुनाव में जाने की तैयारी कर रही है। ऐसे में सवाल यह भी है कि यदि भारत के साथ शहबाज शरीफ को बातचीत करनी ही थी तो यह पेशकश पहले क्यों नहीं की गई। अब जब पीएम शहबाज के गिनेचुने 11 दिन ही सरकार में शेष बचे हैं तो उन्होंने बातचीत का पांसा फेंक दिया है। कहा जा रहा है कि पाकिस्तान की संसद को अगले चुनाव को लेकर अधिक समय प्रदान करने के लिए निचले सदन नेशनल असेंबली को कार्यकाल समाप्त होने से कुछ दिन पहले भंग कर दिया जाएगा। ऐसे वक्त में अब जब शहबाज शरीफ चाहकर भी भारत से बातचीत का इतने कम दिन में कोई रास्ता नहीं बना सकते तो ऐसा बयान आखिर क्यों दिया। वैसे तो इसकी कई वजहें हैं। मगर उनमें से एक वजह यह भी है कि वह खुद को उदार नेता की तरह पेश करना चाहते हैं। उन्हें शायद लगता है कि इसका फायदा शहबाज को चुनावों में मिल सकता है।
परमाणु हथियारों का इस रूप में किया शहबाज ने जिक्र
प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान और भारत के बीच युद्ध के इतिहास के बारे में बात की। उनकी राय में युद्ध के परिणामस्वरूप गरीबी, बेरोजगारी और लोगों की शिक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण के लिए संसाधनों की कमी हुई। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की परमाणु क्षमता रक्षात्मक उद्देश्यों के लिए है न कि आक्रामकता के लिए। उन्होंने कहा, ‘‘अगर कोई परमाणु विस्फोट हुआ तो यह बताने के लिए कौन जीवित रहेगा कि क्या हुआ, इसलिए युद्ध कोई विकल्प नहीं है।’’ शरीफ ने इस बात पर जोर दिया कि पाकिस्तान परमाणु संघर्ष के दुष्परिणाम से अच्छी तरह वाकिफ है लेकिन भारत को भी इसका एहसास होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि जब तक अनसुलझे मुद्दों का समाधान कर ‘‘असामान्यताओं’’ को दूर नहीं किया जाता तब तक संबंध सामान्य नहीं होंगे। इस्लामाबाद और नयी दिल्ली के बीच द्विपक्षीय संबंध अगस्त 2019 से तनावपूर्ण हैं जब भारत ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा वापस ले लिया था । (भाषा)
भारत से क्यों बातचीत करना चाहता है पाकिस्तान
पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ ने भारत के साथ बातचीत की पेशकश यूं ही नहीं की है, बल्कि ऐसा कहने के पीछे उसकी बड़ी मजबूरी है। पाकिस्तान की छवि आतंकी, कंगाल और गरीब देश की बनी हुई है, जिसे कोई देश कर्ज तक नहीं देना चाहते। भारत से अपने संबंध खराब करने के लिए दुनिया के तमाम देश भी पाकिस्तान को भाव नहीं देते हैं। पाकिस्तान को ज्यादातर देश यही सुझाव देते हैं कि एशिया में तेजी से उभरते भारत के साथ संबंध सुधारने में ही पाकिस्तान की भलाई है। इस वक्त पाकिस्तान भयंकर आर्थिक तंगी, गरीबी, भुखमरी की मार झेल रहा है। हालत यह है कि जिस आतंक को उसने पाला-पोषा था, अब वही आतंकवाद पाकिस्तान पर भारी पड़ने लगा है। पाकिस्तान में एक के बाद एक आतंकी हमले हो रहे हैं। ऐसे में वह बेहाल हो चुका है। आतंकियों को फंडिंग करने के लिए अब पाकिस्तान के पास पैसे भी नहीं हैं। भारत के साथ संबंध बिगाड़ने से उसे सिर्फ आर्थिक ही नहीं, बल्कि वैश्विक सपोर्ट के स्तर पर भी भारी नुकसान हो रहा है। वहीं दूसरी तरफ भारत की छवि सशक्त, ताकतवर, तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और वर्ल्ड लीडर के तौर पर बन रही है। इसलिए अब पाकिस्तान भारत से बातचीत को बेताब है।
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