मस्कुलर डिस्ट्रॉफी छीन रही बचपना, शोधकर्ताओं ने वेव थेरैपी से लौटाई जीने की नई उम्मीद
मस्कुलर डिस्ट्रॉफी मेडिकल साइंस में अब तक लाइलाज है। इसके बाद स्टेम सेल थेरैपी पर शोधकर्ताओं ने काम किया। इससे काफी हद तक मरीजों को आराम होना शुरू हुआ। मगर अब वेव थेरैपी ने मरीजों में नई उम्मीद जगाई है। इसमें औषधीय पौधों, जड़ी-बूटियों की कोशिकाएं तरंगों के जरिये प्रभावित अंग में प्रवाहित कराई जाती हैं।
Muscular Dystrophy: मस्कुलर डिस्ट्रॉफी एक ऐसी बीमारी है, जिसमें हाथ पैरों की मांसपेशियां सूखने लगती हैं। हड्डियां कमजोर होने लगती हैं। कई बार वह सूख कर टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती हैं और इधर-उधर से मुड़ जाती हैं। ऐसे में सामान्य विकास अवरुद्ध हो जाता है। बच्चे चलने- फिरने में असमर्थ हो जाते हैं। वह लड़खड़ा कर गिरने लगते हैं और जिंदगी जीना दुश्वार हो जाता है। मौजूदा मेडिकल साइंस में दुनिया भर में इस बीमारी का कोई इलाज मौजूद नहीं है। इस बीमारी से पीड़ितों की मौत निश्चित होती है। मगर अब स्टेम सेल थेरैपी और वेव थेरैपी ने ऐसे मरीजों को जीने की नई राह दिखा दी है। हालांकि अभी बहुत कुछ शोध होना बाकी है।
साइंस डेली में प्रकाशित एक खबर के अनुसार डचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी यानि (डीएमडी) एक मांसपेशीय अध: पतन विकार है जो डायस्ट्रोफिन जीन को प्रभावित करने वाले उत्परिवर्तन के कारण होता है। शोधकर्ताओं ने एक दोहरी क्लस्टर्ड रेगुलरली इंटरस्पेस्ड शॉर्ट पैलिंड्रोमिक रिपीट (सीआरआईएसपीआर) आरएनए विधि ने डायस्ट्रोफिन प्रोटीन को बहाल करने में सफलता पाई है। यह एक नई विधि है, जिसमें सेल कल्चर में बड़ी मात्रा में मांसपेशी स्टेम कोशिकाओं को सुरक्षित रूप से प्राप्त करने की अनुमति देती है। इसके अलावा कई शोधकर्ताओं ने वेब थेरैपी से मस्कुलर डिस्ट्रॉफी में मृत कोशिकाओं को फिर से जीवित करने का दावा किया है।
भारत में भी मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के इलाज में वेब थेरैपी पर हो रहा काम
विदेशों में ही नहीं, बल्कि भारत में भी शोधकर्ताओं ने वेब थेरैपी से मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के मरीजों में जीने की नई उम्मीद लौटा दी है। यह थेरैपी लेने वाले मरीजों और उनके परिवारजनों ने भी आश्चर्यजनक फायदा होने का दावा किया है। मस्कुलर डिस्ट्रॉफी होने का कोई ज्ञात कारण नहीं है। अधिकतर यह आनुवांशिक वजहों से या जीन में म्यूटेशन से होती है। नोएडा के सेक्टर 27 में पाठक वेव थेरैपी के संस्थापक डॉ एसके पाठक कहते हैं कि मस्कुलर डिस्ट्रोफी होने पर इसमें असामान्य जीन (म्यूटेशन) स्वस्थ मांसपेशियों के निर्माण में आवश्यक प्रोटीन बनाने में बाधा डालते हैं। यह बीमारी अधिकांशतः लड़कों में होती है और बचपने में ही शुरू हो जाती है। लड़कियां इसकी वाहक हो सकती हैं।
मेडिकल साइंस नहीं कर सका अब तक कोई चमत्कार
मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के इलाज में मेडिकल साइंस अब तक कोई चमत्कार नहीं कर सका है। लिहाजा बड़े-बड़े संस्थानों में इस बीमारी से पीड़ित बच्चों और उनके अभिभावकों को निराश होकर वापस लौटना पड़ रहा है। जौनपुर के बदलापुर निवासी सुशील यादव ने कहा कि वह डीएमडी से पीड़ित अपने 9 वर्षीय बेटे का लखनऊ के एसजीपीजीआई में डिपार्टमेंट ऑफ मेडिकल जेनेटिक्स में इलाज करा रहे थे। मगर आराम नहीं मिल पा रहा था। बच्चा खड़े होने और चलने में नाकाम था। जानकारी होने पर पाठक वेव थेरैपी सेंटर लाए। अब बच्चे ने चलना-दौड़ना शुरू कर दिया है। इसी तरह चंदौसी निवासी सचिन गुप्ता कहते हैं कि 6 वर्ष की उम्र में उनके बेटे के हाथ पैर टेढ़े होने लगे। दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल के मालीक्यूलर जेनेटिक्स में इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल जेनेटिक्स एंड जेनोमिक्स में इलाज कराया मगर फायदा नहीं हुआ। जानकारी होने पर अब नोएडा में करीब वेव थेरैपी कराने से बच्चा चलने-फिरने लग गया।