काठमांडू: नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री के. पी. शर्मा ओली ने शुक्रवार को एक बार फिर भारत पर निशाना साधा। ओली ने कहा कि 20 नवंबर को होने वाले संसदीय चुनाव में अगर उनकी पार्टी जीतती है तो देश के उन हिस्सों पर दोबारा दावा किया जाएगा जिसे भारत अपना बताता है। पश्चिमी नेपाल में भारत की सीमा के पास धारचुला जिले में अपनी नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के राष्ट्रव्यापी चुनाव अभियान की शुरुआत करते हुए ओली ने यह बात कही।
‘हम अपनी एक इंच भी जमीन नहीं छोड़ेंगे’
नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी के अध्यक्ष ओली ने कहा कि ‘हम कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को वापस लाएंगे। हम अपने हिस्से की एक इंच भी जमीन नहीं छोड़ेंगे।’ इस बीच, नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष और प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने कहा कि कूटनीतिक पहल और आपसी संबंधों के आधार पर नेपाल की कब्जा की गई जमीन को वापस पाने की कोशिश जारी है। देउबा ने यह बात अपने गृहजनपद ददेलधुरा में इलेक्शन कैंपेन लॉन्च करते हुए ओली का बयान सामने आने के बाद कही।
भारत, नेपाल के रिश्तों में आई थी खटास
हालांकि, पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. बाबूराम भट्टराई ने ओली से कहा है कि वे राष्ट्रीय अखंडता को चुनाव का एजेंडा न बनाएं। भट्टाराई ने ओली का नाम लिए बिना ट्वीट किया कि किसी भी पार्टी या व्यक्ति को देश की क्षेत्रीय अखंडता को चुनावी एजेंडा नहीं बनाना चाहिए। बता दें कि भारत द्वारा 8 मई 2020 को उत्तराखंड में लिपुलेख दर्रे को धारचूला से जोड़ने वाली रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण सड़क को चालू करने के बाद नेपाल के उसके संबंधों में तनाव पैदा हो गया था। उस समय ओली नेपाल के प्रधानमंत्री थे।
नेपाल ने किया था सड़क चालू करने का विरोध
नेपाल ने सड़क पर आवाजाही शुरू करने का विरोध करते हुए दावा किया कि यह रोड उसके इलाके से होकर गुजरती है। कुछ दिनों बाद नेपाल ने अपने एक नए नक्शे में लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को अपने इलाके में दिखया, जिस पर भारत ने तीखी प्रतिक्रिया की थी। भारत ने इसे ‘एकतरफा कार्रवाई’ कहा और काठमांडू को आगाह किया था कि क्षेत्रीय दावों का ऐसा ‘कृत्रिम विस्तार’ उसे स्वीकार्य नहीं है। हालांकि ओली के पद से हटने के बाद भारत और नेपाल के रिश्तों में एक बार फिर पटरी पर आते दिखने लगे थे।
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