पाकिस्तान के अदालती फैसलों में भी हस्तक्षेप कर रही ISI, हाईकोर्ट के 6 न्यायाधीशों ने सुप्रीम कोर्ट से की शिकायत
पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ के इशारे पर अब तक सरकार तो नाच ही रही थी, अब इसके एजेंटों ने न्यायपालिका में भी दखल देना शुरू कर दिया है। आरोप है कि आइएसआइ अपने मनमुताबिक फैसले करवाने के लिए हाईकोर्ट के जजों पर भी दबाव डालती है। जजों ने इसकी शिकायत सुप्रीम कोर्ट से की है।
इस्लामाबादः पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ की हस्तक्षेप अब सरकार से होते हुए न्यायपालिका तक पहुंच गया है। आइएसआइ अदालत में अपने मनमुताबिक फैसले करवा रहा है। मतलब साफ है कि पाकिस्तान में लोकतंत्र आइसीयू में जा चुका है। आइएसाआइ की मर्जी के बगैर अब यहां पत्ता भी नहीं हिल सकता। यह शिकायत इस्लामाबाद हाईकोर्ट के छह न्यायाधीशों ने सुप्रीम कोर्ट से की है। जजों ने कहा है कि पाकिस्तान की प्रभावशाली खुफिया एजेंसियों द्वारा न्यायपालिका के कामकाज में हस्तक्षेप किया जा रहा है। जजों ने आइएसाआइ के खिलाफ उच्चतम न्यायिक परिषद से संज्ञान लेने की अपील की है।
इन छह न्यायाधीशों द्वारा हस्ताक्षरित एक पत्र में उच्चतम न्यायिक परिषद से न्यायिक मामलों में इस तरह के हस्तक्षेप के खिलाफ एक न्यायिक व्यवस्था की मांग की गई है। जिन छह न्यायाधीशों ने 25 मार्च के पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं, उनमें न्यायमूर्ति मोहसिन अख्तर कयानी, न्यायमूर्ति तारिक महमूद जहांगीरी, न्यायमूर्ति बाबर सत्तार, न्यायमूर्ति सरदार एजाज इशाक खान, न्यायमूर्ति अरबाब मुहम्मद ताहिर और न्यायमूर्ति समन रफत इम्तियाज शामिल हैं। पत्र में व्यवस्था के माध्यम से न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए कड़ा रुख अपनाने की बात कही गई है।
आइएसआइ फैसलों में न्यायाधीशों पर बना रही दबाव
उच्चतम न्यायिक परिषद उच्च और उच्चतम न्यायालयों के न्यायाधीशों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए अधिकृत शीर्ष निकाय है। पत्र में कार्यपालिका और एजेंसियों के हस्तक्षेप को लेकर न्यायाधीशों पर दबाव बनाने के उदाहरणों का भी जिक्र किया गया। पत्र में कहा गया कि एक मामले में उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश पर दबाव बनाने के लिए उनके रिश्तेदार का अपहरण किया गया और यातनाएं दी गईं। इसमें कहा, ‘‘ हम इस बात पर भी ध्यान दिलाना चाहेंगे कि उच्चतम न्यायिक परिषद द्वारा न्यायाधीशों के लिए निर्धारित आचार संहिता में इसको लेकर कोई मार्गदर्शन नहीं दिया गया है कि न्यायिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप जैसे मामलों में किस तरह के कदम उठाए जाएं।
पूर्व जज की बर्खास्तगी को सुप्रीम कोर्ट ने ठहराया है गलत
शीर्ष अदालत ने इस्लामाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायमूर्ति शौकत अजीज को हटाए जाने के फैसले को अवैध घोषित कर कहा था कि उन्हें सेवानिवृत्त न्यायाधीश माना जा सकता है। अदालत के इस फैसले के बाद यह पत्र लिखा गया है। फैसले में कहा गया था कि उच्चतम न्यायिक परिषद ने न्यायमूर्ति सिद्दीकी के खिलाफ इस धारणा पर कार्रवाई की कि पूर्व न्यायाधीश द्वारा लगाए गए आरोपों की सच्चाई या झूठ ‘‘अप्रासंगिक’’ थी। सिद्दीकी को 11 अक्टूबर 2018 को उच्चतम न्यायिक परिषद ने उस भाषण के आधार पर बर्खास्त किया था, जिसमें उन्होंने देश की शक्तिशाली खुफिया एजेंसी आईएसआई पर अदालती कार्यवाही को प्रभावित करने का आरोप लगाया था।
अपने पत्र में इस्लामाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्तियों ने न्यायमूर्ति सिद्दीकी द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच की मांग का समर्थन किया है। यह पत्र अभूतपूर्व माना जा रहा है क्योंकि यह आधिकारिक तौर पर न्यायपालिका के मामलों में कार्यकारी और खुफिया एजेंसियों की कथित भागीदारी को उजागर करता है और न्यायाधीशों के खिलाफ कार्रवाई करने और ऐसे मामलों पर मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए सर्वोच्च निकाय एसजेसी का समर्थन मांगता है। (भाषा)
यह भी पढ़ें
समलैंगिक विवाह को मान्यता देने को लेकर थाइलैंड के सदन ने किया बड़ा फैसला, भारी बहुमत से विधेयक पारित