बीजिंग: चीन भारतीय मेडिकल छात्रों के लिए कोरोना से पहले तक प्रमुख पसंद के देशों में था। मगर कोरोना के चलते चीन में छात्रों के लिए 3 साल तक लगे प्रतिबंध ने अब उस दिलचस्पी को खत्म कर दिया है। कोरोना से पहले तक जहां, चीन में भारतीय मेडिकल स्टूडेंट्स की संख्या 23 हजार के पार थी, वहीं अब ये घटकर 10 के पास पहुंच गई है। इससे भारतीय छात्रों की चीन से घटती रुचि का अंदाजा लगाया जा सकता है। चीन में भारतीय दूतावास ने अब उन भारतीय छात्रों के साथ अपना पहला संवाद सत्र आयोजित किया है, जिन्हें चीन के वीज़ा प्रतिबंधों के कारण तीन साल की कोविड -19 की अवधि के दौरान सबसे अधिक परेशानी हुई।
चार मई को आयोजित "स्वागत और संवाद समारोह" में 13 से अधिक चीनी विश्वविद्यालयों के लगभग 80 पुराने और नए छात्रों ने भाग लिया। चीन में भारतीय राजदूत प्रदीप कुमार रावत और काउंसलर नितिनजीत सिंह ने शनिवार को हुए सत्र के दौरान विद्यार्थियों से बातचीत की और उनकी शिकायतों और अनुभवों को सुना। दूतावास ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर कहा कि दूतावास द्वारा पेश की जाने वाली विभिन्न सेवाओं के सचिव (द्वितीय) अमित शर्मा ने सत्र के दौरान विस्तृत प्रस्तुति दी। साल 2020 के शुरू में चीन में कोरोना वायरस के प्रकोप के समय चीनी विश्वविद्यालयों में 23 हजार से ज्यादा भारतीय विद्यार्थी पढ़ रहे थे जिनमें से ज्यादा मेडिकल के छात्र थे और तब पाकिस्तान के बाद चीनी विश्वविद्यालयों में विदेशी छात्रों की संख्या सबसे अधिक थी।
चीन में मेडिकल की पढ़ाई है सस्ती
वर्तमान में, पूरे चीन में भारतीय मेडिकल छात्रों की संख्या घटकर लगभग 10,000 रह गई है। भारत में सरकारी मेडिकल संस्थानों में दाखिला पाने के लिए कड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है, जबकि निजी मेडिकल कॉलेज अत्यधिक फीस वसूलते हैं। जबकि चीन में सीधे एंट्री मिलने के साथ यहां की मेडिकल पढ़ाई भी भारत से कई गुना सस्ती है, जिस वजह से अतीत में चीनी विश्वविद्यालय भारतीय छात्रों के लिए पसंदीदा स्थान बन गए थे। हालांकि, उन्हें भारत में प्रैक्टिस करने की अनुमति हासिल करने के लिए विदेशी मेडिकल स्नातक परीक्षा देनी होती है। (भाषा)
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