'भारत-सऊदी अरब के संबंधों का भविष्य उज्जवल', जानें इजरायल और फिलिस्तीन पर क्या बोले पूर्व डिप्लोमैट रहमान
दोनों देशों के बीच काउंसिल का गठन किया गया है जो नियमित रूप से मीटिंग रहे हैं और हर क्षेत्र की प्रगति पर नजर रखते हैं। क्या कदम उठाए गए हैं और और क्या कदम उठाए जाने की आवश्यकता है
पूर्व भारतीय राजनयिक जिकरुर रहमान का कहना है कि भारत और सऊदी अरब के आपसी संबंधों का भविष्य "बहुत उज्ज्वल" है क्योंकि दोनों देश ईमानदारी और गंभीरता से एक बेहतर कोर्डिनेशन के साथ काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि 2016 और 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सऊदी अरब की यात्राओं ने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने की दिशा में एक सार्थक प्रयास किया है। 80 और 90 के दशक में इस तरह के मजबूत संबंध नजर नहीं आ रहे थे। मोदी के दौरे के बाद से काफी बदलाव देखने को मिल रहे हैं।
दोनों देशों के बीच कई समझौते
न्यूज एजेंसी एएनआई से बात करते हुए उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच कई समझौते हुए। व्यापक साझेदारी संधि और रणनीतिक साझेदारी संधि पर हस्ताक्षर किए गए हैं। इन संधियों के तहत लगभग सभी महत्वपूर्ण और गैर-महत्वपूर्ण क्षेत्रों को कवर किया गया है।दोनों देशों के बीच काउंसिल का गठन किया गया है जो नियमित रूप से मीटिंग रहे हैं और हर क्षेत्र की प्रगति पर नजर रखते हैं। क्या कदम उठाए गए हैं और और क्या कदम उठाए जाने की आवश्यकता है, इन सब बातों पर नजर रखी जाती है। क्षेत्र की स्थिरता के साथ -साथ दोनों देशों के हित के लिए क्या सही रहेगा, इस तरह की रणनीतिक साझेदारी को सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाता है।
रियाद सीजन में भारतीय संस्कृति का जश्न
रियाद सीज़न महोत्सव का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि रियाद सीजन में भारतीय संस्कृति का जश्न मनाया जा रहा है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कैसे संस्कृति दोनों राष्ट्रों को एक साथ लाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बता दें कि रियाद में सीजन 2024 के तहत भारतीय सप्ताह की शुरुआत हो चुकी है। यहां भारतीय संस्कृति, संगीत और खाने का भरपूर आनंद लिया जा रहा है। इसका आयोजन खास तौर पर भारतीय समुदाय के लिए किया गया है।
संस्कृति के माध्यम से आती है नजदीकी
उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक रूप से, संस्कृति और सांस्कृतिक परस्पर क्रिया दोनों राष्ट्रों के बीच निकटता लाती है और जब एक बार संस्कृति के माध्यम से नजदीकी आती है, तो यह निवेश और अर्थव्यवस्था में बदल जाता है और फिर आप राजनीतिक संबंधों को मजबूत होते हुए देखते हैं। ये तीनों परस्पर जुड़े हुए हैं, लेकिन मूल आधार संस्कृति है।
चरम दक्षिणपंथी तत्व इजरायल फिलिस्तीन में शांति नहीं चाहते
पूर्व डिप्लोमैट ने इजरायल फिलिस्तीन संघर्ष पर कहा कि यदि आप फिलिस्तीनियों और इज़राइल के बीच का इतिहास देखते हैं, तो आप पाएंगे कि जब भी दोनों पक्ष एक-दूसरे के साथ एक समाधान खोजने के बहुत करीब होते हैं, तो कुछ ऐसा होता है कि चरम दक्षिणपंथी पार्टियां तोड़फोड़ करने की कोशिश करती हैं। केवल चरम दक्षिणपंथी संगठनों के कारण ये सारी चीजें हो रही हैं। क्योंकि वे किसी भी मुद्दे का समाधान खोजने में रुचि नहीं रखते हैं. यही वजह हैकि पिछले 75 वर्षों से इसे उबलने के लिए छोड़ दिया गया है। इसका इस्लाम से कोई लेना -देना नहीं है। फिलिस्तीनी यहूदी हैं जो फिलिस्तीन में रहते हैं, जो इज़रायल नहीं जाते हैं। उनमें से एक यहूदी तो फिलिस्तीनी संसद के सदस्य हैं, वे इजरायलस नहीं जाना चाहते हैं। (ANI)