China Special Military Operation: चीन विस्तारवाद की नीति किसी भी हाल में नहीं छोड़ना चाहता है। ताइवान पर अपने आधिपत्य का का मंसूबा चीन कई वर्षों से पाल रहा है। हालांकि अमेरिका की चेतावनियों के कारण वह अपने कदम आगे पीछे करता रहा है। इसी बीच चीन के एक नए आदेश ने सभी को चौंका दिया है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशंस से जुड़ा आदेश जारी किया है। अब चीन की सेना आसानी से विदेशों में स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन को अंजाम दे सकेगी। चीनी मीडिया के अनुसार राष्ट्रपति जिनपिंग का यह आदेश बुधवार से लागू हो गया है। इस आदेश से चीनी सेना की ताइवान पर हमले की आशंका और बढ़ गई है।
सोलोमन आईलैंड से समझौते के बाद नया आदेश चिंता बढ़ाने वाला
सोलोमन आइलैंड के साथ हुए सुरक्षा समझौते के बाद यह चीन का अगला बड़ा कदम है। हाल ही में किया गया सोलोमन समझौता यह था कि चीन द्वारा सोलोमन द्वीप में कानून व्यवस्था को कायम करने के लिए पुलिस और दूसरे सैन्य बल भेजा जा सकता है। इसके अलावा समझौते के तहत जरूरत पड़ने पर लंगर डालने के लिए चीन द्वारा अपना युद्धपोत भी वहां पर भेजा जा सकता है। चीन भी इस समझौते को सिर्फ वहां के लोगों की भलाई वाला बता रहा है, लेकिन इस समझौते ने भी अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की नींद उड़ा रखी है।
नए आदेश के पीछे ड्रेगन का कहीं यह स्वार्थी मंसूबा तो नहीं?
राष्ट्रपति जिनपिंग ने 6 हिस्सों के आदेश से चीनी फौज को आपदा राहत कार्य, पीस कीपिंग मिशंस, सुरक्षा और विकास कार्यों में बिना रोक-टोक काम करने की इजाजत दी है। रक्षा विशेषज्ञों की मानें तो चीनी राष्टपति का यह आदेश भले ही विदेशों में चीन के इनवेस्टमेंट को बचाने आर ग्लोबल घटनाओं से चीन में महंगाई के असर को घटाने कि लिए किया गया हो, लेकिन इस आदेश की आंच ताइवान पर भी आ सकती है। इस आदेश की आड़ में ड्रेगन ताइवान पर अपने कब्जे के स्वार्थी मंसूबे पर आगे बढ़ सकता है।
क्या पुतिन की राह पर चलेंगे जिनपिंग?
जिस तरह रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन पर हमले को ‘स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन’ नाम दिया था। उसी तरह चीन भी इस नए आदेश की आड़ में ताइवान पर हमला कर सकता है। दरअसल, रूस आर यूक्रेन युद्ध के बीच चीन की बैक डोअर से रूस को मदद और उत्तर कोरिया के पक्ष में बातें करना, यह सब उस रणनीति का हिस्सा हो सकता है कि वह भी कहीं न कहीं ताइवान पर भी उसी तरह हमला करे, जिस तरह रूस ने यूक्रेन पर किया है। इस बात को खुद जापान के पीएम फुमिओ किशिदा कह चुके हैं कि 'आज जो यूक्रेन में हो रहा है, वो कल ईस्ट एशिया में भी हो सकता है।' क्योंकि ताइवान वैसे तो चीन का हिस्सा नहीं है, लेकिन चीन की कम्युनिस्ट पार्टी इसे अपना हिस्सा मानती है। जेलेंस्की भी इस बात को उठा चुके हैं कि यूक्रेन जैसी परिस्थिति ताइवान में न हो, इसलिए बातचीत से मुद्दा हल किया जाना चाहिए।
अमेरिका-चीन में चलता रहता है आरोप-प्रत्यारोप का दौर
अमेरिका और चीन के बीच हाल के समय में सचिव स्तर पर आरोप प्रत्यारोप का दौर चलता रहा है। इसी बीच पिछले सप्ताह सिंगापुर में अमेरिकी रक्षा सचिव लॉयड आस्टिन ने चीन को एशिया के लिए खतरा बताया था। इस बयान की निंदा बाद में चीनी रक्षा मंत्री वेई फेंघे ने की थी। लेकिन दोनों के बीच यह आरोप प्रत्यारोप किसी भविष्य के युद्ध का रूप न ले ले, यह गंभीर विषय है। क्योंकि कई विशेषज्ञ यह कह चुके हैं कि यदि अगला विश्व युद्ध लड़ा गया तो वह एशिया प्रशांत क्षेत्र में ही लड़ा जाएगा।
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