China's Belt And Road Initiative: नेपाल और चीन के बीच बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव पर हस्ताक्षर हुए पिछले हफ्ते पांच साल पूरे हो गए। फरवरी 2018 को केपी शर्मा ओली नेपाल के प्रधानमंत्री बने थे। कुछ महीनों बाद जून में वे चीन दौरे पर गए थे, जहां चीन के प्रधानमंत्री ली केकियांग के साथ मीटिंग के दौरान उन्होंने 35 प्रोजेक्ट की जानकारी दी, जिन्हें नेपाल बीआरआई के तहत बनाना चाहता है।
बीआरआई, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का ड्रीम प्रोजेक्ट है, जिसके तहत वे एशिया, यूरोप और अफ्रीका को सड़क व जल मार्ग से जोड़ना चाहते हैं। तब बीआरआई में शामिल होने को नेपाल में बड़ी उपलब्धि माना जा रहा था, लेकिन पांच साल बीत जाने के बाद अब यह प्रोजेक्ट नेपाल में ठंडे बस्ते में पड़ा है। काठमांडू पोस्ट की एक खबर में कहा गया है कि मजबूत जनादेश के साथ ओली की सत्ता में वापसी और अपने पहले कार्यकाल में बीजिंग के साथ कई समझौतों पर साइन करने के चलते बीआरआई की परियोजनाओं के शुरू होने की उम्मीदें बढ़ गई थीं, लेकिन पांच साल बाद अब ये उम्मीदें धुंधली पड़ती नजर आ रही हैं।
मामले से परिचित दो सरकारी अधिकारियों ने कहा कि बीआरआई के तहत परियोजनाओं की ज्यादातर फंडिंग लोन से होती है, जिसमें नेपाल ने ज्यादा रुचि नहीं ली। लिहाजा चीनी सलाह पर नेपाल ने परियोजनाओं की संख्या को घटाकर 9 कर दिया। उन्होंने कहा कि अब बीआरआई के प्रोजेक्ट्स प्राथमिक भी नहीं हैं।
क्यों विफल हो गया ?
नेपाल में बीआरआई के असफल होने के कई कारण हैं। ओली कैबिनेट में विदेश मंत्री रह चुके प्रदीप ग्यावाली ने कहा,"हमारी शुरुआत काफी धीमी थी। प्रोजेक्ट्स के चयन में काफी समय लगा और फिर हमने इसकी संख्या 35 से घटाकर 9 कर दी। हम प्रोजेक्ट्स को शुरू करने की योजना पर काम कर रहे थे कि तभी महामारी आ गई और हमारी प्राथमिकता बदल गई।" ग्यावाली के अनुसार, बीआरआई को लेकर शेर बहादुर देउबा सरकार का रुख कन्फ्यूज करने वाला है। ऑब्जर्वर्स कहते हैं कि नेपाल में बीआरआई की असफलता के पीछे राजनीतिक, वैचारिक और व्यावहारिक कारण थे।
कमर्शियल लोन का बोझ नहीं उठा सकता नेपाल
त्रिभुवन यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर मृगेंद्र बहादुर कार्की ने कहा कि लोन को लेकर नेपाल की प्राथमिकता, जिसे देउबा सरकार ने चीनी विदेश मंत्री वांग यी की यात्रा के दौरान स्पष्ट किया था, भी बीआरआई की परियोजनाओं की असफलता का कारण बनी। उन्होंने कहा कि नेपाल के पास विश्व बैंक और एशियन डेवलेपमेंट बैंक जैसी एजेंसियों से लोन लेने का लंबा अनुभव है जिनकी ब्याज दरें भी कम होती हैं और भुगतान का समय भी लंबा होता है। नेपाल उच्च ब्याज दरों वाले कमर्शियल लोन का बोझ नहीं उठा सकता।
अक्टूबर 2019 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की नेपाल यात्रा के दौरान इस बात पर सहमति बनी थी कि नेपाल और चीन बीआरआई को लाभकारी सहयोग को गहरा करने के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर के रूप में देखेंगे। अधिकारियों का कहना है कि वे निश्चित रूप से नहीं कर सकते कि सीमापार रेलवे जैसे बीआरआई के अन्य प्रोजेक्ट्स कब शुरू होंगे। ऑब्जर्वर्स का कहना है कि भू-राजनीतिक कारक भी अब नेपाल में बीआरआई को प्रभावित कर सकते हैं। हाल के दिनों में नेपाल के सहयोग क्षेत्र में तेजी से विकास देखने को मिला है।
नेपाल के हाइड्रोपावर सेक्टर में निवेश करने में रुचि दिखा रहा भारत
नेपाल को अमेरिका की तरफ से मिलेनियम चैलेंज कॉर्पोरेशन के तहत 500 मिलियन डॉलर का अनुदान मिल रहा है। दूसरी ओर भारत भी नेपाल में विशेष रूप से हाइड्रोपावर सेक्टर में निवेश करने में रुचि दिखा रहा है। वाशिंगटन और नई दिल्ली दोनों लंबे समय से बीआरआई को नकारात्मक नजरिए से देख रहे हैं। अमेरिकी अधिकारियों ने काठमांडू को संभावित कर्ज जाल की भी चेतावनी दी है।
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