कोलंबो। विदेश मंत्री एस जयशंकर सात देशों के ‘बिम्सटेक’ शिखर सम्मेलन में भाग ले रहे हैं। इसके के लिए वे भारत के इस पड़ोसी देश पहुंचे। रविवार को विदेश मंत्री एस. जयशंकर श्रीलंका के शीर्ष नेतृत्व के साथ द्विपक्षीय वार्ता करने और के लिए कोलंबो पहुंचे। श्रीलंका को मौजूदा आर्थिक संकट से उबारने के लिए भारत द्वारा आर्थिक राहत पैकेज देने के बाद से यह द्वीपीय राष्ट्र की उनकी पहली यात्रा होगी। जयशंकर ने ट्वीट किया, ‘द्विपक्षीय वार्ता और बिम्सटेक बैठक के लिए कोलंबो पहुंच गया हूं। अगले दो दिनों में वार्ता के लिए उत्साहित हूं।’ वह मालदीव की यात्रा पूरी करने के बाद यहां पहुंचे हैं।
श्रीलंकाई नेताओं के साथ द्विपक्षीय वार्ता भी करेंगे जयशंकर
मालदीव की यात्रा के दौरान उन्होंने द्विपक्षीय सहयोग से जुड़े व्यापक मुद्दों पर देश के शीर्ष नेतृत्व के साथ बातचीत की। अधिकारियों ने कहा, हालांकि जयशंकर की यात्रा मुख्य रूप से बिम्सटेक शिखर सम्मेलन से जुड़ी है, लेकिन वह श्रीलंकाई नेताओं के साथ सभी महत्वपूर्ण द्विपक्षीय वार्ता में भाग लेंगे। बिम्सटेक में भारत और श्रीलंका के अलावा, बांग्लादेश, म्यांमार, थाईलैंड, नेपाल और भूटान शामिल हैं।
30 मार्च को डिजिटल माध्यम से बिमस्टेक सम्मलेन में जुड़ेंगे मोदी
शिखर सम्मेलन की मेजबानी श्रीलंका द्वारा बिम्सटेक (बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल) के अध्यक्ष के रूप में की जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 30 मार्च को बिम्सटेक समूह के शिखर सम्मेलन में डिजिटल माध्यम से भाग लेंगे, जिसमें सदस्य देशों के बीच आर्थिक जुड़ाव बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किये जाने की उम्मीद है।
बुरे आर्थिक संकट से गुजर रहा है श्रीलंका
यह शिखर सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है जब श्रीलंका अपने अब तक के सबसे खराब विदेशी मुद्रा संकट का सामना कर रहा है, क्योंकि कोरोना महामारी ने द्वीपीय राष्ट्र की पर्यटन और प्रेषण (रेमिटेंस) से होने वाली कमाई को प्रभावित किया है। जयशंकर का यह दौरा ऐसे समय में हो रहा है जब संकट से निपटने में श्रीलंकाई सरकार की अक्षमता पर जनता का आक्रोश खुलकर सामने आया है।
बिजली और गैस की किल्लत से जूझ रहा श्रीलंका
लोग ईंधन और गैस के लिए कतारों से छुटकारा पाने और लंबे समय तक बिजली कटौती का तत्काल समाधान को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। वित्त मंत्री बेसिल राजपक्षे ने इस मुद्दे से निपटने के लिए जयशंकर को ऐसे वक्त में एक सहायक सहयोगी के रूप में देखा, जब सरकार के खिलाफ जनता का गुस्सा चरम पर था।
राष्ट्रपति राजपक्षे को हटाने के लिए हो रहे प्रदर्शन
शांतिपूर्ण प्रदर्शनों के तौर पर ही सही, न केवल राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे से सत्ता से हट जाने की अपील की गयी है, बल्कि पूरे राजपक्षे के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ परिवार को अपनी अक्षमता के लिए इस्तीफा देने की मांग की गयी है। हालांकि सरकार और विपक्षी नेताओं के साथ-साथ आर्थिक विश्लेषकों ने भी भारत की सहायता की सराहना की है, लेकिन भारत की पूर्व शर्तों पर भी कुछ चिंताएं जताई गई हैं।
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