बांग्लादेश में तख्तापलट का रहा है पुराना इतिहास, जानिए कब-कब हुआ सत्ता का खूनी खेल?
जब से बांग्लादेश का निर्माण हुआ तब से लकर अबतक देश में कई बार खूनी हिंसा और तख्तापलट की वारदात सामने आई हैं। शेख मुजीब-उर-रहमान से लेकर शेख हसीना तक कई बार ऐसा हुआ, जानिए-
बांग्लादेश में आरक्षण के मुद्दे को लेकर पिछले दो महीने से विरोध प्रदर्शन और हिंसा की खबरें सामने आ रही थीं। कुछ दिनों के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कुछ दिनों तक हिंसा रूक गई थी लेकिन फिर अचानक से इसने विकराल रूप ले लिया और इसका सियासी असर ऐसा हुआ कि प्रधान मंत्री शेख हसीना को देश छोड़कर जाना पड़ा। कहा जा रहा है कि फिलहाल वे भारत में हैं और सुरक्षित हैं। जानकारी के मुताबिक शेख हसीना लंदन जा सकती हैं।
हसीना की नेक्स्ट डेस्टिनेशन कहां
शेख हसीना बांग्लादेश छोड़ चुकी हैं और सबके मन में अब यही सवाल यही है कि शेख हसीना की नेक्स्ट डेस्टिनेशन क्या होगी। शेख हसीना ने देश छोड़ा है और उनके साथ ऐसा पहली बार नहीं, बल्कि तीसरी बार हुआ है। हालांकि इन सबके पीछे एक सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर पिछले 24 घंटे में ऐसा क्या हुआ कि शेख हसीना का तख्ता पलट हो गया और उन्हें इसकी भनक तक नहीं मिल पाई। उन्हें देश के नाम अपना भाषण रिकॉर्ड करने का तक का समय नहीं मिला आखिर शेख हसीना के तख्ता पलट के पीछे कौन है?
शेख हसीना का इस तरह से देश को छोड़ना बांग्लादेेश में पहली बार नहीं हुआ है।
बांग्लादेश के इतिहास में कब-कब घटीं ऐसी घटनाएं
पाकिस्तान और भारत के साथ एक क्रूर युद्ध के बाद बांग्लादेश 1971 में एक नए राष्ट्र के रूप में उभरा। इस देश की स्वतंत्रता के नायक शेख मुजीब-उर- रहमान देश के पहले प्रधानमंत्री बने, फिर उन्होंने देश में वन पार्टी सिस्टम की शुरुआत की और जनवरी 1975 में बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति बने। प्रेसिडेंट बनने के एक साल के भीतर ही 15 अगस्त को सैनिकों के एक समूह ने उनकी पत्नी और तीन बेटों के साथ उनकी हत्या कर दी। इसके बाद सेना के एक हिस्से के समर्थन से खोंडाकर मुस्ताक अहमद ने सत्ता संभाली।
अहमद का कार्यकाल बहुत छोटा रहा। 3 नवंबर को सेना के चीफ ऑफ स्टाफ खालिद मुशर्रफ द्वारा उकसाए गए तख्तापलट हुआ और प्रतिद्वंद्वी विद्रोहियों ने उनकी हत्या कर दी। इसके बाद जनरल जियाउर रहमान ने 7 नवंबर को देश की सत्ता संभाली।
सत्ता में छह साल से भी कम समय में, 30 मई, 1981 को विद्रोह के प्रयास के दौरान जनरल जियाउर रहमान की हत्या कर दी गई। इसके बाद अब्दुल सत्तार ने जनरल हुसैन मुहम्मद इरशाद के समर्थन से अंतरिम राष्ट्रपति के रूप में पदभार संभाला।
इसके तुरंत बाद ही जनरल हुसैन मुहम्मद इरशाद ने एक साल के भीतर ही सत्तार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और 24 मार्च 1982 को तख्तापलट कर उन्हें सत्ता से बेदखल कर दिया। सत्ता संभालने के तुरंत बाद उन्होंने मार्शल लॉ लागू कर दिया और अहसानुद्दीन चौधरी को राष्ट्रपति बना दिया गया।
इसके बाद 11 दिसंबर 1983 को इरशाद ने खुद को बांग्लादेश का राष्ट्राध्यक्ष घोषित कर दिया। चौधरी जनरल इरशाद के प्रति वफ़ादार रहे और राजनीतिक दल का नेतृत्व करने लगे।
बांग्लादेश में लोकतंत्र की मांग को लेकर हुए विरोध प्रदर्शन की वजह से इरशाद ने 6 दिसंबर, 1990 को राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया। उन्हें 12 दिसंबर को गिरफ्तार कर लिया गया और भ्रष्टाचार के आरोप में दोषी ठहराए जाने के बाद जेल भेज दिया गया।
न्याय मंत्री शहाबुद्दीन अहमद ने अगले साल चुनाव होने तक अंतरिम नेता के रूप में कार्यभार संभाला। इरशाद को अंततः जनवरी 1997 में रिहा कर दिया गया।
देश में पहला स्वतंत्र चुनाव 1991 में हुआ, जिसमें बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने जीत दर्ज की। जनरल जियाउर रहमान की विधवा खालिदा जिया बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं।
1996 में हसीना की अवामी लीग ने बीएनपी को हराकर उनकी जगह उनकी कट्टर प्रतिद्वंद्वी शेख हसीना को प्रधानमंत्री बनाया। वह देश के संस्थापक पिता मुजीबुर रहमान की बेटी हैं।
बीएनपी 2001 में सत्ता में लौटी और जिया एक बार फिर प्रधानमंत्री बनीं तथा अक्टूबर 2006 में अपना कार्यकाल पूरा किया।
2007 में, सेना के समर्थन से, राष्ट्रपति इयाजुद्दीन अहमद ने सरकार विरोधी प्रदर्शनों के बाद आपातकाल की घोषणा की।
इसके बाद सैन्य नेतृत्व वाली सरकार ने भ्रष्टाचार विरोधी अभियान शुरू किया और हसीना तथा जिया दोनों को भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में डाल दिया, लेकिन 2008 में उनकी रिहाई हो गई।
दिसंबर 2008 में चुनावों में अपनी पार्टी की जीत के बाद हसीना एक बार फिर प्रधानमंत्री बनीं और अबतक प्रधानमंत्री का दायित्व संभाल रही थीं।