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बांग्लादेश में लूटपाट और हिंसा के बीच चरमरा गई व्यवस्था, बंद पड़े हैं ATM; पुलिस सिस्टम खत्म

बांग्लादेश में तख्तापलट होने के बाद हालात लगातार बिगड़ते हुए नजर आ रहे हैं। पुलिस सिस्टम पूरी तरह खत्म नजर आ रहा और हिंसा के बाद अब लोग पाई-पाई के लिए तरस रहे हैं।

Bangladesh Violence- India TV Hindi Image Source : FILE AP Bangladesh Violence

Bangladesh Violence:  बांग्लादेश में सत्ता और सरकार बदलने के बाद हालात नाजुक बने हुए हैं। प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा देने के बाद शेख हसीना ने मुल्क भी छोड़ दिया। फिलहाल, हसीना भारत में हैं लेकिन बांग्लादेश में व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई हैं। स्थिति बदतर होती जा रही है और पुलिस सिस्टम पूरी तरह खत्म नजर आ रहा है। पुलिस सिस्टम ध्वस्त होने की वजह से अराजकता फेल गई है और इसका सबसे बुरा असर बैंकिग व्यवस्था पर पड़ा है। कैश क्राइसिस बढ़ गई है, सभी एटीएम बंद कर दिए हैं क्योंकि उनके लुट जाने का डर है। 

सेना के भरोसे हैं पुलिस थाने

पुलिस सिस्टम खत्म होने की वजह से ढाका में अराजकता का यह आलम कि कोई भी थाना सुरक्षित नजर नहीं आ रहा है। ढाका के मोहम्मदपुर थाने में अब ना कोई फाइल बची है और ना ही कोई गाड़ी। सबकुछ दंगाइयों ने या तो तोड़ दिया या फिर जला दिया। यहां पुलिस थाने अब सेना के भरोसे हैं। शहर में कोई भी वारदात हो, ना कोई मुकदमा लिखा जा रहा है और ना ही किसी को न्याय मिल रहा है। 

जारी है हिंसा

इस बीच यहां यह भी बता दें कि, बांग्लादेश में अंतरिम सरकार बन जाने के बाद भी हिंसा जारी है। प्रदर्शनकारियों ने गोपालगंज इलाके में सेना पर हमला किया है जिसमें पांच से ज्यादा सैन्यकर्मी घायल हो गए हैं। शनिवार को सेना के जवानों और अवामी लीग के समर्थकों के बीच हुई तीखी झड़प के बाद भीड़ ने सेना के एक वाहन को आग लगा दी। इस घटना में सेना के जवानों, पत्रकारों और स्थानीय लोगों सहित करीब 15 लोग घायल हुए हैं।  

सड़क पर उतरे हिंदू

इस बीच  बांग्लादेश की राजधानी ढाका और उत्तर-पूर्वी बंदरगाह शहर चटगांव में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के हजारों लोगों ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया है। उन्होंने देश भर में मंदिरों, उनके घरों और व्यवसायों पर हमलों के बीच सुरक्षा की मांग की है। प्रदर्शन में शामिल लोग अल्पसंख्यकों पर अत्याचार करने वालों के खिलाफ मुकदमा चलाने में तेजी लाने के लिए विशेष न्यायाधिकरणों की स्थापना, अल्पसंख्यकों के लिए 10 प्रतिशत संसदीय सीट, अल्पसंख्यक संरक्षण कानून लागू करने जैसी अन्य मांग कर रहे हैं। 

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