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श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव में दिसानायके ने बनाई मजबूत बढ़त, तीसरे नंबर पर पहुंचे विक्रमसिंघे

श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव में रानिल विक्रमसिंघे को बड़ा झटका लगा है। अनुरा कुमारा दिसानायके ने चुनाव में मजबूत बढ़त बना ली है। शुरुआती रुझानों में 56 वर्षीय दिसानायके ने 52 प्रतिशत वोट हासिल किए हैं।

Anura Kumara Dissanayake- India TV Hindi Image Source : FILE AP Anura Kumara Dissanayake

कोलंबो: श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव में नेशनल पीपुल्स पावर (NPP) के अनुरा कुमारा दिसानायके ने रविवार को मजबूत बढ़त बना ली है। शनिवार श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोट डाले गए थे। यह 2022 के आर्थिक संकट के बाद श्रीलंका में पहला चुनाव है। राष्ट्रपति चुनाव में लगभग 75 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया। नवंबर 2019 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में 83 प्रतिशत से अधिक मतदान दर्ज किया गया था। 

सबसे आगे दिसानायके

रविवार को मिले शुरुआती रुझानों में 56 वर्षीय दिसानायके ने 52 प्रतिशत वोट हासिल किए जबकि उनके करीबी प्रतिद्वंद्वी एवं मुख्य विपक्षी नेता साजिथ प्रेमदासा (57) ने 23 प्रतिशत वोट हासिल किए। निवर्तमान राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे (75) महज 16 फीसदी वोटों हासिल कर सके हैं। विक्रमसिंघे ने अभी हार स्वीकार नहीं की है लेकिन निवर्तमान विदेश मंत्री अली साबरी ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर दिसानायके को जीत की बधाई दी। साबरी ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘लंबे और कठिन अभियान के बाद चुनाव के नतीजे अब स्पष्ट हैं। मैंने राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के लिए काफी प्रचार किया लेकिन श्रीलंका के लोगों ने अपना फैसला दे दिया है और मैं अनुरा कुमारा दिसानायके के लिए उनके जनादेश का पूरी तरह सम्मान करता हूं। लोकतंत्र में लोगों की इच्छा का सम्मान करना अहम है और मैं बेहिचक इसका सम्मान करता हूं।’’ प्रेमदासा खेमे के वरिष्ठ नेता हर्षा डी सिल्वा ने भी दिसानायके को बधाई दी। एनपीपी सूत्रों ने बताया कि वो सत्ता हस्तांतरण की औपचारिकताओं पर चर्चा के लिए रविवार को राष्ट्रपति सचिवालय जाएंगे। 

केंद्र में रहा अर्थव्यवस्था का मुद्दा

विश्लेषकों का कहना है कि दिसानायके की जीत अप्रत्याशित है। हालांकि, चुनाव से पहले ही उनकी जीत का अनुमान जताया गया था। दिसानायके की एनपीपी को पिछले चुनाव में महज तीन प्रतिशत वोट मिले थे। श्रीलंका का संकट दिसानायके के लिए एक अवसर साबित हुआ, जिन्हें इस द्वीपीय देश की 'भ्रष्ट' राजनीतिक संस्कृति बदलने के उनके संकल्प के लिए भरपूर समर्थन मिला। इस बार अल्पसंख्यक तमिल मुद्दा एजेंडे में नहीं था। इसके बजाय, देश की चरमराई अर्थव्यवस्था और उसे पटरी पर लाने का मुद्दा केंद्र में था। (भाषा)

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