पाकिस्तान में अहमदी समुदाय के शख्स की चाकू मारकर हत्या, खादिम हुसैन रिजवी की तारीफ ने नहीं लगाए थे नारे
संदिग्ध ने पुलिस हिरासत में तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान के नारे लगाए और उसने नसीर अहमद की हत्या पर किसी भी तरह का पछतावा नहीं दिखाया।
लाहौर: पाकिस्तान से एक बार फिर अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्ति की हत्या की खबर सामने आई है। उस शख्स का कसूर सिर्फ इतना था कि उसने एक मौलवी की तारीफ करने से इनकार कर दिया था। रिपोर्ट्स के मुताबिक, पंजाब प्रांत में एक विवादास्पद मौलवी की प्रशंसा करने से इनकार करने पर एक ‘मजहबी कट्टरपंथी’ ने अहमदी समुदाय के 62 साल के शख्स की शुक्रवार को चाकू मारकर हत्या कर दी। बता दें कि पिछले कुछ महीनों में पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की हत्या के कई मामले सामने आए हैं।
‘रिजवी की तारीफ में नारे नहीं लगाए तो...’
रिपोर्ट्स के मुताबिक, ताजा घटना लाहौर से करीब 170 किलोमीटर दूर रबवाह या चिनाब नगर में हुई। रबवाह अहमदी कम्युनिटी का हेडक्वॉर्टर है। जमात-ए-अहमदिया पाकिस्तान के प्रवक्ता सलीमुद्दीन ने बताया कि तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान के संस्थापक खादिम हुसैन रिजवी की तारीफ में नारे नहीं लगाने पर एक ‘मजहबी कट्टरपंथी’ ने रबवाह के मेन बस अड्डे पर नसीर अहमद की चाकू मारकर हत्या कर दी। उन्होंने बताया कि संदिग्ध ने अहमद को रोका और उससे रिजवी की तारीफ में नारे लगाने को कहा। रिजवी ने जब ऐसा करने से इनकार किया तो संदिग्ध ने चाकू से उस पर हमला कर दिया।
‘आरोपी को हत्या का जरा भी पछतावा नहीं’
बताया जा रहा है कि स्थानीय लोगों ने TLP के सदस्य को काबू कर लिया और उसे पुलिस को सौंप दिया। सलीमुद्दीन ने कहा, ‘संदिग्ध ने पुलिस हिरासत में तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान के नारे लगाए और उसने नसीर अहमद की हत्या पर किसी भी तरह का पछतावा नहीं दिखाया।’ पुलिस ने बताया कि संदिग्ध की पहचान हाफिज शहजाद हसन सैलवी के रूप में की गई है। वह अपने गृहनगर सरगोधा शहर में TLP द्वारा चलाए जा रहे एक मदरसे का छात्र रहा है। पुलिस ने संदिग्ध के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया है और उसे शनिवार को अदालत में पेश किया जाएगा।
कौन हैं अहमदी समुदाय के लोग
बता दें कि पाकिस्तान की संसद ने 1974 में अहमदी समुदाय को गैर-मुसलमान घोषित किया था। इसके एक दशक बाद उनके ऊपर यह भी प्रतिबंध लगा दिया गया कि वह खुद को मुसलमान नहीं कह सकते। उन पर तीर्थयात्रा के लिए सऊदी अरब की यात्रा करने और उपदेश देने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है। इस समुदाय की स्थापना मिर्जा गुलाम अहमद ने 19वीं शताब्दी में की थी। माना जाता है कि दुनिया में अहमदिया समुदाय के लोगों की संख्या एक से दो करोड़ के बीच है।