स्टॉकहोम: जापान के योशिनोरी ओहसुमी ने आज ऑटोफैगी से संबंधित उनके काम के लिए इस साल का नोबल चिकित्सा पुरस्कार जीता। ऑटोफैगी एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें कोशिकाएं खुद को खा जाती हैं और उन्हें बाधित करने पर पार्किंसन एवं मधुमेह जैसी बीमारियां हो सकती हैं। ऑटोफैगी कोशिका शरीर विज्ञान की एक मौलिक प्रक्रिया है जिसका मानव स्वास्थ्य एवं बीमारियों के लिए बड़ा निहितार्थ है। अनुसंधानकर्ताओं ने सबसे पहले 1960 के दशक में पता लगाया था कि कोशिकाएं अपनी सामग्रियों को झिल्लियों में लपेटकर और लाइसोजोम नाम के एक पुनर्चक्रण कंपार्टमेंट में भेजकर नष्ट कर सकती हैं।
ज्यूरी ने कहा, प्रक्रिया के अध्ययन में मुश्किलों का मतलब था कि 1990 के दशक के शुरूआती वर्षौं तक इसे लेकर बहुत कम जानकारी थी लेकिन तब योशिनोरी ओहसुमी ने ऑटोफैगी के लिए जरूरी जीन की पहचान करने के लिए खमीर का इस्तेमाल किया। इसके बाद उन्होंने खमीर में ऑटोफैगी के लिए अंतर्निहित तंत्र को स्पष्ट किया और दिखाया कि मानव कोशिकाओं में इसी तरह की उन्नत मशीनरी का इस्तेमाल किया जाता है।
ज्यूरी ने कहा कि ओहसुमी की खोज से कोशिकाएं अपनी सामग्रियों को किस तरह पुनर्चक्रित करती हैं, इसे समझने के लिए एक नया प्रतिमान स्थापित हुआ। नोबल ज्यूरी ने कहा, ऑटोफैगी जीन में बदलाव से बीमारियां हो सकती हैं और ऑटोफैगी की प्रक्रिया कैंसर तथा मस्तिष्क से जुड़ी बीमारियों जैसी कई स्थितियों में शामिल होती हैं। 71 साल के ओहसुमी ने 1974 में तोक्यो विश्वविद्यालय से पीएचडी की थी। वह इस समय तोक्यो इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में प्रोफेसर हैं। पुरस्कार के साथ 80 लाख स्वीडिश क्रोनोर (करीब 9,36,000 डॉलर) की राशि दी जाती है।
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