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इंडोनेशिया में गुफा के भीतर दुनिया की सबसे पुरानी पेंटिंग को खोज निकाला गया

ऑस्ट्रेलिया में ग्रिफिट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एडम ब्रूम ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया, ‘सुलावेसी की लेंग टेडोंगगने गुफा में मिली पेंटिंग दुनिया में गुफा कलाकृति का सबसे पुराना नमूना है।

Oldest Cave Painting, Cave Painting Wild Boar, Cave Painting Warty Pig- India TV Hindi Image Source : PIXABAY REPRESENTATIONAL पुरातत्वविदों ने गुफा में उकेरे गए दुनिया के सबसे पुराने चित्र का पता लगा लिया है।

जकार्ता: मानव जाति के इतिहास से जुड़ी एक बेहद ही अहम खबर सामने आई है। रिपोर्ट्स के मुतबिक, पुरातत्वविदों ने गुफा में उकेरे गए दुनिया के सबसे पुराने चित्र का पता लगा लिया है। बताया जा रहा है कि इंडोनेशिया के एक द्वीप पर गुफा के भीतर 45,500 साल पहले जंगली सूअर की पेंटिंग की जानकारी मिली है। खास बात यह है कि सूअर की यह प्रजाति हजारों साल पहले ही खत्म हो चुकी है। इंडोनेशिया के दक्षिण सुलावेसी द्वीप में गुफा में इस पेंटिंग का पता लगाया गया। शोध पत्रिका ‘साइंस एडवांसेस’ में मानव सभ्यता की इस अनमोल धरोहर के बारे में अध्ययन प्रकाशित किया गया है।

‘एक घाटी में स्थित है यह गुफा’
रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस पूरे क्षेत्र में इंसानों की मौजूदगी के शुरुआती पुरातात्विक प्रमाणों का भी इस रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है। ऑस्ट्रेलिया में ग्रिफिट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एडम ब्रूम ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया, ‘सुलावेसी की लेंग टेडोंगगने गुफा में मिली पेंटिंग दुनिया में गुफा कलाकृति का सबसे पुराना नमूना है। यह गुफा एक घाटी में है जो कि बाहर से चूना-पत्थर की चट्टानों के कारण बंद हो गया था और शुष्क मौसम में सुराख बनने से वहां जाने का एक संकरा रास्ता बना।’

‘कम से कम 45 हजार साल पुरानी है पेंटिंग’
प्रोफेसर एडम ब्रूम ने इस बारे में आगे बात करते हुए कहा कि इस घाटी में रहने वाले बगिस समुदाय ने दावा किया कि वे पहले कभी गुफा की तरफ नहीं गए थे। अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि सुलावेसी में सूअर की बड़ी-सी कलाकृति कम से कम 45,500 साल पुरानी है। इससे पहले 43,900 साल पहले की पेंटिंग खोज निकाली गई थी। इंडोनेशिया के एक पुरातत्वविद और ग्रिफिट यूनिवर्सिटी के शोधार्थी बसारन बुरहान ने बताया कि हजारों साल पहले ही सूअर की यह प्रजाति खत्म हो गई। उन्होंने कहा, ‘द्वीप पर हिम युग की चट्टानों पर इस तरह के सूअरों का चित्रण किया जाता था।’

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