आखिर जंग में जीती जमीन पाकिस्तान को क्यों लौटाई गई'
नई दिल्ली: इन दिनों भारत की पाकिस्तान पर सन 1965 में हासिल की गई गौरवशाली विजय की स्वर्ण जयंती मनाई जा रही है। जनसंचार के माध्यमों पर उस महान जीत का जश्न मनाया जा रहा है।
नई दिल्ली: इन दिनों भारत की पाकिस्तान पर सन 1965 में हासिल की गई गौरवशाली विजय की स्वर्ण जयंती मनाई जा रही है। जनसंचार के माध्यमों पर उस महान जीत का जश्न मनाया जा रहा है। सरकारी कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। पर इन सबके बीच कुछ है, जो पूर्व सैनिकों के दिलों में चुभ रहा है। दरअसल पूर्व सैनिकों को आज भी इस बात का बेहद मलाल है कि हमने पाकिस्तान से जीती 1920 वर्ग किलोमीटर जमीन उसे लौटा क्यों दी? आखिर पाकिस्तान ने तो घुटने टेक दिए थे, फिर भारत पर किस बात का दबाव था कि भारतीय सेनाओं को फिर से पुरानी पोजीशन्स पर लौटना पड़ा। पूर्व सैनिक ही नहीं, भारत के अधिकांश लोगों के ज़हन में यह सवाल ज़रूर उभरता है कि आखिर हमने जंग में जीती हुई जमीन पाकिस्तान को क्यों वापस कर दी?
पूर्व सैनिकों की यादों में बसी 1965 की बहादुरी की गाथाएं
पूर्व सैनिक तो खासतौर से 1965 की जंग में बहादुरी और अकल्पनीय साहस की शानदार गाथाओं को याद करते हैं, सुनाते भी हैं। देश के राजनैतिक नेतृत्व से उनकी कुछ अपेक्षाएं रही हैं जो शायद पूरी नहीं हुईं। इन्हीं में से एक वन रैंक वन पेंशन है जिसके लिए वे लड़ रहे हैं और एक यह भी है कि पाकिस्तान से छीन ली गई जमीन आखिर उसे वापस करने की जरूरत क्या थी।
लाल बहादुर शास्त्री की योग्यता को कम करके आंका पाकिस्तान ने
भारतीय वायुसेना के अवकाश प्राप्त विंग कमांडर के.एस.परिहार भी ऐसे ही एक पूर्व सैनिक हैं। वह तब 21 साल के थे जब युद्ध पूरी तरह से छिड़ चुका था। वह प्रशिक्षित पारा कमांडो भी थे। उनका काम दुश्मन के इलाकों के पास विमान से जवानों को पहुंचाना भी था। परिहार ने आईएएनएस से कहा, "पाकिस्तान को लगा था कि लाल बहादुर शास्त्री जैसा विनम्र और सामान्य सा दिखने वाला इनसान उसके खिलाफ खड़ा नहीं हो सकेगा। पाकिस्तानी राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान छह फीट लंबे थे। उनके पास अमेरिका से मिले तमाम तरह के अत्याधुनिक हथियार थे। लेकिन वे यह भूल गए कि भारतीय फौजी अपनी मातृभूमि से प्यार की खातिर लड़ता है। "
जंग में जीती जमीन पाक को लौटाने से पूर्व सैनिक गुस्सा
उन्होंने कहा, "हमारे सैनिकों ने अपना खून बहा दिया और जितनी जमीन हमने जीती, सभी पाकिस्तान को लौटा दी गई। हमें इस बारे में सोचकर गुस्सा महसूस होता है।" अवकाश प्राप्त कर्नल वी.एस.ओबराय ने 1965 के साथ साथ 1962 और 1971 की जंगों में भी हिस्सा लिया था। वह उस फौजी दस्ते का हिस्सा थे जिसने सियालकोट को रावलपिंडी से जोड़ने वाले रेलवे स्टेशन अल्हार पर कब्जा कर लिया था। ओबराय बताते हैं, "हम सीमा पार कर उनके इलाके में घुस गए थे। लगातार 16 दिन हम उधर ही रहे। इस बीच युद्धविराम का ऐलान हो गया। तब तक हम अल्हार रेलवे स्टेशन पर कब्जा कर चुके थे। इससे सियालकोट और रावलपिंडी का संपर्क कट गया था। लेकिन यह सारा इलाका पाकिस्तान को वापस कर दिया गया। हमें आज भी इस पर गुस्सा आता है।"
जमीन न लौटाते तो कश्मीर और जम्मू की दूरी 200 किलोमीटर कम हो जाती
ओबराय ने अफसोस जताते हुए कहा, "यहां तक कि हमने उन्हें (रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण) हाजी पीर दर्रा (जो जम्मू से श्रीनगर की दूरी 200 किलोमीटर घटा देता है) भी वापस कर दिया।" युद्ध का स्वर्ण जयंती समारोह 28 अगस्त से शुरू हुआ है। 28 अगस्त ही वह तारीख है जब हाजी पीर पर भारत का कब्जा हुआ था।