इमरान खान ने कहा, अमेरिका ने अफगानिस्तान में चीजें वाकई में अस्त-व्यस्त कर दीं
इमरान खान ने कहा कि अमेरिका को बहुत पहले ही राजनीतिक समाधान का विकल्प चुनना चाहिए था जब अफगानिस्तान में नाटो के डेढ़ लाख सैनिक थे।
इस्लामाबाद: अफगानिस्तान में 2001 में हमले के मकसद करने और फिर कमजोर स्थिति से तालिबान के साथ राजनीतिक समाधान ढूढने की कोशिश को लेकर अमेरिका की मंशा पर सवाल खड़ा करते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा है कि उसने ‘वाकई वहां चीजें अस्त-व्यस्त कर दी हैं।’ खान ने यह भी कहा कि अफगानिस्तान की स्थिति का एकमात्र बेहतर समाधान राजनीतिक समझौता ही है जो ‘समावेशी’ हो और इसमें ‘तालिबान समेत सभी गुट शामिल हो।’ डॉन अखबार के मुताबिक, खान ने अमेरिकी खबरिया कार्यक्रम पीबीएस आवर में जूडी वुडरफ के साथ इंटरव्यू के दौरान कहा,‘मैं समझता कि अमेरिका ने वाकई वहां चीजें अस्त-व्यस्त कर दी है।’
तालिबान के साथ हुए करार के तहत अमेरिका और उसके नाटो सहयोगी देश आतंकवादियों के इस वादे के बदले अपने सभी सैनिकों को वापस बुलाने पर सहमत हो गए कि वे चरमपंथी संगठनों को अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों में अपनी गतिविधियां चलाने से रोकेंगे। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने घोषणा की कि अमेरिकी सैनिक 31 अगस्त तक अफगानिस्तान से बुला लिए जाएंगे। खान ने ‘अफगानिस्तान में सैन्य हल ढूढने की कोशिश के लिए अमेरिका की आलोचना की क्योंकि कभी वैसा कुछ ऐसा था ही नहीं। और मुझ जैसे जो लोग यह कहते रहे कि कोई सैन्य समाधान नहीं है, क्योंकि हमें अफगानिस्तान का इतिहास मालूम था, तब हमें, मुझ जैसे लोगों को अमेरिका-विरोधी कहा गया। मुझे तालिबान खान कहा गया।’
मंगलवार रात प्रसारित कार्यक्रम में इमरान ने इस बात पर अफसोस जताया कि जबतक अमेरिका को यह अहसास हुआ कि अफगानिस्तान में कोई सैन्य समाधान नहीं हो सकता तबतक ‘दुर्भाग्य से अमेरिकियों एवं नाटो की मोल-भाव की शक्ति चली गई।’ प्रधानमंत्री ने कहा कि अमेरिका को बहुत पहले ही राजनीतिक समाधान का विकल्प चुनना चाहिए था जब अफगानिस्तान में नाटो के डेढ़ लाख सैनिक थे। उन्होंने कहा, ‘लेकिन एक बार जब उन्होंने सैनिकों की संख्या घटाकर महज 10,000 कर दी और जब उन्होंने वापसी की तारीख बता दी, तब तालिबान ने सोचा कि वे तो जीत गये। इसलिए अब उन्हें समझौते के लिए साथ लाना बड़ा मुश्किल है।’
जब इंटरव्यू ले रहे पत्रकार ने पूछा किया क्या वह सोचते हैं कि तालिबान का उभार अफगानिस्तान के लिए एक सकारात्मक कदम है तो प्रधानमंत्री ने दोहराया कि केवल अच्छा नतीजा राजनीतिक समझौता होगा ‘जो समावेशी हो। निश्चित ही, तालिबान सरकार का हिस्सा होगा।’ अफगानिस्तान में गृह युद्ध के संदर्भ में खान ने कहा, ‘पाकिस्तान के दृष्टिकोण से यह सबसे बुरी स्थिति है क्योंकि हमारे समक्ष दो परिदृश्य है, उनमें एक शरणार्थी समस्या है। पहले से ही पाकिस्तान 30 लाख से अधिक शरणार्थियों को शरण दे रहा है और हमारा डर है कि गृहयुद्ध लंबा खिंचने से और शरणार्थी आएंगे। हमारी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि हम और प्रवासियों को झेल पाएं।’
उन्होंने कहा कि दूसरी समस्या के तहत गृहयुद्ध के सीमा पार करके पाकिस्तान पहुंचने का डर है। उन्होंने कहा कि दरअसल तालिबान जातीय रूप से पश्तून हैं और ‘यदि यह जारी रहता है तो हमारे ओर के पश्तून उसमें खिंचे चले जायेंगे।’