पाकिस्तानी शासन के तहत गिलगित-बल्तिस्तान को सबसे ज्यादा नजरअंदाज किया गया: पुस्तक
बर्फ से ढंके पर्वतों की 32 चोटियां, विशाल ग्लेशियर, हरी-भरी घाटियां और मीठे पानी की झीलों के साथ गिलगित-बल्तिस्तान विश्व की सबसे खूबसूरत जगहों में एक है। साथ ही, वहां सोना, चांदी और यूरेनियम के प्रचुर भंडार भी हैं।
नई दिल्ली। बर्फ से ढंके पर्वतों की 32 चोटियां, विशाल ग्लेशियर, हरी-भरी घाटियां और मीठे पानी की झीलों के साथ गिलगित-बल्तिस्तान विश्व की सबसे खूबसूरत जगहों में एक है। साथ ही, वहां सोना, चांदी और यूरेनियम के प्रचुर भंडार भी हैं।
हालांकि, पाकिस्तान के करीब सात दशक के अवैध कब्जे के दौरान गिलगित-बल्तिस्तान को पूरे दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा नजरअंदाज किया गया और उसे एक पिछड़ा और आर्थिक रूप से सबसे कमजोर बना दिया। तीन पाकिस्तानी विशेषज्ञों द्वारा लिखी गई एक नई पुस्तक, ‘पाकिस्तान ऑक्यूपाइड कश्मीर- पॉलिटिक्स, पार्टीज एंड पर्सनैलिटीज’ में ये बातें कही गईं हैं।
‘आर्थिक हालत में सुधार के लिए पाकिस्तान ने कुछा खास नहीं किया’
पुस्तक में कहा गया है, ‘‘पाकिस्तान सरकार ने गिलगित-बल्तिस्तान के लोगों की आर्थिक हालत में सुधार करने के लिए कुछ खास नहीं किया है। इस इलाके को दक्षिण एशिया में सर्वाधिक पिछड़ा माना जाता है।’’ अन्य विशेषज्ञों ने भी कहा है कि पाकिस्तान ने क्षेत्र के लोगों का सुनियोजित तरीके से दमन किया है, जो ज्यादातर शिया हैं और पाकिस्तान के अन्य हिस्सों से सुन्नी आबादी के वहां उमड़ने का सामना कर रहे हैँ।
‘लोगों के सुनियोजित दमन में लगा हुआ है पाकिस्तान’
रणनीतिक मामलों के एक विशेषज्ञ तिलक देवाशेर ने कहा कि पाकिस्तान ने खुद को जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक अधिकारों और ‘आत्म निर्णय’ (के अधिकार) का सबसे बड़े समर्थक के रूप में पेश किया है, लेकिन सच्चाई यह है कि गिलगित-बल्तिस्तान में वह, “लोगों के सुनियोजित दमन” में लगा हुआ है। उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा, “यहां तक कि उसने उनके (वहां के लोगों के) संवैधानिक एवं कानूनी अधिकार भी नहीं दिये हैं लेकिन वह जम्मू-कश्मीर में आत्म निर्णय के अधिकार के बारे में पाखंडपूर्ण ढंग से बात करता है।”
बीएनएफ नेता लिखा था यूएन को पत्र
क्षेत्र की एक प्रमुख राजनीतिक पार्टी बलवारिस्तान नेशनल फ्रंट (बीएनएफ) के नेता अब्दुल हामिद खान ने वहां की स्थिति के बारे में 14 मार्च 2016 को संयुक्त राष्ट्र के तत्कालीन प्रमुख बान की मून को एक पत्र लिख कर कहा था, ‘‘पाक के कब्जे वाले गिलगित-बल्तिस्तान में लोगों को मानविधकारों के हनन से बचाने के लिए कोई कानूनी, संवैधानिक, न्यायिक तंत्र नहीं है।’’
पाकिस्तान ने चीन को दे दिया गिलगित का बड़ा हिस्सा
यह क्षेत्र 1947 में पाकिस्तान द्वारा कब्जा किए जाने से पहले जम्मू कश्मीर का ही एक हिस्सा हुआ करता था। लेकिन अब बढ़ती आत्महत्याओं, कट्टरपंथी हिंसा, मानवाधिकारों के हनन और आतंकवाद का पर्याय बन कर रह गया है। पाकिस्तान और चीन के बीच 1963 में हुए एक समझौते के तहत पाक ने गिलगित-बल्तिस्तान क्षेत्र का 5,180 वर्ग किमी हिस्सा चीन को सौंप दिया।
बेहद कम है साक्षरता दर
प्रमुख थिंक टैंक ‘इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस’ द्वारा प्रकाशित पुस्तक के मुताबिक वहां के 85 प्रतिशत लोग खेती से सिर्फ अपना भरन-पोषण ही कर पा रहे हैं। वहीं पाकिस्तान इंस्टीट्यूट फॉर पीस स्टडीज की रिपोर्ट के मुताबिक क्षेत्र में पुरुषों की साक्षरता दर महज 14 प्रतिशत और महिलाओं की महज 3.5 प्रतिशत है। हालांकि, पुस्तक में कहा गया है कि गिलगित-बल्तिस्तान की सरकार द्वारा 2013 में तैयार डेटा में दावा किया गया था कि 1998 में साक्षरता दर 37.85 प्रतिशत और 2013 में यह 60 प्रतिशत पर पहुंच गई थी।
CPEC की वजह से चीन दिखा रहा है इलाके में रुचि
पुस्तक में कहा गया है कि पाकिस्तान पर चीन इसके लिए दबाव डाल रहा है कि वह गिलगित-बल्तिस्तान को स्पष्ट कानूनी दर्जा मुहैया करे क्योंकि भारत ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) पर सख्त ऐतराज जताते हुए कहा है कि यह गलियारा विवादित क्षेत्र को दो हिस्सों में बांटता है।
पुस्तक के मुताबिक चीन ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में और खासतौर पर गिलगित-बल्तिस्तान में काफी रुचि जाहिर की है क्योंकि उसने इलाके में बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा की परियोजनाएं शुरू की हैं। सीपीईसी के पूरा होने पर इस क्षेत्र में चीन का नियंत्रण बढ़ जाएगा। सुरिंदर कुमार शर्मा, याकूब अल हसन और अशोक बेहुरिया द्वारा लिखी गई यह पुस्तक इस पर्वतीय क्षेत्र में सामाजिक-राजनीतिक गतिविधियां, चीन की बढ़ती मौजूदगी और लगातार हो रहे जनसांख्यिकीय बदलावों समेत रणनीतिक आयामों को बयां करती है।