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ताइवान को लेकर तनाव ने एशिया में अमेरिका-चीन टकराव की आशंका बढ़ाई

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ताइवान और चीन के पुन: एकीकरण की जोरदार वकालत करते हुए पिछले सप्ताह कहा था कि ‘ताइवान का मुद्दा’ सुलझाया जाएगा और ‘शांतिपूर्ण एकीकरण’ दोनों पक्षों के हितों में है। 

ताइवान को लेकर तनाव ने एशिया में अमेरिका-चीन टकराव की आशंका बढ़ाई- India TV Hindi Image Source : FILE ताइवान को लेकर तनाव ने एशिया में अमेरिका-चीन टकराव की आशंका बढ़ाई

 बैंकॉक: चीन के राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर ताइवान को परेशान करने के लिए रिकॉर्ड संख्या में सैन्य विमान भेजने के बाद बीजिंग ने धमकाने वाली अपनी कार्रवाइयों में कमी की है, लेकिन तनाव अब भी कम नहीं हुआ है और इन सैन्य अभ्यासों को उचित ठहराने की चीन की कोशिश और बयानबाजी जारी है। विशेषज्ञ इस बात को लेकर सहमत है कि सीधे संघर्ष होने की आशंका इस समय नहीं है, लेकिन स्वशासित ताइवान के भविष्य को लेकर स्थिति कभी भी खतरनाक बन सकती है। उनका कहना है कि किसी भी एक हादसे या गलत अनुमान के कारण ऐसे समय में संघर्ष की स्थिति बन सकती है, जब चीनी और अमेरिकी महत्वाकांक्षाएं एक दूसरे से विपरीत हैं। 

चीन रणनीतिक और प्रतीकात्मक रूप से महत्वपूर्ण द्वीप को फिर से अपने नियंत्रण में लेना चाहता है और अमेरिका ताइवान के मामले को चीन की ओर से बढ़ती चुनौतियों के संदर्भ में देखता है। ‘इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज’ में ब्रितानी रक्षा विश्लेषक हेनरी बॉयड ने कहा कि अमेरिका के दृष्टिकोण से चीन के साथ शक्ति को लेकर प्रतिद्वंद्विता की अवधारणा इस आशंका को बल दे रही है। 

उन्होंने कहा, ‘‘इस संदर्भ में प्रेरित करने के लिए चीन के खिलाफ खड़े होने की आवश्यकता पर्याप्त है और इस संघर्ष में शामिल नहीं होने को अमेरिकी राष्ट्रीय हितों के साथ विश्वासघात की तरह देखा जाएगा।’’ ताइवान खुद को एक संप्रभु राष्ट्र मानता है लेकिन चीन इस पर अपना दावा करता है। द्वीप पर कब्जा करना बीजिंग की राजनीतिक और सैन्य सोच का हिस्सा है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ताइवान और चीन के पुन: एकीकरण की जोरदार वकालत करते हुए पिछले सप्ताह कहा था कि ‘ताइवान का मुद्दा’ सुलझाया जाएगा और ‘शांतिपूर्ण एकीकरण’ दोनों पक्षों के हितों में है। शी ने कहा था कि ताइवान के मुद्दे पर किसी भी तरह के ‘‘विदेशी हस्तक्षेप’’ को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। 

चीन की बढ़ती आक्रमता के मद्देनजर अमेरिका और जापान ताइवान के प्रति अपना समर्थन बढ़ा रहे हैं जिसकी पृष्ठभमि में चीन की यह टिप्पणी आई थी। चीन और अमेरिका के बीच टकराव की स्थिति 1996 में पैदा हुई थी। चीन ने ताइवान के लिए बढ़ते अमेरिकी सहयोग से नाराज होकर ताइवान के तट से करीब 30 किलोमीटर दूर जलक्षेत्र में मिसाइल प्रक्षेपण समेत सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया था। इसके जवाब में अमेरिका ने क्षेत्र में दो विमान वाहक पोत भेजे थे। उस समय चीन के पास विमान वाहक और अमेरिकी पोतों को धमकाने के लिए पर्याप्त साधन नहीं थे, इसलिए वह पीछे हट गया था। इसके बाद चीन ने अपनी सेना को मजबूत बनाना शुरू किया और 25 साल बाद उसने मिसाइल सुरक्षा प्रणाली विकसित कर ली है, जो जवाबी हमला कर सकती है और उसने अपने विमान वाहक पोत भी बना लिए हैं। 

अमेरिकी नौसेना के सचिव कार्लोस डेल तोरो ने पिछले सप्ताह नई रणनीतिक मार्गदर्शन नीति में चीन को ‘‘सबसे बड़ी’’ दीर्घकालीन चुनौती बताया था। चीन ने अपने राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर ताइवान के दक्षिण पश्चिम में रिकॉर्ड 149 सैन्य विमान भेजे थे, जिसे लेकर अमेरिका ने गहरी चिंता व्यक्त की। चीन के एक अधिकारी ने कहा था कि ताइवान के नजदीक सैन्य अभ्यासों और जंगी विमान मिशन राष्ट्र की स्वायत्तता एवं क्षेत्र की रक्षा के लिए जरूरी थे। इससे क्षेत्र में चिंताएं बढ़ी हैं। ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग-वेन ने बीजिंग के साथ अप्रत्याशित तानव के बाद द्वीप की चीन के बढ़ते दबाव से रक्षा करने का संकल्प लिया। (भाषा)

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