इस्लामाबाद. पाकिस्तान में 6,219 लोगों की जान लेने और 2,91,588 लोगों को संक्रमित करने वाले कोरोना वायरस के खिलाफ लगभग 11 प्रतिशत पाकिस्तानियों में प्रतिरोधी क्षमता विकसित हुई है। मीडिया में शुक्रवार को आई रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई। इस साल जुलाई में राष्ट्रीय स्वास्थ्य अकादमी ने आगा खान विश्वविद्यालय समेत कई सहयोगियों के साथ मिलकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सहयोग से 25 शहरों में “नेशनल सिरोप्रीवेलेंस स्टडी” की। इस अध्ययन के आंकड़ों का अब खुलासा किया गया है।
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राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा मंत्रालय ने कहा कि यह WHO के ‘यूनिटी’ अध्ययन का हिस्सा है जो एक साथ 25 अन्य देशों में भी संचालित किया जा रहा है। डान अखबार की खबर के मुताबिक सिरोप्रीवेलेंस अध्ययन यह पता लगाने के उद्देश्य से किया जाता है कि वायरस के खिलाफ कितने प्रतिशत आबादी में रक्षात्मक प्रतिरोध क्षमता (एंटीबॉडी) विकसित हुई हैं।
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खबर के मुताबिक अध्ययन में सामने आया कि करीब 11 प्रतिशत पाकिस्तानी आबादी में नए कोरोना वायरस के खिलाफ रक्षात्मक प्रतिरोधक्षमता विकसित है। अध्ययन में कहा गया, “ग्रामीण इलाकों की तुलना में शहरी इलाकों में सीरो सकारात्मकता ज्यादा है, इसी तरह जो लोग कोविड-19 मरीज के संपर्क में आए उनके रक्त में एंटीबॉडीज होने की संभावना ज्यादा है।” इसमें कहा गया कि शहरी आबादी और मध्यम आयुवर्ग के लोग इस बीमारी से ज्यादा सुरक्षित हैं।
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हालांकि ग्रामीण इलाकों में आबादी और वरिष्ठ नागरिकों में खतरनाक विषाणु की दूसरी लहर की चपेट में आने का जोखिम सबसे ज्यादा है। यह विषाणु युवा वयस्कों में ज्यादा समान्य है और बच्चों व बुजुर्गों में महत्वपूर्ण रूप से कम। अध्ययन में यह भी पाया गया कि जुलाई में मास्क पहनने और बार-बार हाथ धोने की प्रक्रिया का क्रमश: 60 प्रतिशत और 70 प्रतिशत आबादी ने पालन किया।
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अध्ययन में यह भी सुझाव दिया गया कि कम प्रतिरोधक क्षमता दर वाले इलाकों में भविष्य में बीमारी का जोखिम ज्यादा है। अध्ययन में शामिल एक स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा कि स्वास्थ्य विभाग ने प्रारंभिक जानकारी साझा की है और तीन-चार हफ्तों में अध्ययन में सामने आई कई दूसरी जानकारियों को साझा किया जाएगा।
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