इस्लामाबाद: पाकिस्तान के उच्चतम न्यायालय ने कराची प्रशासन को एक हिंदू धर्मशाला को ढहाए जाने से रोकने और शहर में स्थित इस धरोहर संपत्ति को पट्टे पर देने का आदेश दिया है। पाकिस्तान के प्रधान न्यायाधीश गुलज़ार अहमद की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने शुक्रवार को अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर 2014 के फैसले के कार्यान्वयन के संबंध में एक मामले की सुनवाई करते हुए यह आदेश जारी किया।
‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ की रविवार की खबर के अनुसार, सुनवाई के दौरान अल्पसंख्यकों पर एक सदस्यीय आयोग के सह-चयनित सदस्य डॉ रमेश कुमार ने कहा कि कराची के सदर टाउन-आई में लगभग 716 वर्ग गज की संपत्ति धर्मशाला थी। कुमार ने अदालत के सामने इमारत की तस्वीरें भी रखीं। उन्होंने कहा कि इवैक्वी ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड (ईटीपीबी) ने संपत्ति को किसी निजी व्यक्ति को पट्टे पर दिया था, जो एक वाणिज्यिक प्लाजा बनाने के लिए धर्मशाला को ध्वस्त कर रहा है।
कुमार ने कहा कि ईटीपीबी के अध्यक्ष ने तर्क दिया कि सिंध उच्च न्यायालय (एसएचसी) ने ईटीपीबी को जगह पट्टे पर देने की अनुमति दी है। हालांकि, उच्चतम न्यायालय की पीठ ने कहा कि एसएचसी का ऐसा आदेश उसके सामने नहीं था। उच्चतम न्यायालय ने कहा, ‘‘यह तस्वीर स्पष्ट रूप से दिखाती है कि इमारत 1932 में निर्मित धर्मशाला की है, जिसे इमारत पर लगी संगमरमर की पट्टी पर पढ़ा जा सकता है और यह एक संरक्षित धरोहर भवन होना चाहिए।’’
न्यायालय ने सिंध के धरोहर सचिव को नोटिस जारी कर इमारत के संबंध में रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है। खबर में अदालत के आदेश के हवाले से कहा गया है, ‘‘किसी भी ध्वस्त सामग्री को हटाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। यह कार्य आयुक्त कराची द्वारा आज किया जाना चाहिए और इस संबंध में रिपोर्ट, सर्वोच्च न्यायालय के कार्यालय को प्रस्तुत की जानी चाहिए।’’ न्यायालय ने इस आवेदन पर धार्मिक मामलों के मंत्रालय और पाकिस्तान के अटॉर्नी जनरल को नोटिस जारी किया।
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