अनुच्छेद 370 पर पाकिस्तान की भारत को धमकी, करेगा इस विकल्प का इस्तेमाल
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को खत्म करने संबंधी कदम को अवैध करार दिया और कहा कि यह परमाणु हथियारों से लैस दो पड़ोसी देशों के बीच संबंधों को और अधिक बिगाड़ेगा।
इस्लामाबाद: पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 खत्म करने के भारत सरकार के कदम की सोमवार को आलोचना की। उसने भारत के अवैध और एकतरफा कदम के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में अपील करने समेत सभी संभावित विकल्पों का इस्तेमाल करने का भी संकल्प लिया। भारत के इस कदम का उद्देश्य कश्मीर में दशकों से चले आ रहे अलगावादी आंदोलन को खत्म करना बताया जा रहा है।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को खत्म करने संबंधी कदम को अवैध करार दिया और कहा कि यह परमाणु हथियारों से लैस दो पड़ोसी देशों के बीच संबंधों को और अधिक बिगाड़ेगा। पाकिस्तानी विदेश कार्यालय ने भारतीय उच्चायुक्त अजय बिसारिया को सोमवार को विदेश कार्यालय में तलब किया और जम्मू कश्मीर पर भारत सरकार के कदम को लेकर सख्त ऐतराज जताया।
पाक विदेश कार्यालय ने एक बयान में कहा कि बिसारिया को विदेश सचिव सोहैल महमूद ने तलब किया। बयान में कहा गया है, ‘‘विदेश कार्यालय ने इन अवैध कार्यों को पाकिस्तान द्वारा स्पष्ट रूप से खारिज किये जाने से अवगत कराया क्योंकि ये अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के कई प्रस्तावों का उल्लंघन करते हैं।’’ इससे पहले, पाकिस्तान के विदेश कार्यालय ने कहा कि जम्मू कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवादित क्षेत्र माना गया है।
विदेश कार्यालय ने एक बयान में कहा, ‘‘भारत सरकार द्वारा उठाये गये किसी भी एकतरफा कदम से न तो इस क्षेत्र का दर्जा बदल सकता है और न ही जम्मू-कश्मीर और पाकिस्तान के लोगों को यह स्वीकार्य होगा।’’ उसने कहा कि पाकिस्तान इसकी कड़ी निंदा करता है और जम्मू-कश्मीर के संबंध में भारत सरकार की घोषणाओं को खारिज करता है। बयान में कहा गया है, ‘‘इस अंतरराष्ट्रीय विवाद में एक पक्षकार के रूप में पाकिस्तान सभी संभावित विकल्पों का इस्तेमाल करेगा।’’
इसमें कहा गया है कि पाकिस्तान कश्मीर के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और जम्मू कश्मीर के लोगों के लिए अपने राजनीतिक, कूटनीतिक और नैतिक समर्थन की फिर से पुष्टि करता है। विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा कि पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र, इस्लामी सहयोग संगठन, मित्र देशों और मानवाधिकार संगठनों से अपील करेगा कि वे इस मुद्दे पर चुप नहीं रहें। कुरैशी ने कहा कि कश्मीर में स्थिति पहले से अधिक गंभीर है। उन्होंने कहा, ‘‘हम अपने कानूनी विशेषज्ञों से सलाह लेंगे।’’
पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के इस पर कई प्रस्ताव हैं और उन्होंने इसे एक विवादित क्षेत्र के रूप में स्वीकार किया है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसे एक विवादित क्षेत्र के रूप में स्वीकार किया था।’’ कुरैशी ने कहा कि भारत के इस कदम से दिखता है कि उन्हें कश्मीरी लोगों से कोई उम्मीद नहीं थीं। पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने कहा कि पाकिस्तान पहले की तरह ही कश्मीरी लोगों का समर्थन करना जारी रखेगा और इतिहास भारत के फैसले को गलत साबित करेगा।
इस बीच, अनुच्छेद 370 को समाप्त करने संबंधी भारत सरकार के फैसले के कुछ घंटों बाद पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने आज संसद का एक संयुक्त सत्र बुलाया है। जियो टीवी की रिपोर्ट के अनुसार संसद का यह संयुक्त सत्र स्थानीय समयानुसार सुबह 11 बजे आयोजित होगा जिसमें नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पास जम्मू कश्मीर की तनावपूर्ण स्थिति की समीक्षा की जायेगी। पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के अध्यक्ष एवं विपक्षी नेता शहबाज शरीफ समेत पाकिस्तान के कई राजनीतिज्ञों ने भी भारत के इस कदम की कड़ी निंदा की है।
इन नेताओं ने इस फैसले को अस्वीकार्य बताया। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी ने भी इस कदम की आलोचना की। उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘भारत की कार्रवाई के मद्देनजर राष्ट्रपति को तुरन्त संसद का संयुक्त सत्र बुलाना चाहिए।’’ वहीं, पाक थल सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा ने कोर कमांडरों के साथ एक बैठक की और सुरक्षा स्थिति पर चर्चा की। सरकारी टीवी ने यह खबर दी।
पीएमएल(एन) प्रमुख एवं विपक्षी नेता शहबाज शरीफ ने भारत के इस कदम को अस्वीकार्य और संयुक्त राष्ट्र के साथ विश्वासघात करने वाला बताया। उन्होंने पाक नेतृत्व से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का फौरन एक आपात सत्र बुलाने की भी मांग की। साथ ही, चीन, रूस, तुर्की, सऊदी अरब और अन्य मित्र देशों से मशविरा करने को भी कहा। पाकिस्तान की मानवाधिकार मंत्री शिरीन मजारी ने भारत के इस कदम को पूरी तरह से अस्वीकार्य बताया। उन्होंने कहा, ‘‘यूएनएससी और मानवाधिकार संगठन समेत अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जाने के साथ-साथ तुरन्त अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का रुख किया जाना चाहिए।’’