तोक्यो: सजा देकर किसी भी व्यक्ति से कोई अच्छा काम नहीं कराया जा सकता। एक नए अध्ययन में पाया गया है कि सजा देना मानव सहयोग पाने का प्रभावी तरीका नहीं है। आपसी सहयोग से ही मानव समाज अपनी स्थिरता को बनाए रखता है। हालांकि सहयोग की अक्सर एक कीमत चुकानी पड़ती है। जापान के होकायदो विश्वविद्यालय के मार्को जुस्प और चीन की नॉर्थवेस्टर्न पॉलिटेक्निकल यूनिवर्सिटी के झेन वांग के नेतृत्व में एक ‘‘सोशल डायलेमा एक्सपेरिमेंट’’ (सामाजिक दुविधा प्रयोग) किया गया। (काबुल में शिया सांस्कृतिक और धार्मिक संगठन में आत्मघाती हमला, 40 की मौत 30 घायल )
चीन के 225 छात्रों को तीन समूहों में बांटा गया और हर एक खेल के 50 राउंड खेले गए। शोधकर्ताओं ने पाया कि लगातार बदलते समूहों में खिलाड़ियों ने स्थैतिक समूहों (38 प्रतिशत) की तुलना में बहुत कम (4 प्रतिशत) सहयोग किया। बहरहाल सजा देने से भी सहयोग के स्तर ( जो 37 प्रतिशत पर पहुंच गया) में सुधार नहीं आया। इस परीक्षण समूह में अंतिम वित्तीय आहरण भी, औसत और स्थिर समूह में खिलाड़ियों द्वारा प्राप्त की गई तुलना में काफी कम थे।
शोधकर्ताओं ने बताया कि सजा से अक्सर लोग हताश ही हुए और कई बार सजा पाने वालों का प्रदर्शन थोड़े समय में ही गिर गया। इससे खिलाड़ियों की खेल के प्रति रुचि भी कम हुई और बाकी का खेल उन्होंने पहले की तुलना में कम विवेकपूर्ण नीतियों के साथ खेला। एक विकल्प के रूप में सजा की उपलब्धता प्रतिस्पर्धा में सहयोग की भावना को कम करने वाली भी प्रतीत हुई।
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