BLOG: आखिर क्यों भारत और चीन दोनों के लिए बेहद जरूरी है मालदीव!
आखिर इस छोटे से देश में ऐसी क्या बात है जो भारत और चीन के बीच एक तरह से ‘वर्चस्व की जंग’ छिड़ गई है। आइए, आपको बताते हैं...
हिंद महासागर में स्थित एक छोटा-सा देश है मालदीव। यह देश अपनी खूबसूरती के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। यहां हर साल लाखों सैलानी आते हैं और यही इस देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। आज इसी खूबसूरत देश में अच्छी-खासी उथल पुथल मची हुई है। मालदीव इन दिनों सत्ता संघर्ष के दौर से गुजर रहा है और इस संघर्ष पर एशिया की दो बड़ी ताकतों, भारत और चीन की नजर है। आखिर इस छोटे से देश में ऐसी क्या बात है जो दो ताकतवर देशों के बीच एक तरह से ‘वर्चस्व की जंग’ छिड़ गई है। आइए, आपको बताते हैं।
मालदीव में वर्तमान संकट तब शुरू हुआ जब यहां के सुप्रीम कोर्ट की ओर से राजनीतिक कैदियों और विपक्षी नेताओं को जेल से रिहा किए जाने का आदेश दिया गया। इसके बाद राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने देश में आपातकाल घोषित कर दिया और सुरक्षा बलों ने अदालत पर कब्जा जमा लिया। सुरक्षाबलों ने इसके साथ ही चीफ जस्टिस और दो सीनियर जजों समेत पूर्व राष्ट्रपति गयूम को गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद सरकार के दबाव में बाकी जजों ने पिछले आदेश को वापस लेने का फैसला सुना दिया। इस घटनाक्रम ने भारत की चिंता बढ़ा दी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लेकर भारत ने कहा कि सरकार को उसके आदेश को मानना चाहिए।
मालदीव हिंद महासागर में ऐसी जगह पर स्थित है, जो सामरिक दृष्टि से बेहद ही महत्वपूर्ण है। दक्षिण एशिया में अपनी स्थिति मजबूत रखने के लिए इस इलाके भारत का वर्चस्व होना बेहद जरूरी है। वहीं, दूसरी तरफ चीन की पूरी कोशिश है कि यहां अपना दबदबा कायम कर भारत की ताकत को न्यूट्रल किया जाए। यही वजह है कि दोनों ही देश इस इलाके पर अपना वर्चस्व कायम करने की कोशिश कर रहे हैं। हाल तक भारत और मालदीव के रिश्ते आमतौर पर अच्छे ही रहे हैं, लेकिन 2012 में इस देश में हुआ सत्ता परिवर्तन भारत के लिहाज से अच्छा नहीं रहा। मालदीव के नए राष्ट्रपति अब्दुल्ला नशीद का झुकाव चीन की तरफ ज्यादा है, और चीन ने भी मालदीव में अच्छा-खासा इन्वेस्टमेंट कर रखा है और पिछले ही साल इस मुल्क के साथ फ्री ट्रेड अग्रीमेंट साइन किया था।
हिंद महासागर के इस इलाके में वर्चस्व की इस जंग की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चीन ने दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में अपना वर्चस्व बढ़ाने के प्रयास तेज कर दिए हैं। चीन ने श्री लंका और पाकिस्तान में बंदरगाह बनाने से लेकर अफ्रीकी देश जिबूती में मिलिट्री बेस बनाने जैसे बेहद आक्रामक कदम उठाए हैं। वहीं, दक्षिण एशिया में चीन का सबसे मजबूत प्रतिद्वंदी भारत नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अमेरिका और जापान के सहयोग से इस इलाके में अपना वर्चस्व साबित करना चाहता है। यही वजह है कि मालदीव के मसले पर भारत और चीन बहुत फूंक-फूंककर कदम रख रहे हैं। यहां गौर करने वाली बात यह है कि जहां एक तरफ भारत और अमेरिका अदालत का फैसला मानने के लिए मालदीव के राष्ट्रपति पर दबाव बना रहे हैं तो चीन इसे आंतरिक मसला करार देकर अन्य देशों को दूर रहने की सलाह दे रहा है।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि भारत और चीन, दोनों में से ही जो भी मालदीव पर अपना प्रभाव स्थापित करेगा, वह दक्षिण एशिया में बेहतर स्थिति में आएगा। यही वजह है कि भारत और चीन, दोनों के लिए ही मालदीव का मामला ‘इज्जत और वर्चस्व’ की जंग बन चुका है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि जहां पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद चीन को खतरा और भारत को मित्र देश मानते हैं, वहीं वर्तमान राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने चीन पर ज्यादा भरोसा दिखाया है। फिलहाल जो स्थिति बन रही है, उसे देखते हुए सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है कि ऊंट किस करवट बैठेगा।