...एक नजर इमरान खान के राजनीतिक सफर पर
तो पाकिस्तान की अवाम ने अपना नया सुल्तान चुन लिया है और वो सुल्तान कोई और नहीं इमरान खान है जिन्हें पाकिस्तानी आर्मी का सपोर्ट हासिल है। इमरान खान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ इस चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है।
लाहौर: तो पाकिस्तान की अवाम ने अपना नया सुल्तान चुन लिया है और वो सुल्तान कोई और नहीं इमरान खान है जिन्हें पाकिस्तानी आर्मी का सपोर्ट हासिल है। इमरान खान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ इस चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। हालांकि उनकी पार्टी बहुमत से दूर रह गई है। रूझान और नतीजों में भले ही इमरान खान की पार्टी बहुमत से दूर हो, लेकिन सबसे बड़ी पार्टी का तमगा तो हासिल हो ही चुका है। ऐसे में पीएम की रेस में वो बाकी दावेदारों से काफी आगे हैं क्रिकेट के पिच पर अपनी फास्ट और स्विंग बॉलिंग से विरोधियों को बोल्ड करने वाले इमरान इस बार सियसत के पिच पर भी वैसा ही कमाल करते दिख रहे हैं, लेकिन सच ये भी है कि जम्हूरियत की इस जंग में इमरान खान को पाकिस्तानी सेना का सपोर्ट हासिल है। आईएसआई की सरपस्ती हासिल है यानी इमरान की जीत के पीछे वो ताकतें हैं जिनके दामन पर पाकिस्तान के लोकतंत्र को सूली पर टांगने के दाग लगे हुए हैं। आतंकी वारदात के जरिए बेगुनाहों का खून बहाने का इल्जाम है। (Pakistan Election 2018: जीत की ओर इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ )
चुनाव के नतीजे ठीक वैसे ही हैं जैसे पाकिस्तान की सेना चाहती थी। आतंकियों को शह देने वाली पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई चाहती थी। और अगर सबकुछ प्लॉन के मुताबिक चला तो पाकिस्तान को आज इमरान खान की शक्ल में उसका नया सुलतान मिल जाएगा। जाहिर है, अगर ऐसा हुआ तो इमरान खान को आतंकियों को भाईजान बोलना होगा फौज को सलाम ठोकना होगा। हालांकि इमरान खान के लिए पाकिस्तानी प्राइम मिनिस्टर की कुर्सी कांटों से भरा ताज है, तमाम चुनौतियां हैं, जिनसे उन्हें उबरना होगा। ये इमरान खान को सोचना होगा कि वो अपने नए पाकिस्तान के बुलंद नारे को हकीकत में कैसे बदलेंगे। उन्हें तय करना होगा कि वो सेना की शागिर्दी में पाकिस्तान को और बड़े आतंकिस्तान में बदलेंगे या फिर वाकई पाकिस्तान की अवाम को वो पाकिस्तान देंगे जिसका उन्होंने सपना दिखाया है। साथ ही इमरान को ये भी तय करना होगा कि भारत के साथ वो कैसा रिश्ता चाहते हैं। हालांकि वोटिंग से पहले जिस तरह के उनके बयान सामने आए हैं वो रिश्ते बेहतर करने वाले तो नहीं हैं। इमरान का यही भारत विरोधी चरित्र उन्हें पाकिस्तानी सेना का फेवरेट बनाता है। वैसे इमरान खान की कई दूसरी बातें भी हैं जो पाकिस्तानी सेना को पसंद है।
- इमरान की सोच सेना की सोच से काफी मिलती जुलती है
- पाकिस्तानी कट्टरपंथियों का साथ इमरान को रास आता है
- आतंकियों पर नकेल कसने के बजाय उनसे वार्ता के हिमायती हैं
- पाकिस्तान में अमेरिकी ड्रोन को गिराने तक की कसमें खा चुके हैं इमरान खान
इमरान खान अपने विरोधियों के निशाने पर तो रहे ही हैं उनकी पूर्व बेगम रेहम खान ने भी चुनाव से ठीक पहले अपनी किताब में इमरान के कैरेक्टर का चीरहरन कर उनके पैर खींचने की कोशिश की थी। लेकिन अब जो रूझान और नतीजे आए हैं उससे साफ है कि इन सब का कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ा। वैसे पाकिस्तान में ये कोई नई बात भी नहीं है। नई बात बस इतनी है कि मुल्क का वजीर-ए-आजम बदल जाएगा। ना तो पाकिस्तान को आतंक से मुक्ति मिलने वाली है और ना ही कट्टरपंथ से। क्योंकि पाकिस्तान में दस्तूर ही यही है कि पीएम की कुर्सी पर चाहे जो भी बैठे सत्ता की बागडोर हमेशा सेना के हाथों में रहती है। और इसका नुकसान ना सिर्फ पाकिस्तान को बल्कि भारत को भी उठाना पड़ता है।