इजराइल में दो साल के अंदर चौथी बार चुनाव, इस बार भी किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं
दो साल के अंदर चौथी बार हुए चुनाव में मतगणना के बाद लिकुड पार्टी सबसे बड़े दल के तौर पर उभरी है। हालांकि 120 सदस्यीय नेसेट में बहुमत के लिये जरूरी 61 सदस्यों के आंकड़े तक पहुंचने का रास्ता अब भी स्पष्ट नहीं है।
यरुशलम: इजराइल में मंगलवार को हुए चुनावों में मतगणना पूरी हो चुकी है लेकिन किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने की सूरत में अरब नेता मंसूर अब्बास ‘किंगमेकर’ के तौर पर उभरते दिख रहे हैं। उनके संभावित समर्थन को लेकर हालांकि न सिर्फ सत्ताधारी लिकुड पार्टी बल्कि दक्षिणपंथी गठबंधन में भी विभाजन स्पष्ट रूप से नजर आ रहा है और ऐसे में प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के लिए सरकार गठन की राह और मुश्किल हो सकती है। दो साल के अंदर चौथी बार हुए चुनाव में मतगणना के बाद नेतन्याहू की लिकुड पार्टी सबसे बड़े दल के तौर पर उभरी है। हालांकि 120 सदस्यीय नेसेट (इजराइली संसद) में बहुमत के लिये जरूरी 61 सदस्यों के आंकड़े तक पहुंचने का रास्ता अब भी स्पष्ट नहीं है।
इजराइल के बुरी तरह बंटे राजनीतिक परिदृश्य में वाम, दक्षिण और मध्यमार्गी धड़ों वाला नेतन्याहू विरोधी खेमा उनके कुछ दोस्तों से विरोधी बने नेताओं के सहयोग से देश के सबसे लंबे समय तक पद पर रहे प्रधानमंत्री को हटाने को लेकर संकल्पित था लेकिन वह भी बहुमत के आंकड़े तक नहीं पहुंच पाया। मंगलवार को एग्जिट पोल्स के आधार पर अधिकतर विश्लेषकों ने नेतन्याहू के नेतृत्व वाले गठबंधन की वापसी का पूर्वानुमान व्यक्त किया था और उन्हें उम्मीद थी कि पूर्व में प्रधानमंत्री के सहयोगी यामिना पार्टी के प्रमुख नफ्ताली बेनेट उनका समर्थन करेंगे।
यामिना पार्टी ने हालांकि किसी भी दल के लिये अपने समर्थन का ऐलान नहीं किया था। बेनेट और नेतन्याहू ने चुनाव प्रचार के दौरान एक दूसरे पर तीखे हमले बोले थे लेकिन बेनेट ने प्रधानमंत्री के साथ मिलकर सरकार चलाने की संभावना से इनकार नहीं किया था। इन चुनावों में हालांकि अब्बास के नेतृत्व वाली इस्लामी युनाइटेड अरब लिस्ट पार्टी (यूएएल) ने सबको चौंकाया और बहुमत जुटाने में उनकी चार सीटों का समर्थन निर्णायक साबित होगा।
इस बात से नेतन्याहू खेमे की मुश्किलें बढ़ी हुई हैं क्योंकि यमिना पार्टी के समर्थन देने की सूरत में भी उनकी सीटों की कुल संख्या 59 होगी जो बहुमत के लिये पर्याप्त नहीं है। ऐसे में प्रधानमंत्री अगर अन्य विरोधी दलों में सेंध लगाने में कामयाब नहीं होते हैं तो उनके लिये पद पर बने रहने और सरकार बनाने को अब्बास की पार्टी का समर्थन अनिवार्य होगा।
यूएएल और यामिना ने किसी भी खेमे के लिये अब तक समर्थन का ऐलान नहीं किया है। अब्बास ने कहा कि नेतन्याहू की तरफ से अब तक उनसे संपर्क नहीं किया गया है। बहुमत के लिये यूएएल का साथ जरूरी होगा लेकिन नेतन्याहू समर्थक और उनके विरोधी दोनों ही खेमों के दक्षिणपंथी राजनेता उस पार्टी के सहयोग से गठबंधन नहीं बनाना चाहते क्योंकि उनका मानना है कि यह यहूदी विरोधी रुख होगा। पूर्व में नेतन्याहू भी यूएएल के साथ गठबंधन से इनकार कर चुके हैं।
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