नई दिल्ली: भारत को चीन के साथ बिगड़ते रिश्तों के बीच कुटनीति का बड़ा मौका हाथ लगा है। दरअसल वर्ल्ड हेल्थ असेंबली की बैठक से ठीक पहले ताइवान ने भारत से मदद मांगी है। ताइवान चाहता है कि उसे डब्ल्यूएचए में अलग देश की तरह जगह दी जाए, जिससे चीन का दबाव उस पर से कम हो। गौरतलब है कि चीन ताइवान को अपने देश का अभिन्न अंग मानता है लेकिन ताइवान कभी चीन के साथ जुड़ने को तैयार नहीं है।
भारत ने अब ताइवान की मदद के लिए दुनियाभर के देशों से बात करना शुरू कर दिया है जिससे चीन घबरा गया है। बताया जा रहा है कि विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने 20 मार्च से अपने अभियान की शुरुआत करते हुए अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया, वियतनाम जैसे देशों से बात की।
जानकारी के मुताबिक सात देशों के ग्रुप में से चार, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड विश्व स्वास्थ्य संगठन से ताइवान को एक पर्यवेक्षक के रूप में शामिल करने पर हस्ताक्षर भी कर चुके हैं। इन देशों का कहना है कि ताइवान का यहां होना सार्थक और महत्वपूर्ण है।
इस कदम के बाद चीन बौखला गया है। ताइवान को अपना क्षेत्र बताते हुए उसने भारत समेत दुनिया को अपने वन चाइना नीति की याद दिलाई है और कहा कि कोरोना महामारी के समय ताइवान की डेमोक्रेटिक प्रोगेसिव पार्टी इसे बड़ा बनाकर दिखा रही है। चीन के मुताबिक ऐसा करने के पीछे ताइवान का मकसद विदेशी समर्थन पाना और आजादी हासिल करना है।
ताइवान ही वह देश है जिसने कोरोना वायरस पर चीन को दुनिया के सामने बेनकाब किया है। ताइवान ने सबसे पहले डब्ल्यूएचओ और दुनिया को आगाह किया था कि चीन से दुनिया में इंसानों में फैलने वाला वायरस फैल रहा है। वहीं भारत की कोशिशों के बीच चीने ने भी अपने साथी देशों के साथ बात करनी शुरू कर दी है।
बता दें कि चीन और ताइवान के बीच तनाव अपने चरम पर है और ड्रैगन ने अगस्त महीने में अपने युद्धाभ्यास में ताइवान के दोंगशा द्वीप समूह पर कब्जा करने की धमकी भी दी है।
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