एक हाथ में हथियार तो दूसरे में औजार, पाकिस्तान में ऐसे काम कर रहे हैं चीन के इंजीनियर
पाकिस्तान में सीपीईसी प्रोजेक्ट से जुड़े चीन के इंजीनियर और अन्य कर्मचारियों को अपनी रक्षा खुद करनी पड़ रही है। यहां काम कर रहे इंजीनियर और कर्मचारी अपने साथ एक हाथ में टूलकिट और दूसरे में एके 47 जैसे हथियारों के साथ साइट पर अपनी ड्यूटी निभाते हैं।
नई दिल्ली: पाकिस्तान में सीपीईसी प्रोजेक्ट से जुड़े चीन के इंजीनियर और अन्य कर्मचारियों को अपनी रक्षा खुद करनी पड़ रही है। यहां काम कर रहे इंजीनियर और कर्मचारी अपने साथ एक हाथ में टूलकिट और दूसरे में एके 47 जैसे हथियारों के साथ साइट पर अपनी ड्यूटी निभाते हैं। सोशल मीडिया पर इस तरह की कई तस्वीरें वायरल हो रही हैं जिसमें ये कर्मचारी हथियारों के साथ अपने काम में जुट हुए हैं। इनके एक हाथ में हथियार है तो दूसरे में औजार। जब पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियां इन्हें सुरक्षा उपलब्ध कराने में नाकाम रहीं तो इन्हें अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी खुद उठानी पड़ी।
14 जुलाई 2021 को खैबर पख्तूनख्वा के कोहिस्तान में में दासू डैम पर चीनी इंजिनियरों को ले जा रही एक बस पर हुए घातक हमले में 9 चीनी नागरिक मारे गए थे। इन्हें सुरक्षा मुहैया कराने में पाकिस्तान की एजेंसियां नाकाम रही थीं। इसके बाद इस प्रोजेक्ट पर काम करनेवाले चीनी इंजीनियरों ने अपनी सुरक्षा खुद करने का बीड़ा उठाया। अब ये अपने कार्यस्थल पर हथियारों से लैस होकर जाते हैं।
चीन ने अपने इंजीनियरों की रक्षा के लिए दो विशेष सुरक्षा डिवीजन , 34 और 44 लाइट इन्फैंट्री डिवीजनों के गठन, ट्रेनिंग और हथियारों के लिए पाकिस्तानी सेना को भारी मात्रा में पैसे दिए। इन दोनों डिविजनों में प्रत्येक डिविजन में 15000 जवान हैं। 34 लाइट इन्फैंट्री डिविजन का गठन सितंबर 2016 में और 44 लाइट इन्फैंट्री का गठन 2020 में किया गया।
दो विशेष सुरक्षा डिवीजन (एसएसडी), 34 और 44 लाइट इन्फैंट्री डिवीजनों में से प्रत्येक में 15000 सैनिकों के साथ चीनी धन की भारी मात्रा में निवेश किया गया है। जबकि 34 लाइट डिवीजन को सितंबर 2016 में बनाया गया था, 44 लाइट डिवीजन को 2020 में बनाया गया था।
पाकिस्तानी सेना ने इन डिवीजनों को तैयार करने के लिए चीन से भारी मात्रा में पैसे मांगे और उसे मिला भी लेकिन वे अपने कर्तव्यों को पूरा करने में विफल रहे। विद्रोहियों का हमला जारी रहा। सबसे घातक हमला 15 अक्टूबर 2020 को ओरमारा में किया गया था जब 14 बलूची उग्रवादियों ने पाक सुरक्षाकर्मियों को एक बस से घसीटकर मार डाला था।
चीन के इंजीनियर और कामगार पाकिस्तान के अंदर जहां भी काम करते हैं वहां हथियारों से लैस गार्डों द्वारा चौबीसों घंटे पहरा दिया जाता है, जिससे वे पाकिस्तानी सेना के बंधक बन जाते हैं। इससे कई बार दंगे की स्थिति बन जाती है। खासकर जब ये चीनी कामगार ड्यूटी खत्म कर पाकिस्तानी सेना के वाहनों का उपयोग कर अक्सर रेड लाइट वाले इलाकों में जाते हैं।
अगर इतिहास की बात करें तो पाकिस्तान की ज्यादातर परेशानियां उसके आंतरिक मामलों में चीन की दखलंदाजी का नतीजा रही हैं। लाल मस्जिद प्रकरण, जिसने पूरे सिस्टम और सशस्त्र चरमपंथी समूहों के बीच खुले तनाव को सतह पर ला दिया। इससे देश के अंदर हिंसा का वातावरण बना और अनगिनत पाकिस्तानी नागरिकों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। पाकिस्तान के अंदर अराजकता का माहौल बना। लाल मस्जिद के पास चीनी 'मसाज विमेन' के अपहरण की घटना ने इस पूरे प्रकरण में एक चिंगारी के समान थी। चीन के राजदूत ने तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को लाल मस्जिद में कमांडो एक्शन लेने कि लिए मजबूर किया। इस कार्रवाई में कई लोग मारे गए जिसमें एसएसजी के कमांडो भी शामिल हैं।
एसएसडी के अधिकारियों को पहले भी चीन से प्राप्त पैसे से चल रही योजनाओं के गबन में फंसाया जा चुका है। इसके अलावा, चीनी धन का उपयोग तोपखाने और लड़ाकू हेलीकॉप्टर खरीदने के लिए किया गया है जबकि चीन ने ये पैसे आतंकवादियों से अपने लोगों की रक्षा करने के लिए दी थी। पाकिस्तान ने संपत्ति संरक्षण के बहाने अपनी पारंपरिक क्षमताओं को मजबूत करने का प्रयास किया है, जैसा कि उसने अमेरिकियों के साथ किया था। इतना ही नहीं टास्क फोर्स 88 के नाम से गठित मैरीटाइम फोर्स को दो युद्धपोत दिए गए हैं जो इस योजना के लायक नहीं हैं।
खैबर पख्तूनख्वा में हुआ हमला चीनियों के खिलाफ पहला हमला नहीं है। यहां काम कर चीनी लोगों की कार्य नैतिकता और संस्कृति के अलावा चीन की सीपीईसी परियोजनाओं की लालची प्रकृति ने स्थानीय लोगों को बहुत परेशान किया है। अफगानिस्तान में मौजूदा संकट के साथ ही पाकिस्तान की पश्चिमी बॉर्डर भी एक्टिव है, जहां आईएसआईएस और टीटीपी जैसे समूह पाकिस्तानी सैनिकों के खिलाफ उग्र हो रहे हैं।