यांगून: म्यांमार में 5 दशकों तक सैन्य शासन के बाद 2016 में देश की नेता बनने वाली नोबेल शांति पुरस्कार विजेता आंग सान सू ची ने कई बार चेताया था कि अगर शक्तिशाली सेना बदलावों को स्वीकार करती है तो ही देश के लोकतांत्रिक सुधार सफल होंगे। म्यांमार में सेना ने सोमवार को तख्तापलट कर दिया और शीर्ष नेता आंग सान सू ची समेत कई नेताओं को हिरासत में ले लिया। इस घटनाक्रम के बाद सू ची की यह आशंका सही साबित हुई है।
ज्यादातर विदेशों में रहीं सू ची
सेना के स्वामित्व वाले ‘मयावाडी टीवी’ ने सोमवार सुबह घोषणा की कि सेना प्रमुख जनरल मिन आंग लाइंग ने एक साल के लिए देश का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया है। इस घोषणा के दौरान सेना के तैयार किए संविधान के उस हिस्से का हवाला दिया गया, जो राष्ट्रीय आपातकाल की स्थिति में देश का नियंत्रण सेना को अपने हाथों लेने की इजाजत देता है। सू ची ने अपना अधिकांश जीवन सैन्य शासन से लड़ने में बिताया है। वह 19 जून, 1945 को जिस शहर में पैदा हुई थी, उसे अब यांगून कहा जाता है। सू ची अपनी युवा अवस्था में ज्यादातर समय विदेश में ही रही।
इसलिए नहीं बन पाईं राष्ट्रपति
सू ची ने दर्शन, राजनीति और अर्थशास्त्र में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में डिग्री हासिल की और फिर न्यूयॉर्क और भूटान में संयुक्त राष्ट्र के लिए काम किया। उन्होंने ब्रिटिश अकादमिक माइकल एरिस से शादी की। उन्होंने जून, 2012 में नार्वे में अपना नोबेल व्याख्यान दिया। उनकी पार्टी ने 2015 में जीत हासिल की लेकिन देश के सर्वोच्च पद से हटने के लिए 2008 के संविधान में सेना द्वारा जोड़े गए प्रावधान के कारण वह राष्ट्रपति नहीं बन सकीं। इसके बजाय, वह स्टेट काउंसलर के पद के साथ वास्तविक राष्ट्रीय नेता बन गई।
सू ची के लिए बड़ा झटका
म्यांमार में सैन्य तख्तापलट की आशंका कई दिनों से बनी हुई थी। सेना ने अनेक बार इन आशंकाओं को खारिज किया था लेकिन देश की नई संसद का सत्र सोमवार को आरंभ होने से पहले ही उसने यह कदम उठा लिया। म्यांमार 1962 से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग था तथा यहां 5 दशक तक सैन्य शासन रहा। हाल के वर्षों में लोकतंत्र कायम करने की दिशा में आंशिक लेकिन अहम प्रगति हुई थी लेकिन तख्तापलट से इस प्रक्रिया को खासा झटका लगा है। सू ची के लिए तो यह और भी बड़ा झटका है जिन्होंने लोकतंत्र की मांग को लेकर वर्षों तक संघर्ष किया, नजरबंद रहीं और अपने प्रयासों के लिए उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार भी मिला।
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