डबल स्ट्रैटेजी अपनाकर 'दोतरफा' खेल खेल रहा तुर्की, रूस और यूक्रेन के बीच बना मध्यस्थ, लेकिन उसे इससे क्या फायदा मिल रहा है?
Russia Ukraine Turkey: इस खेल को देख ऐसा लगता है कि मानो तुर्की की पांचों उंगलियां घी में और सिर कढ़ाई में है। अब इस पूरी कहानी पर शुरुआत से बात कर लेते हैं। रूस और यूक्रेन के बीच 24 फरवरी के दिन युद्ध शुरू हुआ।
Highlights
- तुर्की ने अपने रुख में बदलाव किया
- यूक्रेन और रूस दोनों का दे रहा साथ
- आर्थिक और राजनीतिक लाभ की कोशिश
Russia Ukraine Turkey: इस समय दुनिया में जो सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है, वह है रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध। जिसे कुछ दिनों में 7 महीने का वक्त पूरा हो जाएगा। इस युद्ध को शुरू करना जितना आसान था, अब खत्म करना उससे भी कहीं ज्यादा मुश्किल लग रहा है। क्योंकि रूस को उम्मीद नहीं थी कि युद्ध में उसकी ये दुर्दशा होगी और वह यूक्रेन को जल्द नहीं हरा पाएगा। और न ही पश्चिमी मुल्कों को ऐसी उम्मीद थी कि आर्थिक प्रतिबंधों के बावजूद भी रूस युद्ध जारी रखेगा। ऐसे में जिस देश की तरफ दोनों पक्षों की निगाहें हैं या जिसने न केवल इस मामले में अपना रुख बदला है बल्कि दोनों तरफ से फायदा लेने की कोशिश में है, वो है तुर्की। आप ये कह सकते हैं कि तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयाब एर्दोआन डबल स्ट्रैटेजी अपना रहे हैं। तुर्की एक तरह से दोतरफा खेल खेल रहा है।
इस खेल को देख ऐसा लगता है कि मानो तुर्की की पांचों उंगलियां घी में और सिर कढ़ाई में हो। अब इस पूरी कहानी पर शुरुआत से बात कर लेते हैं। रूस और यूक्रेन के बीच 24 फरवरी के दिन युद्ध शुरू हुआ। रूस ने कहा कि वह केवल विशेष सैन्य अभियान चला रहा है। इस वक्त तुर्की ने रूस का विरोध किया था। वह पश्चिमी देशों का सहयोगी भी था और साथ ही उसने क्रीमिया और डोनबास में यूक्रेन के दावे का समर्थन किया है। इन दोनों ही क्षेत्रों पर रूस समर्थित अलगाववादियों का कब्जा है, जिसे यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदिमीर जेलेंस्की ने आजाद कराने की बात कही है। इन सबके बीच तुर्की अब बदले रुख में दिखाई दे रहा है, वो रूस के करीब जाता नजर आ रहा है। तो इसके पीछे के क्या कारण हो सकते हैं?
तुर्की ने यूक्रेन को दिए टीबी-2 ड्रोन
तुर्की नाटो (अमेरिका के नेतृत्व वाला पश्चिमी देशों का सैन्य गठबंधन) का सदस्य है और पारंपरिक तौर पर यूक्रेन का सहयोगी। वह कूटनीतिक और सैन्य दोनों तौर पर यूक्रेन का साथ दे रहा है। उसने उसे बेरक्तार टीबी2 ड्रोन भी दिए हैं। इसके अलावा वह रूस के साथ आर्थिक संबंध रखता है और रूस पर लगे आर्थिक प्रतिबंध लगाने में पश्चिमी देशों के साथ शामिल नहीं था। इस महीने की शुरुआत में एर्दोआन ने रूस की खूब तारीफ की और अमेरिका और यूरोपीय संघ पर आरोप लगाया कि वह रूस को भड़काने की नीति का पालन कर रहे हैं। उन्होंने जर्मनी को होने वाली गैस सप्लाई को रूस द्वारा रोके जाने पर कहा कि वह पुतिन के इस फैसले को समझ सकते हैं। उन्होंने रूस की तारीफ करते हुए कहा कि उसे कम करके नहीं आंकना चाहिए।
इसके साथ ही शुक्रवार को उज्बेकिस्तान के समरकंद में एससीओ देशों की बैठक के दौरान पुतिन से मुलाकात की और अपने रिश्ते को मजबूत करने पर बातचीत की। इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र की मदद से दोनों देशों के बीच अहम ग्रेन डील करवाई। यानी यूक्रेन के बंदरगाह पर फंसे अनाज को निर्यात करने के लिए सहमति बनी। विशेषज्ञों की मानें तो तुर्की पश्चिमी देशों के साथ अपने संबंधों में रूस का दांव खेल रहा है और रूस के साथ पश्चिमी देशों का दांव खेल रहा है। ऐसा भी कहा जा रहा है कि एर्दोआन दो तरफा रणनीति अपना रहे हैं। जिससे उन्हें आर्थिक और राजनीतिक दोनों तरह का लाभ हो सकता है। आर्थिक इसलिए जरूरी है क्योंकि तुर्की की अर्थव्यवस्था गर्त में जा रही है और राजनीतिक इसलिए क्योंकि अगले साल जून 2023 में तुर्की में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होने वाले हैं।
एर्दोआन को दो चीजों से प्यार
रजब तैयब एर्दोआन को दो चीजों से प्यार है, पहली ताकत और दूसरा पैसा। लेकिन वो इस वक्त कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। तुर्की की मुद्रा लीरा की कीमत बीते 12 महीनों में गिरकर आधी रह गई है और देश में महंगाई दर 80 फीसदी से अधिक हो गई है। विपक्षी पार्टियां चुनाव में अकेले उतरने के बजाय गठबंधन बना रही हैं और देश की आर्थिक स्थिति को प्रमुख मुद्दा बना रही हैं। इससे दो दशक से सत्ता में बने हुए एर्दोआन के लिए आगे भी सत्ता में बने रहना मुश्किल हो सकता है। इस मुसीबत से बचने के लिए उन्हें देश की अर्थव्यवस्था को ठीक करना है। इसके लिए उन्हें बड़े पैमाने पर आर्थिक मदद और विदेशी निवेश चाहिए।
रूस क्यों तुर्की की तरफ देख रहा
पश्चिमी देशों ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए हैं। ऐसे में वो इन प्रतिबंधों को नजरअंदाज कर अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपना सामान बेचना चाहता है और इसके लिए उसे एक सहयोगी की जरूरत है। अब तुर्की रूस और पश्चिमी देशों के बीच एक पुल की तरह काम करने की कोशिश में है। वह एक कमर्शियल और लॉजिस्टिक केंद्र भी बन सकता है। रूस पर आर्थिक प्रतिबंधों के बाद कई कंपनियों ने तुर्की में अपने लॉजिस्टिक केंद्र खोल लिए हैं। यहीं से ये कंपनियां रूस के साथ व्यापार कर रही हैं। ठीक इसी तरह रूस के जो बिजनेसमैन पश्चिमी देशों के साथ व्यापार करते थे, उन्होंने भी तुर्की में अपने लॉजिस्टिक केंद्र खोल लिए हैं। इसके साथ ही तुर्की भी पश्चिमी देशों से रूस के बाहर होने के बाद खाली हुई जगह को खुद भरना चाहता है। तुर्की की कंपनियां इसके लिए रूसी बाजार में प्रवेश कर रही हैं।
व्यापार के साथ निवेश और गैस
रूस और यूक्रेन युद्ध के बाद से तुर्की का रूस के साथ व्यापार बढ़ा है और द्विपक्षीय रिश्ते मजबूत हुए हैं। जुलाई 2021 के मुकाबले जुलाई 2022 में व्यापार में 75 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। जो व्यापार पिछले साल 41.7 करोड़ डॉलर का था, वही इस साल बढ़कर 73 करोड़ डॉलर का हो गया है। इसी साल पुतिन और एर्दोआन ने रूस के सोची में मुलाकात की थी। दोनों नेताओं के बीच कई क्षेत्रों में व्यापार को बढ़ाकर 100 अरब डॉलर करने पर सहमति बनी। तुर्की अपनी जरूरत का करीब 45 फीसदी पेट्रोल और डीजल रूस से लेता है। जिसमें वो अब डिस्काउंट पाने के लिए चर्चा कर रहा है। इसी साल दोनों के बीच जनवरी में गैस डील भी हुई है, जो अगले चार साल तक लागू रहेगी। इसमें कोई प्राइस टैग नहीं है इसलिए एर्दोआन डिस्टाउंट मांगना चाहते हैं। वो गैस खरीदने के लिए रूबल में व्यापार करने को भी आंशिक रूप से राजी हो गया था।
इसके अलावा यूक्रेन युद्ध की वजह से यूरोपीय संघ ने रूसी नागरिकों को वीजा देना सीमित कर दिया है, तो ये पर्यटक तुर्की की तरफ अपना रुख कर रहे हैं। इसका लाभ उसे युद्ध शुरू होने के पहले महीनों में ही मिलना शुरू हो गया था। पिछले साल के मुकाबले तुर्की आने वाले रूसी पर्यटकों की संख्या में 47 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। यही वजह है कि मध्यस्थ के तौर पर तुर्की की अंतरराष्ट्रीय छवि भी बदल रही है। उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी महत्व मिल रहा है। इसके दो उदाहरण देखे गए हैं। पहला, मार्च में इस्तांबुल में रूसी और यूक्रेनी प्रतिनिधिमंडल की बैठक और दूसरा, संयुक्त राष्ट्र की मदद से हुआ अनाज समझौता। वहीं अमेरिका, यूरोपीय संघ और ब्रिटेन भी चाहते हैं कि युद्ध को खत्म करने के लिए बातचीत का रास्ता खुला रहे, जिसके लिए बैठक इस्तांबुल में हो, न कि बेलारूस या फिर कजाखस्तान में। जो रूस के प्रभाव वाले देश हैं। एर्दोआन पश्चिम के नेताओं के साथ बने रहना चाहते हैं और रूस से भी अलग नहीं होना चाहते।